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पत्रकार, पूर्व मेयर भवानी शंकर शर्मा ' भवानी भाई ' की आज पुण्यतिथि है, मेरे गुरु राजनीति में भरोसे का पर्याय थे

लाल बत्ती मगर सड़क पर फक्कड़ की तरह चलते थे
पत्रकारों, राजनेताओं की एक पीढ़ी तैयार की जिन्होंने
 

मधु आचार्य ' आशावादी '
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RNE Special.

हर समय चेहरे पर मुस्कान, आने वाले का आगे बढ़कर सम्मान, हरेक की बात को सुनने का धैर्य, गुस्से को कोसों दूर रखने वाले उस शख्स को पूरा बीकानेर ही नहीं, पूरा राजस्थान ' भवानी भाई ' कहता था। 
 

चाहे मंत्री हो या मुख्यमंत्री, चाहे विपक्ष का नेता हो, चाहे राज्य के प्रमुख अखबारों के मालिक या संपादक हो, चाहे देश के बड़े साहित्यकार हो, चाहे स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा स्वतंत्रता सेनानी हो, चाहे गरीब मजदूर हो या अरबपति, बच्चा हो या बुजुर्ग -- हरेक के मुंह से उनके लिए ' भवानी भाई ' शब्द ही निकलता था। वे भी उसी आत्मीय भाव से कहने वाले पर अपनी मुस्कान लुटाते थे। तभी तो सबके भाई थे।
 

गरीब - मजदूर के साथ:
 

अपने पत्रकारिता व राजनीति के जीवन में वे हमेशा गरीब, मजदूर के साथ रहे। उसकी आवाज को उठाया। उनके हकों के लिए यदि संघर्ष करना पड़ा तो भी पीछे नहीं हटे। उनके घर के दरवाजे और सरकारी कार के द्वार हमेशा गरीब, मजदूर, बुद्धिजीवी आदि के लिए खुले थे। वे कार में घूमना कम, सड़क पर चलने में ज्यादा भरोसा रखते थे। ताकि हरेक से मिल सके, उसके हाल पूछ सके।
 

कुशल पत्रकार थे वे:
 

भवानी भाई पहले ऐसे राजनेता थे जो कुशल पत्रकार भी थे। जनता के हक की आवाज वे पत्रकार के रूप में भी उठाते थे। वे बीकानेर में राजस्थान पत्रिका के वर्षों तक संवाददाता रहे। श्रध्येय कर्पूर चंद जी कुलिश के निकटस्थ थे और वे भी भवानी भाई का बहुत सम्मान करते थे, स्नेह रखते थे।
 

वे राष्ट्रदुत के बीकानेर के संपादक भी रहे। इस समाचार पत्र के मालिकों राजेश शर्मा जी, राकेश शर्मा जी से उनके निजी सम्बंध थे। भवानी भाई ने निष्ठावान पत्रकारों की एक फ़ौज बतौर पत्रकार तैयार की , जो आज अलग अलग अखबारों में है या सेवानिवृत्त हो चुके है। 

मुझ जैसे अनेक पत्रकार है जिनको पत्रकारिता का ककहरा उन्होंने ही सिखाया। स्व श्याम शर्मा, मैं मधु आचार्य ' आशावादी ', धीरेंद्र आचार्य, मनमोहन अग्रवाल, गणेश शर्मा, नवीन शर्मा, अनुराग हर्ष, आदि अनेक पत्रकारों ने उनसे बहुत कुछ सीखा है।
 

पहले निर्वाचित महापौर:
 

उनके पास प्रदेश में अनेक बार कैबिनेट दर्जा रहा। वे यूआईटी के दो बार अध्यक्ष रहे, खादी बोर्ड के अध्यक्ष रहे, जिला प्रमुख रहे और पहले निर्वाचित मेयर रहे। जिस समय उन्होंने मेयर का चुनाव लड़ा, उस समय बीकानेर पूर्व व पश्चिम की सीट पर भाजपा के विधायक थे और सांसद भी भाजपा के थे, फिर भी वे अच्छे वोटों से कांग्रेस के टिकट पर महापौर का चुनाव जीते। 
 

विपक्षियों के मन में भी सम्मान:
 

बीकानेर के सभी विपक्षी नेता उनकी सहजता, सरलता, सर्वमान्यता, मृदुल स्वभाव की कद्र करते थे। देश के कानून मंत्री अर्जुनराम जी मेघवाल, दिग्गज नेता देवीसिंह भाटी, स्व गोपाल जोशी, स्व मानिक चंद सुराना आदि नेता उनके स्वभाव के कायल थे। क्योंकि जब वे पद पर रहते तब पक्ष और विपक्ष का भेद नहीं रखते थे, सबको साथ लेकर चलते थे।
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पूर्व सीएम गहलोत के निकटस्थ:
 

भवानी भाई 3 बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत के निजी लोगों में से। उनके साथ उन्होंने वर्षों काम किया। चुप रहकर वे काम को अंजाम देते थे। लोगों के अनुसार वे गहलोत की कीचन कैबिनेट के सदस्य थे। गहलोत भी उन्हें भवानी भाई कहकर ही पुकारते थे। वे बीकानेर कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, कांग्रेस के प्रदेश महासचिव रहे, प्रदेश प्रवक्ता रहे, एआईसीसी के सदस्य रहे। वे निष्ठावान व समर्पित पार्टी कार्यकर्ता माने जाते थे। 

शहर की सरकार, कांग्रेस से अपेक्षा:
 

इतने बड़े, इतने लोकप्रिय, इतने लोगों के दिल में बसे हुए भवानी भाई को पूरा शहर चाहता है। शहर की अपेक्षा वर्षों से है, उनकी एक प्रतिमा किसी प्रमुख चौराहे पर हो। इसके लिए कांग्रेस शासन में प्रयास भी हुए, मगर फलीभूत नहीं हुए। वे तो विपक्ष के लिए भी सर्वमान्य थे। शहर इस सरकार व कांग्रेस से अपेक्षा रखता है कि उनकी प्रतिमा लगे। यदि नहीं लगे तो ये कृतघ्नता होगी। बीकानेर ऐसा शहर तो नहीं।

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