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पूरे शहर में जलदान के अनुष्ठान, घर-घर ‘फळियार’

आरएनई, बीकानेर।

निर्जला एकादशी के मौके पर पूरा शहर धर्ममय हो गया है। सबसे ज्यादा उत्साह भगवान लक्ष्मीनारायण के दर्शन के प्रति नजर आ रहा है। बीकानेर के नगर सेठ लक्ष्मीनाथ मंदिर के बाहर तड़के चार बजे से दर्शनार्थियों का तांता लग रहा है। ज्यों-ज्यों दिन चढ़ रहा है दर्शनार्थियों की कतार लंबी होती जा रही है।

सभी श्रद्धालु दर्शनलाभ ले सकें इसके लिए हालांकि पुलिस-प्रशासन से लेकर सेवादारा और मंदिर के पुजारियों तक ने विशेष इंतजाम किये हैं। इसके बावजूद बीसियों दर्शनार्थी ‘देखी ध्वजा-राखे लजा’ का उच्चारण करते हुए ‘मानस-दर्शन’ के रूप में मंदिर के शिखर पर लहराती ध्वजा के दर्शन करके भी इसे पूर्ण दर्शन मान लौट रहे हैं।

आखिर है क्या निर्जला एकादशी:

हिन्दू धर्म में वर्ष में 24 एकादशियां होती है। अधिकमास होने पर इनकी संख्या 26 हो जाती है। सभी एकादशियों के व्रत करना श्रेष्ठ होता है। इसके बावजूद जो लोग वर्ष पर्यंत व्रत नहीं रख पाते वे ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को निर्जल व्रत रखकर सभी एकादशियों के व्रत के समान पुण्य प्राप्त करते हैं। इसे निर्जला एकादशी कहते हैं।

बीकानेर में दान-पुण्य का जोर:
निर्जला एकादशी के मौके पर हजारों लोगों ने मथुरा, वृंदावन, ब्रज, गोवर्धन, नाथद्वारा, द्वारिका से लेकर हरिद्वार-ऋषिकेश की ओर कूच किया है। दान-पुण्य के इस मौके पर बीकानेर शहर में भी जगह-जगह जलदान के आयोजन शुरू हो गए हैं। चौक-मोहल्लों से लेकर गली-कूंचों में पाटे लग गये हैं। ठंडाई, शर्बत, सिकंजी, पानी से लेकर फलाहार तक की सेवा उपलब्ध करवाई जा रही है। घरों में आज खासतौर पर फलाहार से ही पारणा होगा। इसे आम बोलचार में ‘फळियार’ कहते हैं।

ये है एकादशी की कथा :
वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो महाबली भीम ने निवेदन किया- पितामह! आपने तो प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में ‘वृक’ नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊँगा?

पितामह ने भीम की समस्या का निदान करते और उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- नहीं कुंतीनंदन, धर्म की यही तो विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता, सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध करवाता है। अतः आप ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। निःसंदेह तुम इस लोक में सुख, यश और प्राप्तव्य प्राप्त कर मोक्ष लाभ प्राप्त करोगे।

इतने आश्वासन पर तो वृकोदर भीमसेन भी इस एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को लोक में पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। निर्जला व्रत करने से पूर्व भगवान से प्रार्थना करें कि हे भगवन! आज मैं निर्जला व्रत करता हूँ, दूसरे दिन भोजन करूँगा। मैं इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करूँगा, अत: आपकी कृपा से मेरे सब पाप नष्ट हो जाएँ। इस दिन जो स्वयं निर्जल रहकर ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा मंत्र के साथ दान करता है।