Rajasthani : संबल दे रहा सोशल मीडिया, फजीहत करवा रहे “घड़ियाबाज”
RNE Special
राजस्थानी साहित्य को लेकर नये नये विविध आयाम उजागर करने में इन दिनों साहित्य अकादमी, नई दिल्ली का काम सराहनीय है। एक तरफ जहां राजस्थानी अपनी संवैधानिक मान्यता के लिए संघर्ष कर रही है वहीं दूसरी तरफ रचनाकार लगातार राजस्थानी भाषा और साहित्य के विपुल भंडार को सामने लाने का बड़ा काम कर रहे हैं। जिनसे ये प्रमाणित होता है कि राजस्थानी भाषा वास्तव में तो बहुत पहले मान्यता की हकदार थी। क्योंकि अनेक ऐसी भाषाओं को मान्यता मिल चुकी जिनको बोलने वालों की संख्या राजस्थानी बोलने वालों से कम है। जिनके साहित्य का भंडार भी राजस्थानी से आधा भी नहीं है। उन भाषाओं को मान्यता मिली, इसका एतराज नहीं। मलाल इस बात का है कि राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं मिली। जो 12 करोड़ से अधिक लोगों की भाषा है। जिसका अपना शब्द कोश है, साहित्य है, व्याकरण है।
साहित्य अकादमी, नई दिल्ली और उसके राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल व उसके संयोजक डॉ अर्जुन देव चारण का आभार, जो निरंतर राजस्थानी साहित्य के विविध पक्षों को सेमिनार व सिम्पोजियम के माध्यम से सामने ला रहे हैं। पिछले दिनों बीकानेर में राजस्थानी साहित्य के दो महत्ती सिम्पोजियम हुए। पहला सिम्पोजियम था राजस्थानी अनुवाद परंपरा पर। जिसमें ये उजागर हुआ कि अनुवाद की इस भाषा में एक समृद्ध परंपरा है। जो अनवरत है। इस सिम्पोजियम में कई नये तथ्य भी उद्घाटित हुए। दूसरा सिम्पोजियम हुआ राजस्थानी के मध्यकाल के गद्य साहित्य पर। इस अछूते विषय को पहली बार साहित्य अकादमी व डॉ अर्जुन देव चारण ने छुआ। अनेक भाषाओं के पास मध्यकाल के गद्य साहित्य का इतिहास ही नहीं है, यहां तक कि हिंदी के पास भी नहीं। राजस्थानी इस मामले में भी धनवान है, ये बात अर्से बाद प्रकट हुई।
अब साहित्य अकादमी की तरफ से श्रीगंगानगर में राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल दो सिम्पोजियम कर रहा है। इस बार संयोजक डॉ चारण ने राजस्थानी निबंध व बाल साहित्य पर ये सिम्पोजियम केंद्रित किये हैं। भाषा समृद्ध होती है गद्य से और राजस्थानी गद्य की समृद्धता को निबंध अभिव्यक्त करते हैं। इस कारण ये सिम्पोजियम जो 23 नवम्बर को श्रीगंगानगर में कृष्ण आशु सृजन साहित्य सेवा संस्थान की तरफ से आयोजित कर रहे हैं। दूसरा सिम्पोजियम राजस्थानी बाल साहित्य पर केंद्रित है, जो 24 को आयोजित होगा। जिस भाषा का बाल साहित्य समृद्ध होता है वो भाषा सदा जीवित रहती है। राजस्थानी बाल साहित्य पर केंद्रित ये सिम्पोजियम खास महत्त्व का है। दो नये और अनूठे विषयों पर मंथन के लिए साहित्य अकादमी, नई दिल्ली व डॉ अर्जुन देव चारण का आभार।
बीकानेर की ये रहेगी भागीदारी:
बीकानेर को इन दिनों राजस्थानी साहित्य का गढ़ माना जाता है। यहां राजस्थानी में हर विधा में खूब लिखा जा रहा है। श्रीगंगानगर के दो सिम्पोजियम में बीकानेर के हरीश बी शर्मा, प्रमोद चमोली, सीमा भाटी व मधु आचार्य इन आयोजनों में भागीदारी करेंगे।
कॉमेडी के जरिये राजस्थानी की जय:
इन दिनों युवाओं, महिलाओं व बुजुर्गों में इंस्टाग्राम, फेसबुक व यूट्यूब का जबरदस्त क्रेज है। इनको देखने वालों की तादात असंख्य है। कुछ खुद रील, छोटी स्टोरी बनाते हैं तो कुछ स्थायी रूप से इनको देखने वाले हैं। ये लोग भले हो अपने फॉलोवर्स बढ़ा रहे हों, कोई लाभ कमा रहे हों, धन अर्जित कर रहे हों, मगर ये मायड़ भाषा राजस्थानी की भी खूब सेवा कर रहे हैं। क्योंकि इनकी कॉमेडी देखने वाले देश – विदेश में बसे हैं। जो इनके हर नये अपलोड का इंतजार करते रहते हैं।राजस्थानी में हरियाणवी मिक्स करते है कुछ तो। मगर अधिक जोर राजस्थानी पर रहता है। पूरी दुनिया में राजस्थानी व मारवाड़ी बसे हैं। ये कॉमेडियन राजस्थानी भाषा की बड़ी सेवा कर रहे हैं और हमारे मान्यता आंदोलन को मजबूत कर रहे हैं।
बीकानेर के मुकेश सोनी व उनकी टीम, के के रंगा व उनकी टीम, युधिष्टर सिंह भाटी व उनकी टीम, बंटी हर्ष व उनके साथी, उदय व्यास व उनके साथी आदि वे नाम है जो अपनी कॉमेडी के जरिये राजस्थानी भाषा की बड़ी सेवा कर रहे हैं। जिनको सेल्यूट किया जाना चाहिये। ये हमारी भाषा की ताकत को न केवल राजस्थानियों तक अपितु अपने देश के दूसरी भाषा के लोगों तक भी पहुंचा रहे हैं। मायड़ भाषा की ताकत इस बात से साबित होती है कि इनको देखने वाले असंख्य है।
लो बीत रहा एक साल:
राज्य में भजनलाल सरकार को बने एक साल पूरा होने को है और सरकार इसके बड़े जश्न की तैयारी कर रही है। कई काम किये हैं तो उनका गुणगान होगा और कई नए करने का ढोल पीटा जायेगा। अखबारों, टीवी पर बड़े बड़े विज्ञापन भी दिखाई देंगे। सरकारी स्तर पर गांव, शहर व राज्य स्तर पर कई आयोजन कर धन खर्च किया जायेगा।
हर विभाग की तरफ सरकार का ध्यान गया हुआ है और उसकी उपलब्धियों के आंकड़े जुटाए जा रहे हैं ताकि जनता को बताया जा सके कि सरकार ने इतना काम कर दिया। क्या सरकार अपने प्रचार के ढोल पीटते हुए ये बतायेगी कि समाज की सबसे बड़ी जरूरत साहित्य, कला व संस्कृति के लिए एक साल में क्या किया? मायड़ भाषा राजस्थानी के लिए एक साल में क्या किया? क्या ये सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है क्या? अगर नहीं है तो क्यों ????
प्रदेश की संगीत नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी, बाल साहित्य अकादमी, सिंधी अकादमी, पंजाबी अकादमी, उर्दू अकादमी, राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी आदि में एक साल तक भी कोई अध्यक्ष नहीं बनाया गया। सभी काम ठप्प पड़े हैं। क्या इनकी समाज को जरूरत नहीं है। सरकार एक बार तो सोचे।
बता आज कांयी घड़ा घड़ियों:
बीकानेर के पोर्टल, अखबार, ई पेपर आदि में शायद ही कोई ऐसा दिन निकलता हो जिसमें किसी साहित्यिक आयोजन की खबर न हो। खबर होना अच्छी बात है, मगर घूम फिरकर वही लोग खबरों व फोटुओं में रोज अपना दीदार कराते हैं। शायद उन्हीं के कंधों पर इस क्षेत्र का पूरा भार आया हुआ है।
मीडिया वाले शायद नहीं जानते कि ये खबर को खबर नहीं उनकी पीठ पीछे ‘ घड़िया ‘ कहते हैं। इस शब्द की व्यंजना में जायें तो गलत होगा, क्योंकि वो बहुत भद्दी है। ये घड़ियाबाज रोज उठते ही एक ही बात पर सोचते हैं कि आज क्या घड़िया बनायें। आखिरकार तलाश पूरी होती है तो उसके बाद ही अपनी दिनचर्या शुरू करते हैं। कुछ नहीं तो फिर किसी मांग का बयान तो तैयार है। कुछ लोग तो छापेंगे, घड़िया तो खुल ही जायेगा। लिप्सा तो शांत होगी।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।