ये बेरुखी भारी पड़ेगी ! साहित्य, संस्कृति, भाषा, बजट का हिस्सा ही नहीं क्या ?,
Jul 26, 2024, 09:07 IST
- मधु आचार्य "आशावादी"
बजट का सांस्कृतिक विवेचन :
"देश कई सामाजिक समस्याओं से घिरा है। आतंकवाद, सांप्रदायिकता, तनाव, अपराध, अशिक्षा आदि की समस्याएं पूरे देश के ढांचे को झकझोर रही है। इन समस्याओं का निदान तो केवल साहित्य, संस्कृति, भाषा से ही सम्भव है, ये दुनिया का हर समझदार इंसान जानता है। फिर राज्य व देश के बजट में कहीं भी ये विषय प्रमुखता से क्यों नहीं आये ?"

15 दिन की अवधि में दो बजट आये। पहले राजस्थान सरकार का 10 जुलाई को और फिर 23 जुलाई को देश की सरकार का बजट आया। दोनों बार दो दिन तक टीवी चैनल पर व अखबारों में बजट की बातें छाई रही। स्थानीय, प्रदेश स्तरीय व राष्ट्रीय नेताओं की बजट पर प्रतिक्रिया आई, दिखी और छपी। कर्मचारियों, अर्थशास्त्र के जानकारों, चिकित्सकों, रक्षा विशेषज्ञों, किसानों व कृषि जानकारों आदि की राय भी दोनों बजट पर आई। अखबारों के कई पन्ने बजट पर रंगे हुए थे। कोई बजट के किसी हिस्से के पक्ष में बोला तो कोई किसी के विपक्ष में। कुछ ने कुछ पर बजट में कुछ न होने पर भी बात की।



कितना दुःखद समय है ये। देश कई सामाजिक समस्याओं से घिरा है। आतंकवाद, सांप्रदायिकता, तनाव, अपराध, अशिक्षा आदि की समस्याएं पूरे देश के ढांचे को झकझोर रही है। इन समस्याओं का निदान तो केवल साहित्य, संस्कृति, भाषा से ही सम्भव है, ये दुनिया का हर समझदार इंसान जानता है। फिर राज्य व देश के बजट में कहीं भी ये विषय प्रमुखता से क्यों नहीं आये ? इस पर चुप्पी उचित तो मानी नहीं जा सकती। वो भी उस समय जब राज्य व केंद्र में संस्कृति को समर्पित दल की सरकारें है। न सत्ता, न विपक्ष, दोनों का इस तरफ ध्यान क्यों नहीं। चकित करने वाली बात है।

- मधु आचार्य ' आशावादी '
