Anta Election - राजे के सिर ठीकरा फोड़ भजनलाल को बचाने की कोशिश
Updated: Nov 17, 2025, 09:27 IST
मधु आचार्य ' आशावादी '
अंता विधानसभा उप चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा को हार को सामना करना पड़ा। कांग्रेस ने भाजपा से यह सीट छीन ली। प्रमोद जैन भाया जिनको विधानसभा चुनाव 2023 में जनता ने नकार दिया, उन्हें ही दो साल के वनवास के बाद फिर विधानसभा मे जाने का अवसर मिल गया।
इस सीट पर कांग्रेस के जीतने से राज्य की भजनलाल सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा। हां, भाजपा की अंदरूनी राजनीति में इससे उबाल जरूर आया है। गुटीय राजनीति खुलकर सामने आ गयी और उसका प्रतिकूल असर भाजपा पर चुनाव में पड़ा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ये चुनाव भाजपा हारी है, भाया का जीतना तो सेकंडरी बात है। प्रमुख बात भाजपा के हारने की है। इस कारण ही इस चुनाव को लेकर कई सवाल खड़े हो गए है और भाजपा में एक बार फिर अंदरूनी खींचतान की स्थिति बन गयी है। जिसका असर भी पार्टी पर व्यापक रूप से आगामी निर्णयों पर पड़ता दृष्टिगोचर हो रहा है।
उम्मीदवार चयन से ही उलझाव अंता सीट पर उम्मीदवार तय करने से ही भाजपा की गुटीय टकराहट शुरू हो गयी थी। कांग्रेस ने तो तुरंत ही प्रमोद जैन भाया को प्रत्याशी बना दिया। भाजपा को प्रत्याशी चुनने में काफी देर हुई। परिसीमन के बाद बनी इस सीट पर भाजपा दो बार चुनाव जीती है, दोनों बार वसुंधरा की पसंद के नेता को ही टिकट मिला। हाड़ौती में वैसे भी राजे का प्रभुत्त्व ज्यादा है, अंता पर भी था।
राजे समर्थक को टिकट देना या नहीं, ये तय करने में देरी हो गयी। राजे की पहली पसंद प्रभुलाल सैनी थे, जाहिर है उनको रोकने का प्रयास भी पार्टी का एक बड़ा धड़ा कर रहा था। मोरपाल भी राजे के साथ है मगर सैनी से कम प्रभावी है। क्योंकि प्रधान रहते हुए उनकी एन्टीनकम्बेंसी भी थी। आखिर राजे के साथी मोरपाल को टिकट दिया, सैनी को नहीं दिया। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और उनके सांसद पुत्र दुष्यंत सिंह ने पूरी ताकत झोंकी, मगर सफल नहीं रहे। क्योंकि अन्य भाजपा नेताओं की वहां पर इतनी सक्रियता नहीं दिखी।
राजे ने तीन दिन तक डेरा डाला अंता में वसुंधरा राजे ने 3 दिन तक डेरा डाला। सारी कमान संभाली, दूसरे नेता नदारद रहे। सीएम भजनलाल ने केवल रोड शो किये। मंत्रियों की फौज को नहीं उतारा गया। जबकि पिछले उप चुनावों में हर क्षेत्र में जातिगत आधार को देखकर मंत्रियों की चुनावी ड्यूटी लगाई गयी थी। इस बार अंता में मंत्रियों का ज्यादा आना जाना नहीं रहा। कुछ भाजपा नेताओं का दबी जुबान से यह भी कहना है कि अंता चुनाव में वसुंधरा राजे को अकेला छोड़ दिया गया।
दिलावर व नागर भी नदारद रहे
कोटा संभाग से दो कद्दावर मंत्री मंत्रिमंडल में है। शिक्षा व पंचायती राज मंत्री मदन दिलावर और ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर। इनका गृह जिला भी यही है। जिसमें से दिलावर तो अटरू विधानसभा से विधायक भी रहे है। उस समय अंता उसी विधानसभा का हिस्सा था। पूरे चुनाव में दिलावर व नागर अंता चुनाव प्रचार में नहीं आये। न पार्टी ने उनको वहां की किसी भी चुनाव से जुड़ीं समिति में रखा।
दिलावर व नागर की अंता चुनाव से दूरी समझ से परे लग रही है। जाहिर है इन मंत्रियों की दूरी का चुनाव पर असर तो पड़ा है। पार्टी ने इस मसले पर कुछ भी प्रतिक्रिया नहीं दी है, ये भी कम आश्चर्य की बात नहीं है। न संगठन, न सरकार और न मंत्रियों की तरफ से , चुनाव से दूरी पर कोई टिप्पणी की गयी है। मगर इन मंत्रियों की अनुपस्थिति को लेकर अब चर्चाओं का बाजार जरूर गर्म है।
नरेश मीणा की गुत्थीअंता सीट से चुनाव में भाजपा के कंवरलाल मीणा चुनाव जीते थे। इस विधानसभा में मीणा जाति के वोटों की बड़ी संख्या है। उस बड़े वोट बैंक का चुनाव की दृष्टि से देखे तो झुकाव भाजपा की तरफ होना था। मगर इसी वोट बैंक पर पहले कांग्रेस की भी पकड़ मजबूत थी।
मीणा जाति से भाजपा प्रत्याशी न होने से कांग्रेस को इस जाति के वोटों से आस थी। मगर नरेश मीणा खड़े हो गये। उनको भाजपा के बराबर वोट मिले। कांग्रेस का आरोप है कि नरेश को भाजपा के एक धड़े ने खड़ा किया है। ये वे ही लोग है जिन्होंने देवली उणियारा में भी नरेश को उतारा था, फलस्वरूप कांग्रेस को वहां भी हार मिली थी। यदि भाजपा के कुछ नेताओं की शह नरेश को थी तो फिर भाजपा को नुकसान भी इस कारण हुआ।
कुल मिलाकर अंता में भीतर से भाजपा की कलह थी, ये तो राजनीतिक विश्लेषक मानने लग गये है। गुटीय राजनीति से भले ही नेता सार्वजनिक रूप से इंकार करे, मगर गुटबाजी तो थी। अब आने वाले समय मे सरकार, संगठन व राजनीतिक नियुक्तियों का काम होना है। जिस पर अंता की हार का असर पड़ेगा।

