घट स्थापना : सुबह 06.32 से 10.32, दोपहर 12.02 से 12.49 बजे के बीच श्रेष्ठ मुहूर्त
जानिए सब कुछ :
- घट स्थापना करें, त्रिशूल रूपी माता को मनाएं या किसी और तरीके से करें पूजा!
- कब पूजा करें, किस मंत्र के जाप से माता करेगी कल्याण
पं. जितेन्द्र आचार्य
RNE Special.
पूरे देश में शारदीय नवरात्रा का कल यानी 03 अक्टूबर, गुरुवार से शुरू हो रहे हैं। दीपावली से ठीक पहले आने वाला यह नवरात्रा इसलिये खास है क्योंकि यह शक्ति, भक्ति और भाग्यलक्ष्मी तीनों की आराधना के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। यही वजह है पश्चिम बंगाल सहित देश के विभिन्न हिस्सों में खास दुर्गा पूजा मंडप बनते हैं वहीं गुजरात सहित कई हिस्सों में मैया को रिझाने के लिए गरबा खेलते हैं।
एक वर्ष में चार नवरात्रि, इनमें दो साधकों के लिए :
सनातन धर्म के अनुसार वर्ष में चार बार नवरात्रि पर्व मनाया जाता है। इसमें दो प्रत्यक्ष और दो गुप्त नवरात्रि होती है | सभी मौसम परिवर्तन के समय होती है। प्रथम नवरात्रि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से शुरू होती है, इसमें बसंत ऋतु समाप्त होकर ग्रीष्म ऋतु का समय प्रारम्भ होता है। इसी तरह आषाढ में गुप्त नवरात्रि होती है उस वक्त ग्रीष्म ऋतु का समापन होकर वर्षाकाल प्रारम्भ होता है। वर्षा समापन के साथ आश्विन या आसोज मास की नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहते हैं जो कल से शुरू हो रही है। इसके बाद माघ शुक्ल प्रतिपदा से फिर गुप्त नवरात्रि होगी।
ऐसे तय करें घट स्थापना का समय :
इस बार 03 अक्टूबर 2024, गुरुवारआश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रि का शुभारम्भ हो रहा है। इस दिन बहुत सारे लोग घट स्थापना करते है जिसमें कलश में भगवती का स्वरूप मान कर पूजा करते है | घट स्थापना का मुहूर्त प्रतिपदा के मान पर निर्भर करता है। कल 03 अक्टूबर को रात 02.59 बजे तक प्रतिपदा मान होने से सूर्योदय के 4 घंटा तक किया जा सकता है ऐसे में अपने शहर के सूर्योदय का मान ले कर उसके अंदर 240 मिनट जोड़ लेवे। इस दौरान घटस्थापना करने श्रेष्ठ होगा।
मसलन, बीकानेर में यह समय सुबह में 06.32 बजे से दिन में 10.32 बजे तक रहेगा। चूंकि दिन कई परिवारों में नानामह श्राद्ध भी होता है। ऐसे में यह कर्म करने के पश्चात् घट स्थापना करें। इसके साथ ही अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12.02 बजे से दोपहर 12.49 बजे के बीच भी घट स्थापना की जा सकती है।
जो घट स्थापना नहीं करते वो ये करें :
चुंकि बहुत से लोग घट स्थापना नहीं करते है और माता जी का स्वरूप त्रिशूल के रूप में बनाते हैं। वे दोपहर 03.30 बजे तक माता जी का स्वरूप बना कर पूजा कर सकते है | ऐसा इसलिए क्योंकि चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग होने पर शुरू के तीन अंश छोड़ कर चौथे अंश में पूजा करने का नियम है। चित्रा नक्षत्र इस दिन दोपहर 03.30 बजे बाद लगेगा अतः उससे पहले माता जी की पूजा स्थापना कर सकते हैं।
इस मंत्र का जाप करें :
माँ जगदम्बा की स्थापना सही समय पर करके माता जी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही नवरात्रि में नवार्ण मन्त्र “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै” जप सब तरह के वांछित फल देता है। इसके अलावा “दुर्गा सप्तशती” का पाठ भी कर सकते हैं |
माँ दुर्गा की आराधना ऐसे करें :
वैसे सामान्य जन को माता जी की स्थापना उनके परिवार की परम्परा के अनुसार ही करनी चाहिए। जो घट स्थापना नहीं करते वे बाजार से माता जी का त्रिशूल का स्वरूप लाकर या जिस जगह माता जी का स्वरूप वर्षों से बनाते आये है वैसे बना कर पूजा करें। प्रथम दिन माता शैलपुत्री के स्वरूप की पूजा की जाती है। लगातार 8 दिन पूजा करके नौवें दिन या जो लोग अष्टमी के दिन व्रत का पारण करते है वे अष्टमी के दिन 9 कन्याओं को घर में बुला कर उनके पैर धोकर माता जी का स्वरूप मान कर उनकी पूजा करें। यथाशक्ति माँ के रूप वाली कन्याओं को अपनी श्रद्धा अनुसार भेंट देकर उनका सम्मान करें। वैसे कन्याओं को कलम और कॉपी भी भेंट करनी चाहिए।