हे मायड़ भाषा के सपूतों ! माननीयों के सामने चुप रहने से काम नहीं चलेगा! सवाल तो करो !!
RNE, BIKANER .
चुनाव की बिसात बिछी हुई है और हर राजनेता घर घर, हर गली, गवाड़, गांव, चौपाल पर हाथ जोड़कर वोट मांगने पहुंच रहे हैं। राम राम सा से हर वोटर को ये जताने की कोशिश कर रहे हैं कि वो उनका ही है। उनके बीच का है। बात भी आत्मीयता से कर रहे हैं, ये आत्मीयता इसलिए प्रकट व अभिव्यक्त हो रही है क्योंकि वे पूरी बात इस माटी की भाषा राजस्थानी में कर रहे हैं। आत्मीयता का भाव मायड़ भाषा से ही सम्भव है, क्योंकि हिंदी तो कृत्रिम भाषा है। किसी प्रदेश की मातृ भाषा नहीं है। इस भाषा को तो गढ़ा गया है। तब माननीयों की मजबूरी है कि वो मायड़ भाषा राजस्थानी में अपने को अभिव्यक्त कर रहे हैं।
कांग्रेस के नेता गोविंद डोटासरा, भाजपा के सतीश पूनिया, कांग्रेस के करणसिंह उचियारड़ा, प्रताप सिंह खाचरियावास, भाजपा के अर्जुनराम मेघवाल, गजेंद्र सिंह शेखावत, माकपा के बलवान पूनिया आदि अनेक नेता चुनाव में अपने भाषणों के कारण बहुत पॉपुलर है। इसकी एकमात्र वजह उनका मायड़ भाषा मे संबोधन है। अपनी भाषा में बोलकर ही वे प्रसिद्ध हुवै है। इनसे वोटर भी हर सभा मे राजस्थानी में भाषण देने की अपील कर रहे हैं। इस तरह स्पष्ट है कि बोलने और सुनने वालों को अपनी मायड़ भाषा ही अधिक दाय आ रही है यानी पसंद आ रही है।
अब चुनाव में अधिक समय नहीं रह गया प्रदेश की 12 सीटों पर 19 अप्रैल को वोट पड़ जायेंगे और बची हुई 13 सीटों पर 26 को वोट पड़ जायेंगे। फिर ये माननीय हाथ ही नहीं आयेंगे। जो जीतेगा वो देश की बड़ी पंचायत में पहुंचने के बाद मायड़ भाषा को पहले के माननीयों की तरह भूल जायेगा और कृत्रिम भाषाओं का सहारा लेना शुरू कर देगा। मातृ भाषा की पैरवी फिर कैसे करेगा, ये यक्ष प्रश्न है। अपने उम्मीदवार के लिए जो विधायक अभी मायड़ भाषा में वोट मांग रहे हैं वे भी विधानसभा में इस भाषा को भूल जायेंगे। कभी भी राज्य में राजस्थानी को दूसरी राजभाषा बनाने की बात नहीं करेंगे। माननीय एक बार फिर मायड़ भाषा व इसे अपनी अस्मिता मानने वालों को पहले की तरह विस्मृत कर देंगे।
अभी समय है। गली, गवाड़, चौक, चौपाल, गांव में ये घूम रहे हैं, इनसे मायड़ भाषा पर सवाल करना हर राजस्थानी का कर्त्तव्य है। माननीय व सत्ताएं भले ही मायड़ भाषा को भूल जायें पर हम तो अपनी संस्कृति, भाषा व अस्मिता को बचाने के लिए बोलें। यदि हमने चूक की तो आने वाली पीढियां हमें क्षमा नहीं करेगी। राज्य नोकरियो के मामले में दूसरे राज्य के लोगों के लिए चारागाह बना रहेगा और हमारे युवा बेरोजगार भटकते रहेंगे। अभी भी समय है, जागो, सवाल करो, माननीयों को झकझोरो, ये सब हम नहीं करेंगे तो कोई दूसरा तो करने से रहा। हे मायड़ भाषा के सपूतों ! अपनी मां बोली की, अपनी गौरवमयी संस्कृति की, अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए सोचो, सोचकर बोलो भी।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘