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खा गया आगोर !! डकार भी नहीं ली, अधिकतर पुराने तालाबों की आगोर लुप्त हो गई

  • प्रशासन सोया रहा, आगोर पर कब्जे होते रहे
  • कब्जेधारियों का कुछ नहीं बिगड़ा, बिगड़ा तो शहर का, धरोहर का
  • बुलडोजर युग में अब भी विल- पावर हो तो सुधर सकते है हालात

रितेश जोशी
ritesh joshi

RNE Special.

बीकानेर पश्चिमी राजस्थान का वो इलाका है जहां आरम्भ से ही न तो अधिक हरियाली थी और न ही यहां मनोरंजन के साधन थे। गर्मी में गर्मी व सर्दी में सर्दी, बेतहाशा रहती थी। ये उस समय के लोगों का हौसला ही था कि वे इनका डटकर मुकाबला करते थे।

बरसात बहुत कम होती थी। क्योंकि उसे आमंत्रित करने वाले पेड़ पौधे नहीं थे। फिर भी दूरदर्शी बुजुर्गों ने शहर के कई हिस्सों में तालाब बना रखे थे। कोई तालाब बनता था तो उसके लिए आगोर छोड़ी जाती थी ताकि बरसात का पानी उस तालाब तक पहुंचे और तालाब भर जाये। ये तालाब मनोरंजन का बड़ा साधन थे।

हर तालाब से जुड़ा था एक मंदिर:

बीकानेर में जितने भी तालाब है, वे मंदिरों से जुड़े हुए है। शिवबाड़ी सागर, संसोलाव, हर्षोलाव, जतोलाई आदि तालाब मंदिरों के कारण ही विकसित हुए। वहां हमारे बुजर्ग पूजा के लिए जाते। तालाब को संभालते। आगोर को बरकरार रखने के लिए खुद श्रम करते। उसी के कारण तालाब भरे रहते थे, आगोर सुरक्षित थी। मंदिर के लिए जल की कमी नहीं पड़ती।

हर तलाब से जुड़ा था एक समाज:

इन सभी तालाबों से कोई न कोई समाज या जाति जुड़ी हुई थी जो उसकी सारसंभाल भी करती। पुजारी, पूजा, पूजन सामग्री आदि का भी प्रबंध वह समाज या जाति करती। सामूहिकता की भावना थी। तालाब व उसकी आगोर को लोग भगवान की संपत्ति मानते थे, इस कारण कभी इन पर उनकी बुरी नजर नहीं रही।

छूमंतर होती गई आगोर:

मगर समय बदला, संस्कारों का पतन हुआ और देखते देखते तालाबों की आगोर छूमंतर हो गई। तालाब में पानी आना कम हो गया और वो खाली रहने लगे। लोगों ने संगठनों ने शोर मचाया। आंदोलन किये मगर प्रशासन सोया रहा। भूमाफियाओं के दबाव में कोई कार्यवाई नहीं हुई। प्रशासन की नाक के नीचे भूमाफिया आगोर खा गये, डकार भी नहीं ली। समाज, धर्म व आस्था की दुहाई का असर न तो प्रशासन पर हुआ और न कब्जा करने वालों पर। उनके पास तो जमीर पहले से ही नहीं था।

अनाथ है तालाब:

आज बिना आगोर के ये तालाब अनाथ है। इनको मालामाल कैसे करें, इस पर समाज तो सोचता है मगर शासन या प्रशासन नहीं सोचता। तालाबों के शहर बीकानेर के तालाब ही देखते देखते लुट गये। इसके लिए जन प्रतिनिधि भी कम दोषी नहीं।

जागे जनता के वोट से बने नेता:

अब भी समय है, जनता का वोट लेकर बने नेता जागे तो सही स्थिति पाई जा सकती है। कब्जा तो कब्जा होता है, उसे तो कभी भी हटाकर तालाबों व उससे जुड़ें मंदिरों को उसकी आभा लौटाई जा सकती है। अब तो सरकारें बुलडोजर पर भरोसा करने लगी है, उनको ये पुनीत काम तो करना ही चाहिए।

अर्जुन जी, जेठानन्द जी, सिद्धि जी से अपील:

बीकानेर के लाडले सांसद अर्जुनराम मेघवाल, पश्चिम विधायक जेठानन्द व्यास व पूर्व की विधायक सिद्धि कुमारी जी से अपील है कि बीकानेर को उसकी यह आभा वापस दिलवाए। तीनो का अपना वजूद है। यही अपील पूर्व मंत्री डॉ बी डी कल्ला से भी है। सुनो बीकानेर की पुकार माननीयों। कुछ तो करो सरकार।

ये कहता है विपक्ष:

शहर कांग्रेस महामंत्री राहुल जादुसंगत इन दिनों बीकानेर की विरासत के संरक्षण के लिए प्रयासरत है। उनका कहना है कि तालाबों की आगोर को पाना सबका काम होना चाहिए। दलीय सीमाओं से ऊपर उठकर इस मसले पर काम करना चाहिए। उन्होंने बताया कि वे तालाबों की आगोर को लेकर एक रिपोर्ट बना रहे है और उसे सरकार को देकर मांग करेंगे। यदि जरूरत पड़ी तो सड़क पर भी उतरेंगे।

 राहुल जादुसंगत, शहर कांग्रेस महामंत्री