गूढ़ रहस्यों वाली भगवान गजानंद की प्रतिमा जिसके बारे में जानकर हैरान हो जाएंगे!
07 वर्ष छह महीने में प्रतिमा का निर्माण हुआ। एक खास मुहूर्त में धरती के गर्भ में बैठकर प्रतिमा का निर्माण किया गया ताकि निर्माण के दौरान सूर्य की रोशनी तक न पड़े। इसके अलावा एक बड़ी खूबी यह है कि एक परिक्रमा करते ही 21 हो जाती है..। ये और ऐसे ही बीसियों गूढ़ रहस्यों से पर्दा उठा रहे हैं प्रतिमा बनवाने-स्थापित करवाने वाले पंडित किस्तूरचंदजी के वंशज साहित्यकार नगेन्द्र नारायण किराड़ू।
RNE, SPECIAL DESK.
18 दिन में प्रतिमा बननी थी, 07 साल छह महीने लगे !
एक कुशल श्रमिक एक छोटी-सी प्रतिमा बनाने मंे कितना वक्त ले सकता है! बमुश्किल एक महीना, अधिक सजाना-संवारना हो तो दो-तीन महीने। बहुत अधिक हो गया तो एक साल। क्या इससे भी ज्यादा समय लग सकता है ? सवाल का सीधा-सा जवाब होगा-नहीं! लेकिन बीकानेर में स्थापित एक गणेश प्रतिमा की निर्माण अवधि जानकर आप हैरान हो जाएंगे। यह प्रतिमा बनाने में 07 साल 06 महीने लगे। चौंकने से पहले यह जान लीजिये कि आखिर यह प्रतिमा है कौनसी और कहां है? दरअसल हम बात कर रहे हैं बीकानेर में इक्कीसिया गणेशजी की।
कौन है बनवाने वाला, जिसकी वजह से इतना वक्त लगा !
गणेश प्रतिमा के साथ जुड़े ‘इक्कीसिया’ के रहस्य और गूढ़ अर्थों पर आगे बात करेंगे पहले यह जान लें कि आखिर इस प्रतिमा को बनाने में इतना वक्त क्यों लगा! यह जानने से पहले इसे बनवाने वाले के बारे में जानना होगा। दरअसल इस प्रतिमा का निर्माण कर मंदिर में स्थापित करवाने थे पंडित किस्तूरीचंद किराड़ू। माना जाता है कि अपने जमाने में देश के प्रमुख तंत्रविद थे और भगवान गणपति के परमभक्त। तंत्रविद और गणपति भक्त होने का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि सालों पहले इंदौर में एक गणेश प्रतिमा बनवाने और स्थापित करवाने का श्रेय भी पंडित किराड़ू को है।
इसलिये प्रतिमा में इतना वक्त लगा :
दरअसल पंडित किराड़ू ने जब गणेश प्रतिमा बनवाना और स्थापित करवाना तय किया तब कारीगर के साथ पहली शर्त यह रखी गई कि इस प्रतिमा पर उतनी ही देर तक छैनी-हथौड़ी चलेगी जितनी तक पुष्य नक्षत्र रहेगा। ऐसे में पूरी प्रतिमा का निर्माण पुष्य नक्षत्र मंे हुआ। ग्रह-नक्षत्रों की चाल गणना देखें तो महीने में एक बार पुष्य नक्षत्र आता है। प्रतिमा निर्माण में 07 साल 06 महीने लगे। औसतन 18 बार पुष्य नक्षत्र इस दौरान रहा। मतलब यह कि 18 दिन काम हुआ।
सूर्य की रोशनी नहीं लगी, निर्माण के दौरान मंत्रोच्चार :
निर्माण से जुड़ी एक और खूबी यह है कि जब तक यह प्रतिमा बनकर तैयार नहीं हुई इस पर सूर्य की रोशनी नहीं पड़ी। इसके लिए पंडित किराड़ू ने बाकायदा एक बावड़ी के तल में बैठकर वहीं निर्माण करवाया। खुद डिजाइन बनाई। उसे पत्थर पर निशान लगवाये और जब तक पत्थर पर छैनी चलती रहती तब तक खास मंत्रोच्चार चलते रहते।
अब जानिये ‘इक्कीसिया’ क्यों ?
इस मंदिर में नियमित दर्शन करने वाले भी अधिकांश लोग नहीं जानते कि प्रतिमा इक्कीसिया क्यों? बस, एक मान्यता है कि इस प्रतिमा की लगातार इक्कीस दिन, 21-21 परिक्रमा करने में सफल हो जाते हैं तो प्रत्येक वांछित फल पाया सकता है। यह मान्यता ठीक हो सकती है लेकिन ऐसा क्यों है यह बहुत कम लोग जानते हैं। दरअसल इसके पीछे भी मूर्ति से ही जुड़ा एक गहरा रहस्य है। रहस्य यह है कि इस मूर्ति में एक नहीं बल्कि गणपति के 21 रूप छिपे हैं। इसीलिये नाम है-इक्कीसिया गणेशजी।
यह है परिक्रमा का चमत्कारिक गणित :
अब यह भी जान लें कि जब इस प्रतिमा की एक परिक्रमा करते हैं तो गणेशजी की 21 परिक्रमाएं हो जाती है। अब गणना करें तो एक बार में 21 परिक्रमा हो जाती है। हर दिन 21 परिक्रमा यानी हर दिन 441 परिक्रमा हो जाती है। लगातार 21 दिन परिक्रमा की जाएं तो यह आंकड़ा 9261 परिक्रमा तक पहुंच जाता है। माना जाता है कि 9261 आंकड़े का भी कोई तांत्रिक महत्व है हालांकि इसका खुलासा करने को कोई भी तैयार नहीं है। यह भी माना जाता है कि इस प्रतिमा की परिक्रमा का क्रम पुष्य नक्षत्र में ही शुरू करें तो फल कई गुना बढ़ जाता है।
प्रतिमा पूर्ण होते ही दुनिया छोड़ी, पुत्र ने स्थापित करवाई :
इसे संयोग कहें या पंडित किस्तूरचंद किराड़ू का अनुष्ठान कि प्रतिमा निर्माण होते ही उन्होंने देह त्याग दी। बाद में इस प्रतिमा की मंदिर में स्थापना पुत्र गणपत किराड़ू ने करवाई। इक्कीसिया गणेशजी मंदिर में एक स्थान पर गणपत किराड़ू जी की भी प्रतिमा संभवतया इसीलिए दर्शनार्थ रखी गई है।