Sahitya: स्वतंत्रता की अवधारणा पर साहित्य अकादेमी में विमर्श
RNE New Delhi.
साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली द्वारा रवींद्र भवन सभाकक्ष में भारतीय स्वतंत्रता की 79 वें वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर ‘स्वतंत्रता की अवधारणा और साहित्य’ विषय पर परिसंवाद का आयोजन किया गया जिसमें विभिन्न क्षेत्रों और अलग-अलग भाषाओं के विद्वानों ने भाग लिया। कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव डाॅ. के.श्रीनिवासराव ने अतिथियों का स्वागत करते हुए स्वतंत्रता के अवधारणा के भिन्न आयामों पर प्रकाश डाला। परिसंवाद की अध्यक्षता करते हुए श्रीभगवान सिंह ने बताया कि साहित्यकारों ने साहित्य का उपयोग कैसे अराजक सत्ता के विरुद्ध किया। उन्होंने रामचरितमानस का उल्लेख करते हुए राजा और प्रजा के कर्तव्य और अधिकारों पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने तुलसीदास और गाँधी जी के आदर्शों से स्वतंत्रता की अवधारणा को और बेहतर तरीके से स्पष्ट किया। अशोक तिवारी ने अपने व्याख्यान में कहा कि रचनात्मकता समाजिक प्रगति की नींव है और स्वतंत्रता हमें रचनात्मक साहित्य की गारंटी देता है। प्रो. आईवी. इमोज़िन हांसदा ने आदिवासियों के बीच स्वतंत्रता का अर्थ क्या है, की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कई आदिवासी कवियों की कविताओं का अनुवाद भी प्रस्तुत किया। संपादक, प्रताप सोमवंशी ने अपने संबोधन में बताया कि 1857 के आंदोलन के बाद जब भारतीयों का मनोबल बिल्कुल टूट चुका था, उस समय कैसे वाचिक साहित्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाया और स्वतंत्रता की चेतना को जगाए रखा। उन्होंने कहा कि प्रकाशित साहित्य और वाचिक साहित्य दोनों ने मिलकर स्वतंत्रता की जोत को जगाए रखा।