
अतिक्रमण होने कैसे दिया, अब फिर बुलडोजर क्यों, कौन जिम्मेदार ??
- नगर निगम का पूरे शहर में अपना तंत्र, रोज रहता फील्ड में
- सफाईकर्मी, जमादार, इंस्पेक्टर क्यों अतिक्रमण देखकर अंजान रहे
- जब बन गया तो फिर अब तोड़ने का काम क्यों हो
- भ्रष्टाचार के बिना अतिक्रमण होना संभव नहीं, ये तो तय है
- बीमारी बढ़ने से पहले ही इलाज क्यों नहीं किया
रितेश जोशी
RNE Special.
कल शहर के मुख्य बाजार में नगर निगम का दस्ता मशीनों के साथ अतिक्रमण तोड़ने के लिए पहुंचा। साथ मे पुलिस बल भी था। लोगों ने अतिक्रमण तोड़ने का विरोध किया। निगम के अधिकारी, कर्मचारी बेबस थे। कुछ टूटे, कुछ रहे। शांति व्यवस्था भंग सी हो गई। तनाव का माहौल बन गया।
इस प्रकरण में खास बात है कि अतिक्रमण कोई नया नहीं था। पुराना था। कच्चा नहीं था, पक्का था। उस निर्माण को हुए समय भी अधिक हो गया था। ये सब चीजें थी तो निगम को अब कैसे ये तोड़ना याद आया। जब अतिक्रमण हो रहा था, उस समय नगर निगम का तंत्र सो कैसे रहा था ? अतिक्रमण सड़क पर हो कैसे गया, किसने होने दिया ? ये सब सवाल वाजिब है। जिसका जवाब निगम को देना चाहिए। वो इन ज्वलंत सवालों से मुंह नहीं मोड़ सकता।
मिलीभगत या भ्रस्टाचार जिम्मेवार:
जाहिर है सड़क पर इतना बड़ा फुटपाथ बने या फिर कोई और निर्माण हो तो वो निगम के कार्मिकों की नजर से बचाकर तो नहीं किया गया होगा। क्योंकि उनका तो वहां हर दिन आना जाना रहता है। जाहिर है ये काम या तो मिलीभगत से हुआ है या फिर कोई न कोई भ्रस्टाचार हुआ है। दोनों ही अवैधानिक है। अतिक्रमण करने वाला जितना दोषी है, उतने ही दोषी नजरअंदाज रहने वाले या मिलीभगत करने वाले या भ्रस्टाचार करने वाले दोषी है। इनकी जिम्मेवारी भी तय कर निगम को कार्यवाही करनी चाहिए।
ये है नगर निगम का तंत्र:
नगर निगम का सफाई कर्मचारी, जमादार, इंस्पेक्टर रोज अपने अपने हल्के में सफाई व्यवस्था के लिए जाते है। उनकी नजर से कोई अतिक्रमण बच ही नहीं सकता। रोज का उनका काम है। उनको अतिक्रमण की सूचना निगम में देनी चाहिए। कोई अतिक्रमण उनके इलाके में न करे, कोई बिना अनुमति अंडर ग्राउंड न बनाये, कोई बिना अनुमति बॉलकोनी न निकाले, कोई बिना अनुमति मंज़िल न बनाये, ये देखना भी इनका काम है। यदि ऐसा हो रहा था तो उनको निगम में सूचना देनी चाहिए थी।
अतिक्रमण तोड़ेंगे तो विरोध होगा:
अब उस पक्के अतिक्रमण को इतनी लंबी अवधि के बाद तोड़ेंगे तो स्वाभाविक रूप से विरोध तो होगा। विरोध करने वाले भी यही कहेंगे कि उस समय रोक देते तो हम धन खर्च ही नहीं करते।
अतिक्रमण बिल्कुल सही नहीं:
हर सभ्य नागरिक यही कहेगा कि अतिक्रमण उचित नहीं। करना नहीं चाहिए। यदि किया गया है तो उसे तोड़ा जाना चाहिए। मगर इस बीमारी को शुरू होते ही इलाज करना जरुरी है। बीमारी बढ़ने के बाद यदि इलाज शुरू करेंगे तो अच्छे और बेहतर परिणाम नहीं मिलेंगे। न बीमारी का आसानी से इलाज होगा।
अतिक्रमण हटाने का अभियान चले:
नगर निगम क्षेत्र में अतिक्रमणों की भरमार है। इससे कई जगह सड़के छोटी हो गई है तो कईयों के रास्ते मे अवरोध बन गए है। नगर निगम को एक सघन अभियान चला अतिक्रमण तोड़ने चाहिए ताकि आम जनता को राहत मिले। इसमें पूर्वाग्रह रहित भी रहना पड़ेगा। नेताओं की सिफारिश को भी नजरअंदाज करना पड़ेगा। जन हित को ध्यान में रखना होगा, उसके आधार पर ही तोड़ने का काम करना होगा।
कलेक्टर साहिबा, आप दखल दें:
इस शहर की सुंदरता को बनाये रखने, जनता को राहत देने के लिए अतिक्रमण हटाने का काम होना जरूरी है। कलेक्टर साहिब के हस्तक्षेप से ही जनता को राहत मिल सकती है। आदतन भूमाफियाओं को भी भय में लाया जा सकता है।