महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों पर सवाल, समीक्षा होगी, कितनी उचित कितनी अनुचित
RNE Network
राज्य की भजनलाल सरकार ने एक साल पूरा करते ही ताबड़तोड़ निर्णय करने शुरू कर दिए हैं। अशोक गहलोत के बनाये 3 संभागों और 9 जिलों को समाप्त कर दिया। विरोध होना था, हुआ भी, मगर इस विरोध का क्या ? अभी कोई चुनाव तो है नहीं। अब तक ये निर्णय अटका हुआ ही चुनावों के कारण था। 7 सीटों के उप चुनाव थे। जबकि निर्णय तो काफी समय पहले हो गया था, मुहर अब लगी जब कोई चुनाव नहीं।
पिछली सरकार की शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि थी महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम के स्कूल। इन्हें शहरों के साथ साथ गांवों में भी खोला गया। जिसका उद्देश्य यही था कि गांव या शहर का वो बच्चा जो कोचिंग सेंटरों में जाकर अंग्रेजी सीखने की क्षमता नहीं रखता, वो सरकारी स्कूलों के माध्यम से सीख ले ताकि बाद में प्रतियोगी परीक्षाओं में उसे पिछड़ना न पड़े।
इसके लिए पिछली सरकार ने अंग्रेजी के सिद्धहस्त शिक्षकों का चयन किया और इन स्कूलों में लगाया। शिक्षकों को प्रशिक्षण दिलवाया। बच्चों का भी इन स्कूलों के प्रति रुझान बढ़ा। ये भी सही है कि राज्य सरकार पूरे शिक्षक व संसाधन इन अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में उपलब्ध नहीं करा पाई। वो तो धीरे धीरे होता। मगर अंग्रेजी माध्यम की इन स्कूलों का क्रेज बढ़ा, इसमें कोई दो राय नहीं। इन स्कूलों का नाम महात्मा गांधी के नाम पर रखना जरूर लोगों को अखरा था, क्योंकि गांधी आजादी के बाद अंग्रेजी भाषा के पक्ष में कभी नहीं रहे। वे मातृभाषा व हिंदी के पक्षधर थे। साहित्यकार व चिंतक ने तो ये नाम रखने पर आपत्ति का पत्र भी उस समय के सीएम अशोक गहलोत को लिखा था।
अब सरकार ने मंत्रियों की एक कमेटी बना दी है, जो इन स्कूलों की समीक्षा करेगी। विपक्ष व लोगों को यह आशंका है कि यह कमेटी स्कूलों को बंद करने का सुझाव ही सरकार को देगी। इन स्कूलों की स्थिति एक साल में पहले से खराब हुई है। शिक्षक वहां से हट गए हैं और नई कोई सुविधा या संसाधन इन स्कूलों को दिए नहीं गए हैं। शिक्षा मंत्री ने कुछ इन स्कूलों को पहले ही हिंदी माध्यम में बदल दिया है। कहा यह गया कि वहां के लोगों की मांग पर यह निर्णय हुआ है। इसी वजह से यह आशंका बनी हुई है कि कमेटी इन स्कूलों को बंद करने का निर्णय करेगी। शिक्षा मंत्री भी इस कमेटी में एक सदस्य है।
आश्चर्य इस बात का है कि उप मुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा को कमेटी का अध्यक्ष बनाया है और उनके ही क्षेत्र में 30 से अधिक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल हैं। वो बंद करने का निर्णय कैसे करेंगे। पीसीसी चीफ गोविंद डोटासरा ने कहा है कि सरकार के पास कमेटी के सदस्य मंत्री सुमित गौदारा का पत्र है, जिसमें उन्होंने तत्कालीन शिक्षा मंत्री से आग्रह कर अपने क्षेत्र में अंग्रेजी माध्यम की स्कुलें खुलवाई। कमेटी के अन्य मंत्रियों के क्षेत्र में भी ये स्कुलें है। इस सूरत में इनको बंद करने का निर्णय मंत्रियों को लेने में परेशानी तो आयेगी, यह तय है।
व्यावहारिक बात तो ये है कि जिस क्षेत्र में ये स्कूल है, वहां के लोगों की राय के आधार पर निर्णय हो। जहां संसाधनों व शिक्षकों की जरूरत है, वहां उनको जन भावना के अनुरूप उपलब्ध कराया जाए। जहां इन स्कूलों में नामांकन नहीं, शिक्षक नहीं, संसाधन नहीं, लोगों की चाह नहीं, वहां के स्कूलों को भले ही बंद किया जाये। केवल बंद करने के ध्येय से विचार न हो, व्यवहारिकता के आधार पर निर्णय हो। ये शिक्षकों, जनता की, विद्यार्थियों की ईच्छा है। जिसका सम्मान हर लोकतंत्रीय सरकार को करना चाहिए।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।