अब अंग्रेजी माध्यम स्कूलों पर तलवार चलनी तय, हिंदी माध्यम में बदला जायेगा
RNE Special
अब ये लगभग तय सा हो गया है कि राज्य की अनेक महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों पर तलवार चलेगी। इन स्कूलों को हिंदी माध्यम में तब्दील किया जायेगा। विपक्ष आरम्भ से यह आशंका जता रहा था कि सरकार अंग्रेजी माध्यम स्कूलों को बंद करेगा। राज्य सरकार ने जब से इन स्कूलों की समीक्षा के लिए मंत्रियों की समिति बनाई, तब से ही यह आशंका बलवती हो गई थी।
सरकार ने आशंकाओं के बीच इससे पहले गत शासन में बने संभागों व जिलों की समीक्षा के लिए मंत्रियों की एक समिति बनाई थी। उस समय भी विपक्ष ने आशंका जताई थी। परिणाम भी वैसा ही रहा। 3 संभाग और 9 जिले समाप्त कर दिए गए। इस बार भी विपक्ष ने अंग्रेजी माध्यम स्कूलों को लेकर आशंका जताई है, जो काफी हद तक सही साबित होती दिख रही है।
मंत्रियों की पहली बैठक से संकेत:
इन स्कूलों की समीक्षा के लिए मंत्रियों की जो समिति उप मुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा की अध्यक्षता में बनी है, उसकी पहली बैठक बीते मंगलवार को हो गई है। उससे भी कुछ इसी तरह के संकेत मिल रहे हैं। ये माना जा रहा है कि कई स्कूलों का अंग्रेजी माध्यम हटाकर उसे फिर से हिंदी माध्यम की स्कूल में तब्दील किया जायेगा। मंत्रियों की इस बैठक में बैरवा के अलावा मदन दिलावर, गजेन्द्रसिंह खींवसर आदि शामिल थे।
नामांकन व इंफ्रास्ट्रक्चर पर हुई बात:
मंत्रियों की समिति की इस पहली बैठक में नामांकन व इंफ्रास्ट्रक्चर स्थिति का आंकलन किया गया। उसके अनुसार कुछ स्कूलों को वापस हिंदी माध्यम का बनाया जायेगा। समिति के मुखिया के अनुसार हम छात्रों के हितों और अभिभावकों के सुझाव को ध्यान में रखकर निर्णय करेंगे।
इस पहली बैठक में मंत्रियों की समिति ने प्रजेंटेशन लिया। अगली बैठक में रिव्यू रिपोर्ट के आधार पर निर्णय कर लिया जायेगा। इससे ही आशंका बनी हुई है कि अधिकतर अंग्रेजी माध्यम की स्कूलों को हिंदी माध्यम में बदलने का काम होगा।
स्कूलें घटने के संकेत:
मंत्रिमण्डलीय समिति की पहली बैठक के भीतर से जो संकेत निकल के आये हैं उनके अनुसार अंग्रेजी स्कूलों की संख्या घट जायेगी। एकबारगी सबको बंद नहीं किया जायेगा। जिन स्कूलों में नामांकन कम है और सुविधाओं का अभाव है, उनको फिर से हिंदी माध्यम में बदलने का निर्णय होगा। वैसे अंग्रेजी माध्यम की अनेक स्कूलों में नामांकन बहुत कम भी है। सुविधाएं एक साल से इस सरकार ने नहीं दी तो वे भी नहीं है। इनको हिंदी माध्यम में बदलने का निर्णय अगली बैठक में हो सकता है।
नामांकन के लिये जिम्मेवार कौन:
कई अंग्रेजी माध्यम की स्कूलों में वास्तव मे कम नामांकन है। मगर विभाग या सरकार हिंदी माध्यम स्कूलों की तरह इसके लिए जिम्मेवारी क्यों तय नहीं करती। जिनकी गलती है, उन पर विभागीय कार्यवाही हिंदी स्कूलों की तरह होनी चाहिए। इनको खुला रखने की मंशा है तो इनके लिए भी प्रवेशोत्सव जैसे कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए।
जहां तक सुविधाओं की बात है, उसके लिए तो सरकार व विभाग ही जिम्मेवार है। एक साल से तो नई सरकार है, उसने सुविधाएं क्यों नहीं दी। मगर अब तक की कार्यवाही से तो यही लगता है कि अधिकतर स्कूलों को नामांकन व सुविधाओं की कमी के कारण वापस हिंदी माध्यम में बदला जायेगा।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।