ओम सोनी ने अहसास करवाया, अपने बूते सपने पूरे कर सकता है रंगकर्मी
- खुद्दार रंगकर्मी ओम सोनी का जाना सालता रहेगा
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बीकानेर में रवींद्र रंगमंच के निर्माण के लिए ढाई दशक से ज्यादा आंदोलन चला। कलाकारों का ये काम नहीं, फिर भी मजबूरी में हक की लड़ाई लड़नी पड़ी। इस आंदोलन से शहर का हर रंगकर्मी जुड़ा था। इस आंदोलन की अगुवाई कौन करे, जब बैठक में ये सवाल उठा तो सबकी जुबान पर केवल एक नाम आया, ओम सोनी। वो चाहे रंगकर्मी था या साहित्यकार, रंग दर्शक था या पत्रकार, सबने कहा ओम जी को नेतृत्त्व दिया जाये। वे सच्चे, समर्पित रंगकर्मी थे तो सबका आदेश उनको मानना ही था।
फिर शुरू हुआ रंग आंदोलन। रात रात सड़कों पर नारे लिखे जाते थे। पोस्टर लगाए जाते थे। कलेक्टर से मिलना, मांग रखना। कोई मंत्री आ गया तो उससे मिलना। खूब लंबा दौर चला। बीकानेर में राज्यपाल शासन के समय चेन्ना रेड्डी आये। तब भी ओम जी तैयार। उनके पीछे साहित्यकार, रंगकर्मी। एक बीकानेर के बड़े नेता से टकराहट हो गई। वे उनको एक सरकारी मुलाजिम बता छोटा करने का प्रयास कर रहे थे तो डॉ नंदकिशोर आचार्य सहित सभी रंगकर्मियों को गुस्सा आ गया। उन्होंने कहा कि ये रंगकर्मी है, उस रूप में सम्मान दीजिए। वो टकराहट भी ओम जी जैसे जांबाज रंगकर्मी को डरा नहीं पाई। एक बदमिजाज आईएएस ने कहा इनको संयोजक हटा दो, रंगमंच का काम शुरू कर दूंगा। तब रंगकर्मियों ने प्रस्ताव पारित कर उनकी अगुवाई की पुष्टि की। सबके प्यार की वो पराकाष्ठा थी। अफसर की नहीं मानी। संघर्ष चलता रहा। आखिर रवींद्र रंगमंच का भूमि पूजन हुआ। आज इस भव्य रंगमंच का किसी एक को श्रेय जाता है तो वो ओम सोनी है। इसके संघर्ष में उन्होंने कितनी उलाहना, धमकियां, प्रताड़ना सही, ये उस दौर के उनके साथी जानते हैं। वे डिगे नहीं, लक्ष्य हासिल करके रहे। उनका यूं अचानक दुनिया से जाना हर रंगकर्मी व साहित्यकार को दुखी कर गया। सबकी आंखें नम है। ओम जी बहुत याद आओगे।
यूं छूट रहे अपनों के साथ पर शाहिद कमाल के शब्द जेहन में उभर रहे हैं :
जो इस ज़मीन पे रहते थे आसमान से लोग
कहाँ गए वो मिरे सारे मेहरबान से लोग।।
मोनिका की मेहनत रंग लाई
राजस्थानी भाषा की महिला लेखिकाओं का नया संगठन अभी कुछ दिन पहले ही बना है। इसकी स्थापना जयपुर में हुई। एक अच्छी पहल थी ये मातृभाषा व महिला लेखन के लिए। बहुत सी महिला रचनाकारों की इसमें भूमिका थी मगर शारदा कृष्ण जी व मोनिका गौड़ का उल्लेख जरूरी है। इन दोनों का अथक श्रम इस संगठन में रहा है। पहला आयोजन जयपुर में तो दूसरा आयोजन बीकानेर में हुआ।
मोनिका गौड़ ने बीकानेर के आयोजन की जिम्मेवारी उठाई। ये आयोजन था राजस्थानी महिला कवयित्री सम्मेलन का। प्रदेश के अलग अलग अंचलों के अलावा इस आयोजन में स्थानीय कवयित्रियों की भागीदारी रही। मोनिका ने इस आयोजन के लिए बहुत मेहनत की। उसकी परिणीति बड़ी संख्या में लोगों की उपस्थिति में हुई। शहर के कई रचनाकार, बुद्धिजीवी, साहित्यप्रेमी आदि इस आयोजन के साक्षी बने। ये तो उस दिन वरिष्ठ रंगकर्मी ओम सोनी का अंतिम संस्कार था, नहीं तो उपस्थिति इससे भी अधिक रहती। मगर जो थी, वो भी अधिक थी। कारण, मोनिका का व्यक्तिगत रूप से सभी से संपर्क साधना। एक बेहतर आयोजन के लिए मोनिका को बधाई दी जानी चाहिए, जिसकी वो हकदार है।
शाबाश सुनील गज्जाणी
मौन रहकर साहित्य की साधना करने वाले मृदुभाषी सुनील गज्जाणी ने बीकानेर के नाम बड़ी उपलब्धि की है। सुनील के नाटक ‘ सेर पर सवासेर ‘ को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। सीबीएसई ने निजी विद्यालयों के लिए जो पाठ्यक्रम की पुस्तक तैयार की है, उसमें ये नाटक भी शामिल है। सुनील की कृतियाँ पहले भी कई जगह पाठ्यक्रम में पढ़ाई जा रही है। गंभीर वृत्ति के सुनील शहर के एक जिम्मेवार लेखक है। शाबाश सुनील। गर्व है तुम पर।
म्हें तो दिखग्या ही
कुछ लोगों में दिखने का गजब का हुनर होता है। भले ही वे कुछ भी न करे, मगर अखबार की खबरों में दिख कर तो आत्म संतोष पा ही लेते हैं और ये महसूस करते हैं कि गंगा स्नान हो गया। ये कहलाना तो साहित्यकार चाहते हैं मगर उपस्थिति शिक्षा, धर्म, समाज, खेल के आयोजनों में भी देते हैं। अखबार में छपकर गंगा स्नान का तो अवसर मिलता ही है।
इनको पता होता है कि आयोजन में किस जगह बैठना है ताकि फोटो में आ जायें। आयोजक को मंच पर मजबूरी में बुलाना पड़े। फिर बीच आयोजन में जोर से बोल सबका ध्यान खींचते हैं ताकि विज्ञप्ति बनाने वाला उनका नाम लिखना तो न भूले। इन दिखने वालों की तादाद बड़ी है, हर शहर में है। बीकानेर में कुछ अधिक है, क्योंकि व्यक्ति घूम फिरकर वही है। जय हो दिखकर पर्चा देने वाले देवों, नमो है।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।