कहानी महात्मा गांधी के सबसे बड़े बेटे हरिलाल की, जो मां का दुलारा और बाप से कुंठित था
RNE Special.
जी हां आप सही पढ़ रहे है। हम बात कर रहे है महात्मा गांधी के सबसे बड़े बेटे हरिलाल गांधी की जिसने इस्लाम कबूल किया और नाम रखा 'अब्दुल्ला' गांधी। 29 मई 1936 को हरिलाल ने मुंबई की जुम्मा मस्जिद में इस्लाम कबूल कर लिया लेकिन बाद में आर्य समाज से प्रभावित होकर वापस आए । हरि के इस्लाम कबूल करने के फैसले ने समाज में खलबली और परिवार में भारी पीड़ा का दौर शुरू किया।
पिता से रोष ने अस्थिरता की तरफ धकेला :

जानकारी के अनुसार हरिलाल का जीवन बेहद उतार-चढ़ाव भरा रहा। हरि की चाहत इंग्लैंड जाकर डॉक्टर बनने की थी लेकिन गांधी ने उन्हें विदेश जाने का मना कर दिया और देश में ही रहकर पढ़ाई करने को कहा इस बात ने हरी के मन में कुंठा का बीज बोया। इसके बाद हरिलाल के मन में भटकाव शुरू हुआ और उस भटकाव ने जीवनभर पीछा नहीं छोड़ा फिर हरिलाल नशाखोरी से लेकर अन्य गलत कार्यों में संलग्न हो गए साथ ही उनकी पत्नी का देहांत भी कम उम्र में हो गया जिससे वे पूरे मानसिक रूप से टूट गए।
पिता की चेतावनी, मां कस्तूरबा का मार्मिक संदेश :

हरिलाल के अपने पिता महात्मा गांधी से हमेशा ही वैचारिक मतभेद थे वे अपने आप को हमेशा ही गांधी की छाया में दबा महसूस करते थे। उनका इसी स्वभाव ने उनके जीवन को पूरी तरह लील लिया। जब हरिलाल ने वर्ष 1936 में इस्लाम कबूल किया तो गांधी ने उन्हें अपने समाचार पत्र के माध्यम से चेताया कि "यदि यह धर्म परिवर्तन समझ-बूझ से हुआ है तो ठीक, पर यदि यह भोग और वासनाओं के लिए है , तो दुखद है"। इतना ही नहीं मां कस्तूरबा ने भी एक मार्मिक संदेश लिखा कि " तेरे धर्म परिवर्तन ने मुझे दुख दिया पर जब सुना तू सुधार का निश्चय कर चुका है, तो मेरे हृदय में आशा की लौ जली"
आर्य समाज की सीख, कुछ ही महिनों में घर वापसी :
हरिलाल इस्लाम कबूल करने के मात्र 5 महीने बाद यानी नवम्बर 1936 को आर्य समाज के प्रयास से वापस हिन्दू धर्म में आ गए।

बापू के जाने के कुछ ही महीने बाद निधन :
महात्मा गांधी के निधन के कुछ महीनों बाद ही जून 1948 में हरिलाल गांधी का भी निधन हो गया। वे जीवनभर अस्थिर रहे साथ ही कुंठा से भरी गुमनामी में अपना जीवन व्यतीत किया।

