Pitr Paksh : पितृ पक्ष पर चंद्र ग्रहण की छाया, तर्पण करने के लिए अपनाए यह तरीका
इस बार पितृ पक्ष की शुरुआत के दिन चंद्र ग्रहण है। इस लिए श्राद्ध और तर्पण सही समय करना जरूरी है। इस वर्ष पितृ पक्ष 7 सितंबर से 21 सितंबर तक चलेगा।
गायत्री ज्योतिष अनुसंधान केंद्र कुरुक्षेत्र के संचालक डा. रामराज कौशिक ने बताया कि हिंदू धर्म में पितरों का बहुत महत्व है। हर माह की अमावस्या को पितरों को प्रसन्न रखने के लिए तर्पण किया जाता है।
इसके अलावा भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि से आश्विन मास की अमावस्या तक पितृ पक्ष में विशेष रूप से पितरों के लिए तर्पण किया जाता है। इन 15 दिनों तक पूर्वजों के लिए श्राद्ध, तर्पण, दान-पुण्य किए जाते हैं। पूर्वजों की आत्मिक शांति और उनके आशीर्वाद के लिए ये आयोजन किए जाते हैं। इस वर्ष 7 सितंबर के दिन चंद्र ग्रहण लगने वाला है। यह ग्रहण देशभर में नजर आएगा।
इसीलिए पितृ पक्ष के पहले दिन चंद्र ग्रहण का सूतक काल मान्य होगा। सूतक काल में किसी भी तरह के धार्मिक आयोजन किए जाने की मनाही होती है। ऐसे में पितृ पक्ष के पहले दिन पितरों के लिए श्राद्ध व तर्पण करने के लिए सही समय चुनना जरूरी है। जिनके पितरों की तिथि पूर्णिमा है अर्थात पूर्णिमा का श्राद्ध करना है तो सूतक काल का विशेष ध्यान रखें कि दोपहर 12:58 से पहले श्राद्ध कर लें।
सूतक काल का समय
सात सितंबर की रात 9 बजकर 58 मिनट से चंद्र ग्रहण शुरू होगा। चंद्र ग्रहण के नौ घंटे पहले से सूतक काल शुरू हो जाता है। इस समय पूजा-पाठ सहित सभी तरह के धार्मिक कार्य करना वर्जित होते हैं। ऐसे में 7 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 58 मिनट से पहले तक का ही समय श्राद्ध और तर्पण करना उचित रहेगा।
श्राद्ध तिथियां
7 सितंबर, रविवार : पूर्णिमा
8 सितंबर, सोमवारः प्रतिपदा
9 सितंबर, मंगलवारः द्वितीया
10 सितंबर, बुधवारः तृतीया व चतुर्थी
11 सितंबर, गुरुवारः पंचमी
12 सितंबर, शुक्रवार ः षष्ठी
13 सितंबर, शनिवारः सप्तमी
14 सितंबर, रविवार : अष्टमी
15 सितंबर, सोमवारः नवमी
16 सितंबर, मंगलवारः दशमी
17 सितंबर, बुधवार : एकादशी
18 सितंबर, गुरुवारः द्वादशी
19 सितंबर, शुक्रवार: त्रयोदशी
20 सितंबर, शनिवारः चतुर्दशी
21 सितंबर, रविवार : सर्वपितृ अमावस्या।
ऐसे करें पितृ तर्पण
पितृ पक्ष में पूर्वजों को याद कर उन्हें अन्न, जल अर्पित करके उनकी तृप्ति के लिए तर्पण किया जाता है। तर्पण करने के लिए एक लोटे में जल, दूध, जौ, चावल और तिल डालें और दक्षिण की दिशा की ओर मुंह करें। दक्षिण दिशा पितरों की दिशा माना जाता है। इसके बाद बाएं घुटने को मोड़कर जमीन पर टिकाएं व दाहिने हाथ के अंगूठे नीचे की ओर गिराएं. जल गिराते हुए सभी पूर्वजों को याद करें। मन में सोचें कि आपके द्वारा दिया जा रहा अन्न और जल उन तक पहुंच रहा है और 'ॐ पितृ देवतायै नमः' मंत्र का जाप करें।