साहित्य अकादेमी में स्वतंत्रता संग्राम की आदिवासी विरासत पर मंथन
RNE New Delhi.
साहित्य अकादेमी द्वारा आज ऑल इंडिया संताली राइटर्स एसोशिएसन के सहयोग से ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम आदिवासी नायकों की गाथा’ विषयक परिसंवाद, नारी चेतना तथा संताली कवि सम्मिलन का आयोजन किया गया। परिसंवाद का उद्घाटन एवं अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात संताली लेखक तथा असम विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष पृथिवी माझी ने 1770 में तिलका माझी के नेतृत्व में तथा 1855 में सीदो कान्हू के नेतृत्व में हुए संताल विद्रोह का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में इन विद्रोहों को समुचित जगह नहीं दी गई है। उन्होंने असम की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी मांगरी ओरांग नामक आदिवासी महिला का उदाहरण देते हुए कहा कि 1921 में उन्होंने अंग्रेज़ों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी। आगे उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी समुदायों के योगदान को चिह्नित करते हुए नए सिरे से इतिहास लेखन की आवश्यकता है। परिसंवाद का बीज-भाषण करते हुए मदन मोहन सोरेन ने तिलका माझी, सीदो कान्हू, बिरसा मुंडा, चाँद मुर्मु, बीर बजर आदि स्वतंत्रता संग्रामियों का उल्लेख किया। आरंभ में स्वागत वक्तव्य देते हुए साहित्य अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने संताल विद्रोह, अलूरी सीताराम राजू के नेतृत्व में रंपा विद्रोह, रानी गाइदिन्ल्यू के नेतृत्व में मणिपुर के नागा विद्रोह, मेघालय के तिरोत सिंह आदि को संदर्भित करते हुए गुमनाम आदिवासी सेनानियों को केंद्र में रख कर आयोजित इस परिसंवाद की महत्ता पर प्रकाश डाला। आरंभिक वक्तव्य अकादेमी के संताली परामर्श मंडल के सदस्य रवींद्र नाथ मुर्मु द्वारा दिया गया। अंत में श्रीमती स्वप्ना हेम्ब्रम ने औपचारिक धन्यवाद ज्ञापित किया।