जनरंजन : तीन में अटकी भाजपा , किरोड़ी राजे और राठौड़ की अस्पष्टता पर सवाल
RNE, BIKANER.
राज्य की भजनलाल सरकार अपना एक साल पूरा कर रही है। आरम्भ में थोड़ा डगमगाने के बाद सरकार ने खुद को संभाल लिया। अब निर्णय भी हो रहे हैं और उप चुनाव भी भाजपा ने जीते हैं। उप चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस व रालोपा से 4 सीट छीनकर खुद को सफल साबित कर दिया। सीएम भजनलाल शर्मा व प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ की इसे बड़ी चुनावी सफलता माना जाना चाहिए। सरकार ने साबित कर दिया कि उसे विपक्ष जो हल्के में ले रहा था, वो गलत था। उसे उप चुनाव में मुंह की खानी पड़ी।
मगर उप चुनाव में दौसा सीट की हार जरूर भाजपा के लिए चिंता का सबब है। यहां दिग्गज नेता व कृषि मंत्री किरोड़ीलाल मीणा ने अपने भाई के लिए भाजपा का टिकट लिया, मगर वो जीत नहीं सके। बात हार जीत की भी नहीं, हार के बाद किरोड़ी मीणा के बयान की है। उन्होंने अपनी ही पार्टी के नेताओं पर इशारों में हार का ठीकरा फोड़ा और कहा कि जयचन्दों के कारण हार मिली है।
किरोड़ी मीणा को मंत्री पद से इस्तीफा दिए साढ़े तीन माह से भी अधिक हो गये। वे आफिस नहीं जाते न फाइलों को देखते हैं। सीएम ने जब उनके मंत्रालय की समीक्षा बैठक की तो वे उसमें भी नहीं गए। अब भी उनके तेवर तीखे ही दिख रहे हैं। उनके इस्तीफे को लेकर बना असमंजस सरकार व संगठन पर असर डाल रहा है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। अब बड़ा सवाल यही है कि उनका इस्तीफा स्वीकार होगा या नहीं, वे राजी होंगे या नहीं। इस पर स्पष्टता शायद सरकार को शक्ति देगा राजनीतिक रूप से। लगता है इस इस्तीफे पर से अब जल्दी ही सस्पेंस हटेगा।
भाजपा में दूसरा बड़ा सवाल पूर्व नेता प्रतिपक्ष, दिग्गज नेता राजेन्द्र राठौड़ को लेकर है। पार्टी अब भी उनकी भूमिका तय नहीं कर पाई है। इस दिग्गज नेता की भी पूरे राज्य में फॉलोइंग है। वे विधानसभा का चुनाव हार गए, उसके बाद से उनकी भूमिका को लेकर पार्टी के स्तर पर कुछ निर्णय नहीं हो पाया है। लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ाया, राज्यसभा में भी नहीं भेजा गया और प्रदेश अध्यक्ष भी वे नहीं बने। जबकि राज्य के उप चुनाव, हरियाणा व महाराष्ट्र में पार्टी की दी गई हर जिम्मेवारी को पूरा किया। उनकी पार्टी या सरकार में क्या भूमिका रहेगी, इस पर अब भी असमंजस है। उनसे जुड़े कार्यकर्ता प्रतीक्षा ही कर रहे हैं अपने नेता की भूमिका की। सरकार व पार्टी के हित में राठौड़ की भूमिका भी तय होनी चाहिए, अब ये समय की मांग है।
तीसरा सबसे बड़ा नाम है पूर्व सीएम, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे का। विधानसभा चुनाव को एक साल हो रहा है मगर पार्टी में उनकी भी कोई भूमिका स्थायी रूप से तय नहीं हो पाई है। राजे प्रदेश की वो नेता है जिसके समर्थकों में सांसद व विधायक तक शामिल हैं। राज्य के हर गांव तक उनके कार्यकर्ता हैं जो प्रतीक्षा में है कि पार्टी उनकी भूमिका क्या तय करेगी। थोड़े समय पहले उनका नाम राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए चर्चा में आया, तबसे उनके कार्यकर्ता व जन प्रतिनिधि उस चुनाव तक की प्रतीक्षा कर रहे हैं। राजे की भूमिका तय न हो पाने का व्यापक असर सरकार व संगठन, दोनों पर पड़ रहा है, इसमें कोई शक की बात ही नहीं। विधानसभा में सत्र के दौरान भी उनका असर दिखता है। अब वो समय आ गया जब राजे की भूमिका स्पष्ट होनी हित मे है।
राजे, राठौड़ व किरोड़ी को लेकर स्पष्टता ही तस्वीर साफ करेगी और विपक्ष को पीछे धकेल देगी। नहीं तो अभी तो विपक्ष हमलावर है, उप चुनाव के बाद जरूर बैकफुट पर आना पड़ा है। मगर इन तीन बड़े नेताओं की भूमिका पर अब पार्टी निर्णय करे, ये कार्यकर्ता भी चाहते हैं।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।