समर्थकों सहित 36 पार्षदों वाली कांग्रेस के 20 पार्षद भी सदन में नहीं पहुंचे
आरएनई, बीकानेर।
भाजपा शासित बीकानेर नगर निगम की बजट बैठक में मुद्दों पर बहस या चर्चा तो दूर की बात उलटे विपक्षी दल कांग्रेस की फजीहत खुलकर सामने आ गई। खुद के 30 और छह समर्थकों वाले कांग्रेस गठबंधन दल में से लगभग 20 पार्षद ही सदन में पहुंचे। नेता प्रतिपक्ष चेतना डोटासरा और आनंदसिंह सोढ़ा बजट भाषण के बीच मेयर को टोका-टोकी कर प्रतिपक्ष की रस्म निभाते नजर आये।
हमने अपना धर्म निभाया, जो नहीं आये वे अपनी जाने: चेतना डोटासरा
निगम में कांग्रेस पार्षद दल के सदस्य कम होने के सवाल पर नेता प्रतिपक्ष चेतना डोटासरा पहले तो कुछ भी कहने से कतराती रही। बोली, हो सकता है कोई बीमार हो, किसी के व्यक्तिगत काम हो, इसलिये नहीं आया हो। हमारे बीच फूट या लड़ाई जैसी कोई बात नहीं है। बाद में कुरेदने पर कहा, मैं सदन में थी। हमारे लगभग 20 पार्षद सदन में थे। पहले जिन लोगों के नाम आये थे कि वे बहिष्कार करेंगे या नहीं आएंगे उनमें से भी कई सदस्य मौजूद थे। हमने अपना धर्म निभाया है। जिन्होंने नहीं निभाया वे अपनी जाने। इस मसले को पार्टी फोरम पर ले जाने या जिले से लेकर प्रदेशाध्यक्ष तक शिकायत करने के मसले पर कहा, पार्टी में जो बात करनी होगी उचित अवसर पर करेंगे। वैसे सभी जानते हैं। बातों-बातों में चेतना ने यह भी कह दिया कि नेता प्रतिपक्ष एक ही बनता है। हमेशा वही व्यक्ति रिपीट हो यह जरूरी नहीं।
जावेद परिहार का ‘गुगली’ जवाब, पहले मीटिंग बुलाकर बात नहीं की:
लगभग 15 सदस्यों के साथ मीटिंग से बाहर रहकर पार्टी और सदन के मंच पर अपनी ताकत का अहसास करवाने वाले पूर्व नेता प्रतिपक्ष जावेद परिहार ने सदन में नहीं आने के सवाल पर बड़ा ही ‘गुगली’ जवाब दिया। बोले, नेता प्रतिपक्ष ने मीटिंग नहीं बुलाई थी। कुछ दिन पहले समाचार आया था कि वे बीमार है। ऐसे में मीटिंग से पहले कोई बात नहीं हो पाने से मुद्दों पर चर्चा नहीं कर सके। इतना ही नहीं हम लगातार देख रहे हैं कि महापौर महज आंकड़ों का बजट पेश करती हैं। धरातल पर काम नहीं होते। ऐसे में महापौर ऐसे थोथे बजट का बहिष्कार किया।
मामला क्या है:
दरअसल बीकानेर नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष पद के चुनाव से ही दो गुट आमने-सामने हैं। पूर्व नेता प्रतिपक्ष जावेद परिहार नेता प्रतिपक्ष के लिए फिर से दावेदार थे। पार्टी ने चेतना डोटासरा को नेता बना दिया। इसके बाद से ही 36 का आंकड़ा साफ दिख रहा है जो निगम की आखिरी बजट बैठक में खुलकर सामने आ गया और कांग्रेस पूरी तरह बिखरी हुई नजर आई।
27 महीने बाद तय हुए नेता प्रतिपक्ष :
खींचतान का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है की नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष के पद पर चुनाव के 27 महीने बाद नाम तय हो सका। लगभग हर मीटिंग में फूट साफ दिखी। आयुक्त रहे गोपालराम बिरदा के एक पार्षद के साथ व्यवहार के बाद दोनों पक्ष आमने-सामने दिखे थे। तत्कालीन मंत्री बी.डी.कल्ला ने सर्किट हाऊस में सभी पक्षों के साथ मीटिंग कर मामला शांत करवाया था।