Bihar Election : कांग्रेस के निर्णय से अन्य विपक्षी दल सकते में
Nov 18, 2025, 09:06 IST
मधु आचार्य ' आशावादी '
बिहार विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबन्धन की हुई करारी हार के बाद जहां एक तरफ आरजेडी और लालू यादव परिवार में कलह उभरी है वहीं गठबन्धन में भी अब दरारें पड़नी शुरू हो गयी है। यदि इसी तरह दरारें पड़ती रही तो गठबंधन के भरभरा कर गिरने में भी ज्यादा देर नहीं लगेगी।
ये बड़ा सत्य है कि देश में भाजपा के बाद सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ही है। जिसके नम्बर दो पर सांसद, विधायक है। पार्टी का हर जिले व देहात तक संगठन है। जबकि सपा उत्तर प्रदेश में ही बड़ी है, टीएमसी बंगाल में ही है, एनसीपी शरद व शिव सेना उद्धव केवल महाराष्ट्र में है। आरजेडी केवल बिहार में है। मगर इसके बावजूद भी कहीं भी हार हो तो सहयोगी ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ते है। भाजपा को भी इससे शक्ति मिलती है, क्योंकि उसके निशाने पर भी तो केवल कांग्रेस ही रहती है।
विपक्षी दल अब सकते में आये :
बिहार की हार के बाद अब निकट भविष्य में महाराष्ट्र निकाय चुनाव है। जिसके लिए उद्धव व राज ठाकरे ने जहां मिलकर चुनाव लड़ने की योजना बनाई। वहीं कांग्रेस ने भी विधानसभा चुनाव व बिहार चुनाव की हार का ठीकरा खुद पर फोड़े जाने से नाराज होकर पहले ही ऐलान कर दिया कि वो निकाय चुनाव अकेले लड़ेगी।
कांग्रेस की इस घोषणा से महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी टूट के कगार पर है और गठबंधन में दरार साफ नजर आ रही है। वहीं विपक्ष सकते में है। विपक्ष जानता है कि दिल्ली चुनाव कांग्रेस के अकेले लड़ते ही आप को हार झेलनी पड़ी। अब यूपी में सपा, बंगाल में टीएमसी, महाराष्ट्र में शिव सेना उद्धव व एनसीपी शरद, कांग्रेस के अकेले लड़ने से कमजोर रहेंगे। इस कारण सकते में है। ये अब तक गठबंधन की कांग्रेस की मजबूरी के चलते कांग्रेस को दबाव में लिए हुए थे, वो दबाव अब दरार बनता दिख रहा है।
ममता को नेता बनाने की फिर मांग :
बिहार में हार के बाद टीएमसी को लगा कि कांग्रेस को धकेलने का सही समय है। हार का ठीकरा उस पर फोड़ा और कांग्रेस की मजबूरी का फायदा उठाते हुए इंडिया गठबंधन की कमान ममता बनर्जी को देने की मांग फिर से खड़ी कर दी। टीएमसी के सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा है कि विपक्षी गठबंधन का नेतृत्त्व अब ममता बनर्जी ही करने में सक्षम है।
सपा ने भी अलग राग अलापा :
इस परिस्थिति का फायदा उठाते हुए और कांग्रेस की गठबंधन की चाह को देखते हुए समाजवादी पार्टी के नेताओं ने भी इंडिया गठबन्धन की कमान अखिलेश यादव को देने की मांग कर डाली।
गठबंधन विपक्षी दलों की मजबूरी :
कांग्रेस के अलग लड़ने के ऐलान से विपक्ष सकते में आ गया। उसे इस बात की उम्मीद नहीं थी कि कांग्रेस गठबंधन की मजबूरी का हार गले से निकलकर फेंक भी सकती है।
जहां जहां गैर कांग्रेसी विपक्ष है, वहां यदि कांग्रेस अकेले लड़ती है तो उनका सफल होना संदिग्ध है।
दरारें पाटी नहीं तो बिखराव होगा :
इंडिया गठबंधन में आई इन दरारों को यदि विपक्षी नेताओं ने नहीं पाटा तो बिखराव होगा और विपक्षी दल फिर से 2014 की स्थिति में पहुंच जाएंगे। भाजपा और मोदी के लिए राह भी आसान हो जायेगी।

