Bikaner : जिला हॉस्पिटल में कोंजेनाइटल टैलिप्स एक्विनोवारस (सीटीईवी) का जोशी‘ज एक्सटर्नल एस्टेब्लाइजेश सिस्टम से इलाज
RNE, BIKANER .
पांचू के पप्पू (बदला नाम) ने जन्म के बाद चलने के लिए पहली बार जमीन पर पांव रखे तो खड़ा नहीं हो पाया। घरवालों ने सोचा कुछ दिनों में चलने लगेगा। बाद में चला तो सही लेकिन लंगड़ाते हुए या टेढ़े-मेढ़े तरीके से। इसे नियति मान लिया गया और वह लंगड़ाते हुए ही चलता रहा। कुछ दिन पहले, कुछ हॉस्पिटलों में दिखाया तो लगभग सभी ने एक ही बात कही, ‘बचपन में इसे दिखा देते तो इलाज हो जाता। अब बड़े सेंटर जयपुर या दिल्ली जाएं तब इलाज हो सकता है। वह भी पूरी तरह ठीक हो पाए या नहीं यह कहा नहीं जा सकता।’
छोटे हॉस्पिटल ने लिया बड़ा चैलेंज :
बीकानेर के जिला हॉस्पिटल में यह मामला पहुंचा। यहां के डॉक्टर लोकश सोनी, समीर पंवार ने सुपरिटेंडेंट डा.सुनील हर्ष से केस डिस्कस करते हुए बताया, एक खास तकनीक से बगैर सर्जरी किये इन पैरों को ठीक किया जा सकता है। बच्चा अपने पैरों पर पूरी तरह सही चल सकता है। कम संसाधनों वालों हॉस्पिटल के सुपरिटेंडेंट डा.सोनी ने बच्चे की उम्र, परिवार की स्थिति और डॉक्टरी पेशे के फर्ज को देखते हुए हरसंभव व्यवस्थाएं मुहैया करवाने को आश्वस्त किया और शुरू हो गया, पप्पू का इलाज।
दो महीनों में मिली बड़ी सफलता, सीधे हो गए पैर :
डॉक्टर्स की टीम ने बगैर सर्जरी एक तकनीक से इस बीमारी का इलाज शुरू किया जिसका नाम है जोशी’ज एक्सटर्नल एस्टेब्लाइजेशन सिस्टम (जैस)। इस तकनीक में टेढ़े पांवों को लोहे की खास तकनीक से बनी रोड के बीच रखकर स्क्रू से कस दिया गया।
प्रत्येक 15 दिन में स्क्रू को और टाइट करते गए और पांव सीधे होते गए। दिन बीतते गए, रिव्यू होता गया और 13 साल में पूरी तरह टेढ़े हो चुके पांव सीरियल कास्टिंग से एकदम सीधे हो गए। अब पप्पू धीरे-धीरे आम लोगों की तरह बगैर वॉकर की सहायता से चल पाएगा।
अब जानिये बीमारी क्या है :
दरअसल इस बच्चे को जो जन्मजात बीमारी हुई उसे चिकित्सकीय भाषा में कोंजेनाइटल टैलिप्स इक्विनोवारस यानी सीटीईवी कहते हैं। आम बोलचाल में इसे क्लबफुट भी कहा जाता है। हालांकि यह कई तरीके का होता है और सभी के उपचार का अलग-अलग तरीका है लेकिन अभी बच्चे में जो बीमारी थी उसे डिफ्रेंशियल डिस्ट्रेक्शन पद्धति से सफलतापूर्व सही किया गया।
इस तकनीक से हुआ इलाज :
जिस जैस तकनीक से बगैर ऑपरेशन किशोर का इलाज किया गया उसका पूरा नाम है-जोशी‘ज एक्सटर्नल स्टेब्लाइजेशन सिस्टम। इस तकनीक को मुंबई के डॉक्टर बी.बी.जोशी ने ईजाद किया और वर्ष 1998 में पहली बार इससे इलाज किया। इसके बाद इस तकनीक में काफी बदलाव आये। जिला हॉस्पिटल में इसके जिस मैथड का उपयोग किया गया उसे कहते हैं डिफ्रेंशियल डिस्ट्रैक्टशन मैथड।
बड़ी बात यह है :
चूंकि यह कोई नई तकनीक नहीं है। पहली बार इसका उपयोग नहीं हो रहा है। देश-दुनिया में हर दिन इस तकनीक से इलाज होता है। ऐसे में जटिल या नया इलाज नहीं कह सकते। नई और बड़ी बात यह है कि यह इलाज बीकानेर के उस जिला हॉस्पिटल में हुआ है जिसे संसाधनों, विशेषज्ञो के लिहाज से छोटा और पिछड़ा कहा जा सकता है। यहां ऑर्थों के दो रेजीडेंट डॉक्टर रोटेशन ड्यूटी पर उपलब्ध है। ऑर्थो का पूरा डिपार्टमेंट अलग से नहीं है। ऐसे में डॉक्टर्स ने अपनी पहल से बड़ी चुनौती लेकर उसमें सफलता हासिल की है, यह बड़ी बात है।