बाबूसिंह का गजेन्द्र पर निशाना, अनिता भदेल का मीटिंग छोड़ जाना यानी भाजपा में भी सब ठीक कहां
आरएनई,स्टेट ब्यूरो।
विधानसभा चुनाव में भाजपा जीत गई और कांग्रेस हार गई। कांग्रेस को अपने भीतर की टकराहट ने भी नुकसान पहुंचाया। हार के कई कारण थे, जैसे टिकट वितरण में साहस नहीं, विधायकों की एन्टीनकम्बेंसी, चेहरे न बदल पाना आदि। मगर इन सब पर भारी रही अशोक गहलोत व सचिन पायलट की टकराहट। भाजपा भी कांग्रेस की कमियों का जितना फायदा उठा सकती थी, उतना नहीं उठा पाई। उसकी वजह उनके भीतर की टकराहट व वसुंधरा राजीव फैक्टर थे। राजे की उपेक्षा का असर भी पड़ा। गुटीय तनाव भी रहा।अब भाजपा लोकसभा चुनाव 2024 के लिए तीसरी बार सभी सीटें जीतने के लक्ष्य को रखे हुए है। पिछले दो लोकसभा चुनाव के समय राज्य में भाजपा का नेतृत्त्व वसुंधरा राजे के पास था। मगर इस बार नेतृत्त्व सीएम भजनलाल शर्मा व पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सी पी जोशी के पास है और राजे की सीधी सीधी कोई दखलंदाजी नहीं है। वैसे भी नई सरकार बनने के बाद से वे अधिकतर समय नेपथ्य में ही है। बहुत कम सार्वजनिक आयोजनों में दिख रही है और बोल भी कम रही है। इसका लोकसभा चुनाव पर असर तो पड़ेगा, इससे कोई भी इंकार नहीं कर सकता। विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में भी राजे एक बड़ा फेक्टर है, इसे नकारा नहीं जा सकता।सरकार बनने के बाद जिस तरह से भाजपा के अंदर की टकराहट जितनी भी बाहर आई है उससे लगता है कि अंदरखाने सब ठीक नहीं है। शेरगढ़ के विधायक बाबूसिंह राठौड़ ने केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की उपस्थिति में एक सार्वजनिक आयोजन में बोलते हुए उन पर आरोप लगा दिया कि उन्होंने शेरगढ़ विधानसभा में कोई काम नहीं किया। जबकि ये विधानसभा क्षेत्र शेखावत के संसदीय क्षेत्र जोधपुर का हिस्सा है। जाहिर है इससे ये संदेश तो गया ही है कि पार्टी के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है। बाबूसिंह वही विधायक है जिनसे विधानसभा चुनाव से पहले सार्वजनिक सभा मे माइक छीन लिया गया था। काफी फजीहत हुई थी। उस सभा में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी बैठे थे। वही दर्द अब सामने आया है।ठीक इसी तरह भाजपा की वरिष्ठ विधायक अनिता भदेल उप मुख्यमंत्री दिया कुमारी से इतनी नाराज हुई कि उनकी बैठक छोड़कर निकल आई। भाजपा पर कांग्रेस विधानसभा में जबरदस्त हमलावर रही मगर राजे या वरिष्ठ विधायक कहीं भी बचाव करते नहीं दिखे। न कांग्रेस नेताओं के सार्वजनिक आरोपों पर ये लोग बोल रहे हैं। इस हालत में भाजपा कैसे मिशन 25 पूरा करेगी, इस पर सवालिया निशान है।कांग्रेस की स्थिति भी अंदरखाने ठीक नहीं। अशोक गहलोत एक तरह से चुप है और अभी कमान रंधावा, डोटासरा व जुली के पास ही है। सचिन के तेवर भी तीखे है। रंधावा व डोटासरा के बयान बारबार पूर्व सीएम गहलोत को ही कटघरे में खड़ा करते दिखते हैं। डोटासरा व गहलोत के खास आरएलडी विधायक सुभाष गर्ग की टकराहट कुछ अलग ही कहानी कहती है। गहलोत के खास महेन्द्रजीत सिंह मालवीया भाजपा में शामिल हो गये। गहलोत को बड़ा झटका है ये। यदि अंदरखाने कांग्रेस के भीतर यही चलता रहा तो वो कैसे भाजपा के तीसरी बार के मिशन 25 को रोकेगी। दोनों पार्टियों के भीतर की टकराहट का असर आम चुनाव पर पड़ता दिख रहा है।