दौसा की हार से किरोड़ी, खींवसर की हार से हनुमान की मुश्किलें बढ़ी
RNE Bikaner
राज्य की 7 विधानसभा सीटों के उप चुनाव परिणामों से सरकार पर न तो कोई असर पड़ा, न पड़ना था। मगर कई नेताओं के कद पर इसका असर पड़ा है और वो असर अब आने वाले समय में साफ साफ दिखने भी लगेगा। इससे राज्य की राजनीति भी खासी प्रभावित होगी, इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता। भाजपा में जहां भजन – मदन की जोड़ी को स्थायित्त्व मिलेगा वहीं कांग्रेस में डोटासरा – जुली को लेकर असमंजस की स्थिति पनपेगी।
गोविंद डोटासरा का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, अब आलाकमान पर निर्भर है कि वो आगे क्या निर्णय करता है। लोकसभा चुनाव से जिस तरह का कद डोटासरा का बना था, वो उप चुनाव परिणामों से काफी कम हुआ है। उप चुनाव में उनको आलाकमान ने फ्री हैंड दिया था और प्रचार अभियान की पूरी कमान भी उनके ही पास थी। ठीक इसी तरह नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जुली के पास अलवर जिले की रामगढ़ सीट थी। कांग्रेस अपनी इस परंपरागत सीट को भी हार गई, वे कोई कमाल नहीं दिखा सके। भाजपा ने उनसे ये सीट छीन ली। अलबत्ता सचिन पायलट व मुरारीलाल मीणा ने जरूर अपनी दौसा जैसी प्रतिष्ठित सीट बचा ली और वो भी भाजपा के दिग्गज नेता किरोड़ीलाल मीणा के भाई को पराजित करके। प्रतिष्ठा की इस सीट पर पायलट – मुरारी की जोड़ी ने पूरा दम लगाया था।
उप चुनाव परिणाम का सबसे ज्यादा असर भाजपा के दिग्गज नेता व कृषि मंत्री किरोड़ीलाल मीणा पर पड़ना तय है। उनकी जिद पर ही उनके भाई जगमोहन मीणा को टिकट दिया गया था। किरोड़ी बाबा ने चुनाव में पूरा दम लगाया मगर जीत नहीं सके। किरोड़ी बाबा मंत्री पद से 3 महीनें पहले इस्तीफा भी दे चुके। हालांकि अब तक उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया है। अब दौसा की हार के बाद उनके कद पर असर पड़ेगा, इसका आभाष उनको भी है। तभी तो हार के बाद उनका दर्द छलक पड़ा और उन्होंने हार का ठीकरा जयचन्दों मतलब अपनों पर ही फोड़ दिया। उस पर भी अब बहस शुरू हो गई है। अब पार्टी और सीएम शीघ्र ही किरोड़ी बाबा के इस्तीफे पर भी निर्णय कर लेंगे। उनकी पार्टी व सरकार में पहले जो स्थिति थी, उसमें भी बदलाव आ जायेगा। पहले तो केंद्रीय नेतृत्त्व भी उनको इस्तीफा वापस लेने पर मना रहा था, अब स्थिति बदलेगी। उप चुनाव परिणाम किरोड़ी बाबा पर प्रभाव जरूर डालेगा, ये निश्चित लगता है।
खींवसर सीट के उप चुनाव का सबसे ज्यादा प्रभाव रालोपा व उसके सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल पर पड़ा है। इस सीट पर 20 साल से उनका वर्चस्व था और वे नागौर की अन्य विधानसभा सीटों पर भी प्रभाव डालते थे। इस हार से उनके वर्चस्व में कमी आयेगी। पहले लोकसभा व विधानसभा, दोनों में उनका प्रतिनिधित्व था। मगर अब विधानसभा में उनका कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। इसके साथ ही अब उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदी ज्यादा उत्साह में आकर मजबूत होंगे। ज्योति मिर्धा, रिछपाल मिर्धा जो उनके विरोधी है, उनकी शक्ति बढ़ेगी। उनसे छिटककर गये रेवंतराम डांगा भी जीतने के कारण अब ज्यादा मजबूत हो गए। पहले बाड़मेर में उनसे अलग होकर उमेदाराम सांसद बने और रेवंतराम विधायक बन गये। रालोपा व हनुमान बेनीवाल इससे कमजोर हुए हैं, उनको फिर से नागौर व खींवसर में नई शुरुआत करनी पड़ेगी।
कुल मिलाकर उप चुनावों के परिणाम राज्य की राजनीति व नेताओं पर व्यापक असर डालेंगे। भारतीय आदिवासी पार्टी ने चौरासी जीतने के साथ सलूम्बर में भी दूसरा स्थान पाया। मतलब बांसवाड़ा, डूंगरपुर के बाद अब उदयपुर में भी उसका फैलाव हो रहा है, जो आने वाले समय में भाजपा – कांग्रेस के लिए परेशानी खड़ी करेगा।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।