मीरांबाई के व्यक्तित्व और कृतित्व पर राष्ट्रीय परिसंवाद आयोजित
- मीरां विषयक राष्ट्रीय परिसंवाद-
- मीरां ने अपने कर्म से प्रेम की प्रतिष्ठा स्थापित की : प्रोफेसर अर्जुनदेव चारण
- मीरां का जीवन और सृजन विश्व में अद्वितीय है : प्रोफेसर सत्यनारायण
RNE Network
श्रीमदभागवत गीता में भक्तियोग को ज्ञान एवं कर्मयोग से बड़ा बताया है क्योंकि इसमें आत्मा की प्रतिष्ठा प्रेम के रूप में होती है । मीरां ने अपने कर्म से सकल विश्व में प्रेम की प्रतिष्ठा स्थापित की यह विचार ख्यातनाम कवि-आलोचक प्रोफेसर (डाॅ) अर्जुनदेव चारण ने साहित्य अकादेमी एवं श्री चतुर्भुज शिक्षा समिति के सयुंक्त तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद के उदघाटन समारोह में अपने अध्यक्षीय उदबोधन में व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि एक तरफ जहां मीरांबाई ने मारवाड़ एवं मेवाड़ के यश को सूर्य की भांति प्रकाशमान किया है वहीं उन्होंने समाज की कुरीतियों एवं कुप्रथाओं के विरुद्ध लोक में जन चेतना जगाकर देश को एक नई दशा और दिशा प्रदान की।
संगोष्ठी संयोजक डाॅ.रामरतन लटियाल ने बताया कि ख्यातनाम कवि-आलोचक प्रोफेसर (डाॅ) सत्यनारायण ने कहा कि मीरां बाई अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से पूरे विश्व को प्रभावित किया है । आज जब दुनिया स्त्री विमर्श की बात कर रहा है ऐसे में यह प्रश्न विचारणीय है कि आज से पांच सौ वर्ष पहले मीरां बाई नारी शक्ति के रूप में एक अनुपम उदाहरण है । निसंदेह कृष्ण को अपना आराध्य मानकर अपना जीवन व्यतीत करने वाली मीरां विश्व की एक सर्वश्रेष्ठ कवयित्री है जिनका राजस्थानी भाषा में लिखा भक्ति काव्य विश्व में अद्वितीय है। उदघाटन सत्र का संचालन संगोष्ठी संयोजक डाॅ. रामरतन लटियाल ने किया ।
साहित्यिक सत्र : राष्ट्रीय परिसंवाद के साहित्यिक सत्र प्रतिष्ठित कवि-आलोचक डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित एवं डाॅ.जगदीश गिरी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुए जिसमें डाॅ. रामरतन लटियाल ने मध्यकालीन काव्य परम्परा एवं मीरांबाई तथा डाॅ.रीना मेनारिया ने राजस्थानी लोक मानस में मीरांबाई विषयक आलोचनात्मक शोधपत्र प्रस्तुत किये। इसी कड़ी में डाॅ. सवाईसिंह महिया ने मीरांबाई की भक्ति साधना एवं श्यामसुन्दर सिखवाल ने इतिहास के उज्ज्वल उजास में मीरांबाई विषयक महत्वपूर्ण आलोचनात्मक शोधपत्र प्रस्तुत किए। डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने कहा कि मीरांबाई का जीवन एक अबूझ पहेली है जिसे आज तक कोई भी सुलझा नहीं पाया मगर मीरांबाई के जीवन एवं सृजन पर नई दृष्टि से विचार करने की आवश्यकता है। डाॅ.जगदीश गिरी ने कहा कि मध्यकालीन समय में देश अनेक महिला संत या कवयित्रियां हुई है मगर किसी भी कवयित्री पर मीरां जैसा ना तो सामाजिक दबाव था और ना ही साहस। मीरां का साहस अद्भुत था।
समापन समारोह : समापन समारोह में अपने अध्यक्षीय उदबोधन में ख्यातनाम कवि-आलोचक प्रोफेसर अर्जुनदेव चारण ने कहा कि शास्त्रीय से लोक साहित्य सदैव श्रेष्ठ और विशाल है । इस लोक ने मीरांबाई को जो प्रेम एवं मान-सम्मान दिया वो वाकई में अद्भुत है । इस अवसर पर उन्होंने भारतीय ज्ञान परम्परा के उदाहरण पेश कर मीरांबाई की भक्ति साधना को रेखांकित किया। मुख्य अतिथि उदबोधन में प्रतिष्ठित कवि-आलोचक डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने कहा की मीरां एक पतिव्रता नारी थी उन्होंने ऐसे कोई भी पद नहीं लिखे जो जिससे मारवाड़ या मेवाड़ की प्रतिष्ठा को आंच आये। असल में मीरां के नाम से अनेक अन्य लोगों ने पद लिखकर मेवाड़ राजवंश के विरूद्ध गलत धारणाएं फैला दी जो किसी भी दृष्टि से प्रामाणिक नहीं है। शिक्षाविद भवानीसिंह राठौड़ ने आभार ज्ञापित किया।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में भक्त शिरोमणि मीरांबाई के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलित किया गया। तत्पश्चात दो मिनट का मौन रखकर देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह की दिव्य आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। श्री चतुर्भुज शिक्षा समिति के उपाध्यक्ष नरपतसिंह भानास ने स्वागत उदबोधन दिया। इस अवसर पर भवानी सिंह जी मेङतिया,गोविंद राम बेङा सीबीईओ, श्रीराम खोजा , घनश्याम पारिक लादूसिंह खेतोलाई, इन्द्रसिंह राठौड़, महेंद्रसिंह भैरूंदा, राजुराम फगोड़िया, बंटू सा डॉ. कालू खां, भागीरथदान चारण, रामअवतार दाधीच, मीरां चौधरी, हरभजन ताण्डी, ओमप्रकाश, रामकरण भादू, रामगोपाल सांखला, करमाराम ताडा, सीपी बिड़ला, उम्मेद सिंह मेड़तारोड़, मदनलाल प्रजापति, जितेंद्र सिखवाल, उमेश, मंछीराम पिचकिया, भैराराम गोलिया, रामस्वरूप बेड़ा, नियाज मोहम्मद सथाना, देवेन्द्र सिंह एईएन, रामचंद्र ताडा, नवीन ताडा, चेतन कमेड़िया निकितासिंह चौधरी, नरेंद्र सिंह जसनगर, शोध-छात्र श्री किशन केडीसिंह सोडास, सुरेन्द्र सिंह गेमलियावास , मनोज वर्मा, छोटाराम बोराणा सहित अनेक विद्वान रचनाकार, शिक्षक एवं शोधछात्र मौजूद रहे।