नाट्य गुरु डॉ चारण पर केंद्रित अंक एक दस्तावेज बना, साहित्यकारों, रंगकर्मियों व शोधार्थियों के लिए उपयोगी अंक
' कथेसर ' ने एक इतिहास रच दिया इस अंक के प्रकाशन से
मधु आचार्य ' आशावादी '

RNE Special.
राजस्थानी भाषा की तिमाही ' कथेसर ' ने इस बार अपना अंक राजस्थानी कवि, आलोचक, नाट्य गुरु डॉ अर्जुन देव चारण के सृजन पर केंद्रित कर निकाला है। इस अंक का लोकार्पण 30 अक्टूबर को जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के राजस्थानी विभाग के सभागार में प्रदेश के रचनाकारों की उपस्थिति में हुआ। खुद डॉ चारण इस अवसर पर उपस्थित थे।

एक अर्थ में 30 अक्टूबर को ' कथेसर ' पत्रिका और उसके संपादक रामस्वरूप किसान व डॉ सत्यनारायण सोनी ने इतिहास रच दिया। राजस्थानी साहित्य जगत के लिए उस दिन का लोकार्पण समय के कपाल पर एक अमिट रेखा खींच गया। साहित्य व रंगकर्म के क्षेत्र में अनेक लोग आए है, ऐतिहासिक काम भी अर्जुन जी की तरह किया है, ये सच है। मगर अर्जुन जी ने जिस तरह पूरे प्रदेश में साहित्य व रंगकर्म में शिष्यों की बड़ी फ़ौज खड़ी की है, वो काम कोई नहीं कर सका है। ऐसे कर्मयोद्धा, साहित्य ऋषि पर कथेसर का अंक निकाल इसके संपादकों ने स्तुत्य कार्य किया है। इस कारण समय के कपाल पर ये एक अमिट रेखा जैसा है। डॉ चारण के राज्य भर के शिष्य कथेसर टीम से उपकृत हुए है।

हाथ पकड़ने वाले ऋषि है अर्जुन जी:
पिछले 3 दशक से अदब की दुनिया मे भी पवित्रता कम देखी गयी है। अदब के लोग एक दूसरे की टांग खींचने में लगे हुए है। कोई किसी की सराहना नहीं करता, नुकसान करने से कभी नहीं चूकता। उस दौर में डॉ चारण हाथ पकड़ने वालों की पंक्ति में अकेले खड़े दिखते है।

बाकी लोग टांग खींच नीचे घसीटने की कोशिश करते है, मगर अर्जुन देव चारण हाथ पकड़कर युवा प्रतिभा को ऊपर खींचने के लिए अपनी शक्ति लगाते है। अपनी तरह के अलहदा इंसान है डॉ अर्जुन देव चारण। इसलिए ये कहना सही है कि कथेसर टीम ने ऐतिहासिक कार्य किया है।
नाट्य कृति ' पंचम वेद ' बड़ा काम:
भरतमुनि के नाट्य शास्त्र को पंचम वेद की संज्ञा दी गयी है भारतीय परंपरा में। 1000 साल पहले अभिनव गुप्त ने पंचम वेद पर टीका की थी। उसके बाद सरल हिंदी भाषा में डॉ चारण ने ' पंचम वेद ' प्रकाशित की है। जो रंगकर्मियों के लिए गीता, कुरान या बाइबिल से कम नहीं। इसके कारण ही अर्जुन देव जी को देश के रंगकर्मी नाट्य गुरु से संबोधित करते है। पंचम वेद को समूचे विश्व की अनुपम नाट्य कृति माना जाता है। ऐसे नाट्यगुरु पर कथेसर का विशेषांक आना एक कलात्मक सोच का ही परिणाम है, जिसके लिए रामस्वरूप किसान और डॉ सत्यनारायण सोनी साधुवाद के पात्र है।

झलकता है बहुआयामी व्यक्तित्त्व:
कथेसर के इस विशेषांक में डॉ अर्जुन देव चारण का बहुआयामी व्यक्तित्त्व झलकता है। रामस्वरूप किसान का संपादकीय भाव विभोर करने वाला है। इसके अलावा डॉ सत्यनारायण , डॉ गजेसिंह राजपुरोहित, डॉ मंगत बादल, डॉ नीरज दइया, डॉ जितेंद्र सोनी, डॉ सुरेश साल्वी, शिव बौधि, डॉ रामरतन लटियाल, डॉ प्रकाश दान, संतोष चौधरी व डॉ सत्यनारायण सोनी के आलेख है जो उनके साहित्य व कला पक्षों को उजागर करते है। इसके अलावा डॉ राजेश कुमार व्यास ने डॉ अर्जुन देव चारण का लंबा साक्षात्कार लिया है, वो भी शामिल है। डॉ चारण की कविताएं भी संग्रह में है। इन सब आलेखों से डॉ अर्जुन देव चारण का बहुआयामी व्यक्तित्त्व सामने आता है।

मायड़ के लाडले का सम्मान:
कथेसर का यह विशेषांक निकालकर रामस्वरूप किसान व सत्यनारायण सोनी ने मायड़ भाषा के लाडले सपूत का सम्मान किया है। डॉ चारण राजस्थानी के लिए ही समर्पित है। जीवन हर पल उन्होंने मायड़ भाषा राजस्थानी को अर्पित किया हुआ है।
कथेसर का यह विशेषांक एक बड़ा व पुनीत साहित्यकर्म है। इस जैसा अंक निकलना मुश्किल है, अब तक तो नहीं निकला। एक पठनीय, संग्रहणीय व अपनी लाइब्रेरी में रखने योग्य है यह विशेषांक।

