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पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मोटापे की तेज वृद्धि की दर केवल एक दशक में दोगुनी से अधिक हो गई है

 

RNE NEW DELHI.

भारत में छोटे बच्चों से लेकर किशोरों और वयस्कों तक, सभी आयु वर्गों में अधिक वज़न और मोटापे की समस्या तेज़ी से बढ़ रही है। इस बारे में विशेषज्ञों ने बुधवार को यूनिसेफ़ द्वारा आयोजित स्वस्थ आहार पर राष्ट्रीय मीडिया गोलमेज बैठक में चेतावनी दी। “भारत के कुल रोग-भार में अब सबसे बड़ा योगदान अस्वास्थ्यकर आहार का है लगभग 56 प्रतिशत।” (भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद – राष्ट्रीय पोषण संस्थान)

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यूनिसेफ़ द्वारा हाल ही में जारी की गई चाइल्ड न्यूट्रिशन ग्लोबल रिपोर्ट 2025, के अनुसार मोटापे ने पहली बार वैश्विक स्तर पर स्कूली स्तर के आयु वर्ग के बच्चों और किशोरों में अल्प वज़न की दर को पीछे छोड़ दिया है। आज दुनिया भर में हर दस में से एक बच्चा, यानी 18.8 करोड़ बच्चों में मोटापा हैं। एक समय में जिस मोटापे को सम्पन्नता की निशानी माना जाता था, वही अब बीमारी बन चुका है। जो, निम्न और मध्यम-आय वाले देशों में भी तेज़ी से फैल रहा है, जिसमें भारत भी शामिल है। 
2000 में दक्षिण एशिया के देशों में अधिक वज़न का प्रचलन दर सबसे कम था। 2022 तक, 5–9 वर्ष, 10–14 वर्ष और 15–19 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों में यह लगभग पाँच गुना बढ़ गया।
भारत में बढ़ते आँकड़े
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के आँकड़ों के अनुसार:
पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में अधिक वज़न और मोटापा 127 प्रतिशत बढ़ा है — 2005-06 (NFHS-3) में 1.5 प्रतिशत से 2019-21 (NFHS-5) में 3.4 प्रतिशत तक।
किशोर लड़कियों में 125 प्रतिशत (2.4 प्रतिशत से 5.4 प्रतिशत) और किशोर लड़कों में 288 प्रतिशत (1.7 प्रतिशत से 6.6 प्रतिशत) की वृद्धि दर्ज हुई है।
वयस्कों में, महिलाओं में 91 प्रतिशत (12.6 प्रतिशत से 24.0 प्रतिशत) और पुरुषों में 146 प्रतिशत (9.3 प्रतिशत से 22.9 प्रतिशत) तक मोटापा बढ़ा है, जो एक राष्ट्रव्यापी स्वास्थ्य संकट की ओर इशारा करता है। (NFHS 5 2019-2021)
अनुमान है कि 2030 तक भारत में 2.7 करोड़ से अधिक बच्चे और किशोर (5 से 19 वर्ष) मोटापे के साथ जी रहे होंगे और यह वैश्विक बोझ का 11 प्रतिशत होगा। (CNNS 2016-18)
भारत का आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 बताता है कि देश में अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड - UPF (जंक फूड) की खपत 2006 में 900 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2019 में 37.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई। 2011–2021 के बीच इनकी औसत वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) 13.7 प्रतिशत बढ़ गई।
महामारी के कारण
चाइल्ड न्यूट्रिशन रिपोर्ट के अनुसार फास्ट फूड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य एवं पेय पदार्थ — जो वसा, चीनी और नमक में अत्यधिक होते हैं — धीरे-धीरे फलों, सब्ज़ियों और पारंपरिक आहार की जगह ले रहे हैं। आक्रामक और लक्षित मार्केटिंग अभियान, आसान उपलब्धता के साथ मिलकर, बच्चों और किशोरों की भोजन पसंद को प्रभावित कर रहे हैं।
कई शुरुआती जीवन से जुड़े कारण भी इस स्थिति को और बिगाड़ रहे हैं:
- गर्भावस्था में मातृ पोषण की कमी,
- शिशु में अर्पाप्त आहार, जैसे बचपन में अपर्याप्त स्तनपान,
- सामाजिक और लैंगिक मान्यताएँ, जहाँ अक्सर महिलाएँ और लड़कियाँ सबसे कम और सबसे बाद में खाती हैं।
इसके साथ ही अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य और शक्करयुक्त पेय का बढ़ता सेवन, शारीरिक गतिविधि की कमी और छोटे बच्चों व किशोरों में स्क्रीन टाइम का बढ़ना समस्या को और गंभीर बना रहा है।
यूनिसेफ़ के यू-रिपोर्ट पोल (171 देशों के 13–24 वर्ष के किशोरों और युवाओं में) से पता चला कि दो-तिहाई से अधिक किशोर और युवा लोग अस्वस्थकर खाद्य विज्ञापनों के संपर्क में आते हैं।
- 75 प्रतिशत ने शक्करयुक्त पेय, फास्ट फूड या स्नैक्स के विज्ञापन पिछले हफ्ते देखे थे।
- इनमें से 52 प्रतिशत ने सोशल मीडिया पर, 46 प्रतिशत ने इंटरनेट पर और 43 प्रतिशत ने टीवी पर विज्ञापन देखे।
- पाँच में से तीन युवाओं ने कहा कि इन विज्ञापनों ने उन्हें दिखाए गए उत्पाद खाने की इच्छा दिलाई।
यूनिसेफ़ इंडिया की चीफ़ न्यूट्रिशन मारी-क्लॉड देज़ीलेट्स ने कहा कि, “इस स्तर के मीडिया एक्सपोज़र और अस्वास्थ्यकर भोजन की आसान पहुँच के साथ, भारत भी बच्चों और किशोरों में अधिक वज़न और मोटापे में तेज़ वृद्धि के उसी वैश्विक रुझान का अनुसरण कर रहा है। देश कुपोषण के तिहरी बोझ का सामना करना शुरू कर रहा है — ठिगनापन और वेस्टिंग, सूक्ष्मपोषक तत्वों की कमी और मोटापा — जो अक्सर एक ही परिवार या यहाँ तक कि एक ही व्यक्ति में सह-अस्तित्व में होते हैं। भारत के पास अभी कार्रवाई करने का एक उचित अवसर है ताकि बच्चों में अधिक वज़न और मोटापे को रोका जा सके।”
वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन का अनुमान है कि 2019 में मोटापे से जुड़ी लागत लगभग 29 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जो भारत के जीडीपी का 1 प्रतिशत है। यदि तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो 2060 तक यह लागत 839 बिलियन डॉलर — यानी जीडीपी का 2.5 प्रतिशत तक पहुंच सकती है। 
इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ, दिल्ली के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विलियम जो, असिस्टेंट प्रोफेसर ने खराब आहार की उच्च लागत पर जोर दिया, उन्होंने कहा कि, “खराब आहार की स्वास्थ्य के लिए कीमत बहुत ज़्यादा है, जो गैर-संचारी रोगों जैसे (डायबिटीज, हृदय संबंधी रोग, उच्च रक्तचाप, कैंसर आदि) की महामारी को बढ़ा रही है। बचपन या किशोरावस्था में एक बार मोटापा हो जाने के बाद इससे उभर पाना बहुत मुश्किल है और यह वयस्कता तक लगातार बना रहता है। इसके आर्थिक और मानसिक प्रभाव भी गंभीर होते हैं, जैसे घरेलू बचत खत्म होने से लेकर भेदभाव और आत्मसम्मान की कमी होने तक।“
भारत सरकार की पहल
भारत ने कई अहम कदम उठाए हैं — फ़िट इंडिया मूवमेंट, ईट राइट इंडिया अभियान, पोषण अभियान 2.0, स्कूल आधारित स्वास्थ्य और वेलनेस कार्यक्रम। इसके अलावा स्कूलों और दफ़्तरों में चीनी और तेल बोर्ड लगाने की गाइडलाइन भी जारी की गई है। माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में परिवारों से तेल की खपत 10% कम करने का आग्रह किया।
रिपोर्ट में भारत को पहला निम्न-मध्यम आय वाला देश माना गया है जिसने ट्रांस-फैट को सीमित करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की सर्वोत्तम नीति को अपनाया है — साथ ही “ईट राइट” स्कूलों के माध्यम से स्वस्थ आहार को बढ़ावा देने की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं।
“लेट्स फ़िक्स आवर फ़ूड” (LFOF) समूह की सिफ़ारिशें
आई सी एम आर - राष्ट्रीय पोषण संस्थान (एन आई एन), यूनिसेफ व अन्य साझेदारों द्वारा संचालित इस समूह ने मज़बूत उपायों की अपील की है - 
वसा, नमक व चीनी से भरपूर खाद्य पदार्थों और पेय पर स्वास्थ्य कर 
फ्रंट ऑफ़ पैक पोषण लेबलिंग 
जंक फ़ूड के विज्ञापनों पर नियंत्रण 
डबल ड्यूटी एक्शन के अंतर्गत अपोषण व मोटापे, दोनों को सरकारी योजनाओं (ICDS , PM-POSHAN ) में सम्बोधित किया जाये 
बच्चों व युवाओं के लिए पोषण साक्षरता और कौशल विकास को बढ़ावा दिया जाये
यूनिसेफ़ इंडिया के डिप्टी रिप्रेज़ेंटेटिव (प्रोग्राम्स), आर्यन डे वाख़्ट ने कहा कि, ““आज कुपोषण केवल अल्पपोषण तक सीमित नहीं रहा है — अस्वास्थ्यकर भोजन और पेय पदार्थों से तेज़ी से बढ़ता मोटापा, बच्चों और युवाओं में गैर-संचारी रोगों को बढ़ा रहा है। यदि हमने तुरंत और सशक्त नीतिगत कदम नहीं उठाए — जैसे आसान फ्रंट-ऑफ-पैक पोषण लेबलिंग, अस्वास्थ्यकर भोजन के विज्ञापनों को नियंत्रित करना, ऐसे खाद्य पदार्थों पर स्वास्थ्य कर लगाना, और बच्चों व युवाओं को पोषण संबंधी कौशल से सशक्त बनाना — तो भारत अब तक बच्चों के स्वास्थ्य में की गई उपलब्धियों को खो देगा और करोड़ों लोग जीवनभर खराब स्वास्थ्य के जोखिम में फँस सकते हैं। हर बच्चे के अच्छे पोषण के अधिकार की रक्षा करना — सरकार, नागरिक समाज, व्यवसाय और सामुदायिक नेताओं — सभी की साझा ज़िम्मेदारी है।”