Sahitya: साहित्य अकादेमी में आशुतोष अग्निहोत्री का काव्य पाठ
RNE New Delhi.
साहित्य अकादेमी में आज ‘साहित्य मंच’ कार्यक्रम के अंतर्गत हिंदी-अंग्रेजी के प्रतिष्ठित कवि आशुतोष अग्निहोत्री के एकल कविता-पाठ का आयोजन किया गया। कविताओं के पाठ से पहले श्री अग्निहोत्री ने अपनी लेखन यात्रा के बारे में बोलते हुए कहा कि मैं अभी भी अपने को यात्रा में ही मानता हूँ। साहित्य मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने का सबसे उत्तम जरिया है, यह मानकर ही मैं अपना लेखन करता हूँ और यह मेरे लिए ध्यान लगाने जैसा है। अपने काव्य पाठ की शुरुआत उन्होंने 2018 में आए अपने पहले काव्य संग्रह ‘स्पंदन’ की कविताओं से की। पहली कविता मैं दीप बनूँ, मैं गीत बनूँ, यह मेरी अभिलाषा है थी। इसके बाद उन्होंने एक दर्जन से अधिक कविताएँ प्रस्तुत कीं। भगवान शिव पर दो कविताओं के साथ ही ही उन्होंने कृष्ण, राधा और कर्ण पर अपनी छंदवद्व कविताएँ प्रस्तुत की तो मानवीय संबंधों की उष्मा को प्रकट करती ऊनी टोपी, रक्षाबंधन ने भी सभी का ध्यान खींचा। जीवन में प्रेरणा पाने के उद्देश्य को इंगित करती कविताएँ - जिद, आत्मा के घाव, एक अकेली कूक और ऐसे ही बड़ा नहीं हो जाता बरगद। भारत पर लिखी कविता भरत और चक्रव्यूह पर आधारित कविता को भी श्रोताओं ने बेहद पसंद किया।
कविताओं के बाद श्रोताओं और कवि के बीच संवाद में उन्होंने श्रोताओं की जिज्ञासाओं का समाधान भी किया। पूछे गए सवालों में कर्ण के चरित्र और छंदवद्व कविता को लिखने के संदर्भ में उन्होंने अपने विचार व्यापक रूप से प्रकट किए। ज्ञात हो कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1999 के बैच के वरिष्ठ अधिकारी आशुतोष अग्निहोत्री के चार हिंदी कविता संग्रह - स्पंदन, ओस की थपकी, कुछ अधूरे शब्द, मैं बूँद स्वयं, खुद सागर हूँ और एक अंग्रेजी कविता संग्रह - लव, लाइफ एंड लोंगिंग भी प्रकाशित हैं। कार्यक्रम के आरंभ में आशुतोष अग्निहोत्री का स्वागत साहित्य अकादेमी के सचिव द्वारा अंगवस्त्रम एवं पुस्तक भेंट करके किया गया। कार्यक्रम में कई विशिष्ट साहित्यकार, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी, कवि एवं पत्रकार उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया।