शहरी निकाय में पार्षद बनने के लिए योग्यता 10 वीं या 12 वीं पास होना जरूरी, मंत्री ने शैक्षणिक योग्यता का प्रस्ताव सीएम को भेजा
एक निश्चित योग्यता दिखेगी निकायों में
भाजपा सरकार की इस तरह की दूसरी कोशिश है ये
मधु आचार्य ' आशावादी '

RNE Special.
राजस्थान में अब शहरी निकायों के चुनाव की तैयारी चल रही है। नगर निगम, नगर परिषद व नगर पालिकाओं के चुनाव शहर की सरकार बनाने के लिए होंगे। जिसकी तैयारी सत्ता के साथ साथ विपक्ष ने भी शुरू कर दी है।
मगर इस बार स्थानीय निकाय चुनाव के लिए राज्य की भजनलाल सरकार ने नियमों में कुछ बदलाव की भी तैयारी की है। अब तक स्थानीय निकाय में पार्षद बनने के लिए किसी भी तरह की कोई शैक्षिक योग्यता का प्रावधान नहीं था, मगर आने वाले चुनाव में यह योग्यता का प्रावधान जुड़ेगा, उसकी पूरी तैयारी की गई है। बात अंतिम चरण में चल रही है।
ये होगी न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता:
राज्य सरकार पार्षद पद के उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता दसवीं या बाहरवीं तय कर सकती है। स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने मुख्यमंत्री के पास इस सम्बंध में औपचारिक प्रस्ताव भेज दिया है। मंत्री और सीएम इस पर चर्चा भी कर चुके है, अब सरकार गंभीरता से निर्णय करने के चरण में है। वर्तमान में शहरी निकाय चुनावों में किसी भी तरह की शैक्षणिक योग्यता की शर्त नहीं है।

पहले भी अनिवार्य हुई थी योग्यता:
शैक्षणिक योग्यता की अनिवार्यता का यह विचार राज्य में पहली बार सामने नहीं आया है। भाजपा पहले भी जब सत्ता में थी तो यह प्रावधान कर चुकी है। वसुंधरा राजे सरकार के दूसरे कार्यकाल में भी पंचायती राज संस्थाओं व शहरी निकायों के प्रतिनिधियों के लिए अनिवार्य शैक्षणिक योग्यता तय की गई थी। मगर सरकार बदली और राज्य में अशोक गहलोत के नेतृत्त्व में कांग्रेस सरकार बन गयी, गहलोत शासन ने इस अनिवार्यता को हटा दिया।

पार्षद प्रतिनिधि व्यवस्था का अंत:
अभी हर शहर या तहसील में एक नया ओहदा भले ही सरकार ने गठित न किया हो मगर इन निकायों के पार्षदों ने अपने आप कर लिया था। यह ओहदा था ' पार्षद प्रतिनिधि '। इस ओहदे को पाने वाले बेधड़क सरकारी बैठकों में भी जगह पा जाते थे। जनता से डीलिंग का काम भी कर लेते थे। अफसरों को इस ओहदे का हवाला देकर बात भी कर लेते थे। और तो और, अपने वाहन पर शान से यह पोस्ट भी लिखवा लेते थे। अब शैक्षणिक योग्यता का निर्धारण होने के बाद यह ओहदा समाप्त होगा। कोई भी पढ़ी लिखी महिला नहीं चाहेगी कि वो प्रतिनिधि बनाये, खुद सक्रिय रहना चाहेगी। शहरी निकायों का संचालन अधिक जिम्मेदारी के साथ होने लगेगा। राज्य सरकार या केंद्र सरकार की योजनाएं जमीनी स्तर पर आसानी से लागू हो सकेगी। कुछ सत्ताधारी दल के नेताओं का तो ये भी सुझाव है कि यह शैक्षणिक योग्यता स्नातक तक कर दी जानी चाहिए।

वर्तमान में पार्षदों की स्थिति:
राज्य में जो वर्तमान में पार्षद है उनकी योग्यता को देखें तो सरकार का ये प्रयास सार्थक लगता है। वर्ष 2019 के निकाय चुनावों के अनुसार निरक्षर से 10 वी तक के 3997 पार्षद है। स्नातक पार्षद केवल 1514 और स्नातकोत्तर 783 पार्षद है। इस लिहाज से यदि न्यूनतम शैक्षिक योग्यता का निर्धारण किया जाता है तो परिणाम तो बेहतर मिलेंगे।
यदि पार्षद इस तरह की शैक्षिक योग्यता वाले बनेंगे तो फिर विधायक भी बेहतर शैक्षिक योग्यता रखने वाले सामने आयेंगे। लोकतंत्र भी मजबूत होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि शैक्षणिक योग्यता का निर्धारण शहरी विकास के लिए वरदान साबित होगा।

