फिल्म' अग्नि' में किरदार देखकर फायर फाइटर बनी हर्षिणी कान्हेकर
महिला होकर आग से खेलेगी, एक महिला आग पर काबू कैसे पा सकती है। इतने भारीभरकम उपकरण उठाना, भीषण गर्मी, वक्त- बेवक्त की ड्यूटी आदि कोई महिला कैसे कर सकती है। ऐसे लैंगिक पूर्वाग्रहों को चुनौती देते हुए पुरुष प्रधान क्षेत्र में एक नई पहचान बनाई महाराष्ट्र के नागपुर की निवासी हर्षिणी कान्हेकर ने। फिल्म' अग्नि' में सय्यामी खैर का किरदार उनसे ही प्रेरित है।
दृढ़ इच्छाशक्ति वाली और सशक्त महिला फायर फाइटर, हर्षिणी कान्हेकर के लिए यह कभी भी आसान नहीं था, लेकिन हर्षिणी मात्र 26 वर्ष की आयु में अग्निशमन सेवाओं में शामिल हो गईं, जहां पाठ्यक्रम उत्तीर्ण करने के बाद, उनका चयन हुआ और उन्हें 2006 में तेल और प्राकृतिक गैस आयोग में एक फायर इंजीनियर के रूप में नियुक्त किया गया। उनका नाम हमेशा राष्ट्रीय अग्निशमन सेवा महाविद्यालय के अग्नि इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम और विभाग के इतिहास में अंकित रहेगा। वह वर्ष 2002 में पाठ्यक्रम में खुद को नामांकित करने वाली पहली महिला भारतीय बनीं और सफलतापूर्वक इसे पास भी किया।
अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी करने के लिए राष्ट्रीय अग्निशमन सेवा कॉलेज जैसे प्रतिष्ठित और प्रमुख संस्थान से प्रवेश लेने के दौरान वह शुरू में देश के सशस्त्र बलों में शामिल होना चाहती थीं। वे बीसीसी एयर विंग की कैडेट होने के साथ-साथ खेल और अन्य कार की पाठ्येतर गतिविधियों जैसे ग्लाइडिंग, एयरो-मॉडलिंग, माइक्रोलाइट फ्लाइंग में भी समान रूप से अच्छी थी। तभी एनएफएससी की बात हुई, और वह ऐसे प्रमुख संस्थान में शामिल होने की संभावना से बहुत उत्साहित थीं, जिसकी स्थापना वर्ष 1956 में हुई थी।
फायर फाइटर के तौर पर हर्षिणी की जिंदगी का ज्यादातर समय कड़ी मेहनत और ड्रिल एक्टिविटीज में जाता था। बचाव कार्य के दौरान इस्तेमाल होने वाले भारी उपकरणों को संभालने और उठाने में भी उन्होंने अपनी कुशलता प्रमाणित कर दी। इसके अलावा हर्षिणी को भारी वाहनों, पैरामेडिक्स, नगर नियोजन और बचाव तकनीक की भी खास जानकारी थी। कॅरियर के दौरान वे वरिष्ठ अग्निशमन अधिकारी के पद तक पहुंच गई। उन्होंने मुम्बई, कोलकाता और दिल्ली में आग बुझाने का काम किया। साथ ही बाढ़, इमारत ढहने, नदी के उफान और वन्यजीव हमलों के दौरान भी कई बार नागरिकों को बचाया है, जिससे सार्वजनिक सुरक्षा के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता प्रदर्शित होती है।