हिंदी नहीं, राजस्थानी के पास है मध्यकाल का साहित्य
RNE Special
बीकानेर के लिए ये सप्ताह बहुत खास रहा। मायड़ भाषा के रचनाकारों का दो दिन 26 व 27 अक्टूबर को यहां मेला लगा और राजस्थानी साहित्य पर गम्भीर चर्चा हुई। ये आयोजन साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, रमेश इंग्लिश स्कूल व नेहरू शारदा पीठ महाविधालय की बीकानेर को बड़ी सौगात रही। ये सौभाग्य कम ही शहरों को मिलता है जहां दो दिन देश की साहित्य अकादमी आयोजन करे। इसके लिए अकादमी में राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के संयोजक डॉ अर्जुन देव चारण का शहर व राजस्थानी भाषा के समर्थकों को बड़ा उपहार मानना चाहिये।
पहले दिन रमेश इंग्लिश स्कूल में साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ने उनके सहयोग से ‘ राजस्थानी साहित्य और अनुवाद ‘ विषय पर परिसंवाद आयोजित किया। इस आयोजन में डॉ अर्जुन देव चारण के अलावा कैलाश कबीर, रामस्वरूप किसान, डॉ कृष्णा जाखड़, संजय पुरोहित, शंकर सिंह राजपुरोहित, पूरण शर्मा ‘ पूरण ‘, ब्रजरतन जोशी व मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ की भागीदारी रही। वहीं गजेसिंह राजपुरोहित, संतोष चौधरी, गौरीशंकर प्रजापत, नमामी शंकर आचार्य, डॉ प्रशांत बिस्सा, आत्माराम भाटी, असित गोस्वामी, आदि की उपस्थिति बीकानेर के साहित्यकारों के साथ रही। इस आयोजन में गम्भीर पत्र वाचन तो हुए ही, साथ ही अन्य वक्ताओं का प्रभावी व जानकारीपरक संबोधन हुआ।
राजस्थानी के अनुवाद की विगत व उसके महत्त्व के बारे में जानने को मिला। डॉ अर्जुन देव चारण ने अनुवाद को लेकर कई गंभीर बातें कही। उन्होंने कहा कि ज्ञात को फिर से कहना अनुवाद है, इस कारण ये कठिन काम है। मगर अनुवाद ही भाषा को समृद्ध करता है। हमें दूसरी भाषाओं के बराबर ले जाकर खड़ा करता है। अकादमी ने राजस्थानी में अनुवाद का सर्वाधिक काम कराया है। इस सफल आयोजन में रमेश इंग्लिश स्कूल की संचालक सेनुका हर्ष, अमिताभ हर्ष व पूरे स्टाफ का भी बड़ा योगदान रहा।
दूसरे दिन रविवार को नेहरू शारदा पीठ महाविद्यालय के साथ साहित्य अकादमी नई दिल्ली ने ‘ राजस्थानी में मध्यकाल का गद्य साहित्य ‘ विषय पर परिसंवाद आयोजित किया। ये विषय आज तक किसी ने छुआ ही नहीं। इस परिसंवाद से ये बात उभर कर सामने आई कि हिंदी के पास कोई मध्यकाल नहीं है मगर राजस्थानी के पास अपना गौरव करने लायक मध्यकाल का गद्य साहित्य है।
इस परिसंवाद में पढ़े गये डॉ गौरीशंकर प्रजापत, डॉ नमामीशंकर आचार्य, संतोष चौधरी व डॉ सत्यनारायण सोनी के पर्चे आगे के शोध विद्यार्थियों, राजस्थानी साहित्यकारों व इससे पाठकों के लिए नजीर बनेंगे। भाषा मान्यता आंदोलन को भी इससे बल मिलेगा। इनके अलावा डॉ अर्जुन देव चारण, डॉ लक्ष्मीकांत व्यास, गजेसिंह राजपुरोहित, गीता सामोर, अर्जुन सिंह उज्ज्वल व डॉ मदन सैनी के संबोधन मध्यकालीन गद्य साहित्य के उजले पक्ष को उभारने वाले थे। सोने पर सुहागा ये हुआ कि एएसपी के प्राचार्य व सूर्य प्रकाशन मंदिर के संचालक डॉ प्रशांत बिस्सा, जिन्होंने ये परिसंवाद आयोजित किया, उन्होंने इस परिसंवाद की पुस्तक प्रकाशित करने की घोषणा की। ये राजस्थानी साहित्य को उनका बड़ा योगदान होगा। इस आयोजन के लिए डॉ प्रशांत बिस्सा, डॉ गौरीशंकर प्रजापत व एएसपी की पूरी टीम को बधाई दी जानी चाहिए। दो दिन का राजस्थानी साहित्यकारों का ये मेला उपयोगी तो था ही, अरसे तक बीकानेर को याद भी रहेगा।
अनुराग का राजस्थानी कविता से अनुराग:
इस सप्ताह पुराने राजस्थानी कवि अनुराग हर्ष की पहली राजस्थानी कविता की पुस्तक ‘ तीसळती जिंदगाणी ‘ लोकार्पित हुई। वर्षों पहले अनुराग को राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी का भत्तमाल जोशी पुरस्कार मिला था। बाद में वे साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के कई राजस्थानी भाषा के राष्ट्रीय सेमीनार, परिसंवाद में भी भागीदार रहे। बीकानेर में देश का पहला ‘ चिल्ड्रन लिटरेचर फेस्टिवल ‘ भी वे 3 दिन आयोजित करते रहे हैं। उनकी पहली गम्भीर दार्शनिक भावों की काव्य कृति आई है। जिसका लोकार्पण डॉ अर्जुन देव चारण ने किया। कविता के संक्रमण काल मे उनकी कविताएं एक भरोसे का अहसास कराती है। अनुराग को इस पहली काव्य कृति के लिए बधाई। राजस्थानी से अनुराग का ये अनुराग इसी तरह अनवरत रहे, यही कामना है।
उर्दू नज़्म ‘ रामायण ‘ की प्रस्तुति:
बीकानेर के अदब में गम्भीर आयोजन करने में नदीम अहमद नदीम भी एक भरोसे का नाम है। इस बार अपने ‘ अस्मत अमीन सभागार ‘ में उन्होंने यादगार आयोजन किया। जिसमें वरिष्ठ रंगकर्मी जीतसिंह ने उर्दू नज़्म ‘ रामायण ‘ व मस्तान बीकानेरी की ऐतिहासिक नज़्म ‘ इशारा ‘ की शानदार प्रस्तुति दी। शायर मोहिनुद्दीन माहिर व आलोचक ब्रजरतन जोशी को जब ये आयोजन अनूठा व अलहदा लगा तो माना जाना चाहिए कि कितना गरिमामय था। गंगा जमनी संस्कृति को साकार करने के ऐसे आयोजन नदीम सदा करते हैं। जिनकी सादगी में भव्यता होती है और सार्थकता कूट कूट कर भरी होती है। तारीफ रंगकर्मी जीतसिंह की भी की जानी चाहिए, जिन्होंने ये गम्भीर अभिव्यक्ति पूरी ऊर्जा के साथ दी। ये आयोजन अब भी शहर की चर्चा के केंद्र में बना हुआ है। इस आयोजन में माहिर के गज़ल संग्रह ‘ लम्स ‘ का भी लोकार्पण हुआ। बीकानेर के उर्दू अदब के खजाने में एक नगीना जुड़ा।