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मदन दिलावर व हीरालाल नागर को चुनावी जिम्मेदारी नहीं, दोनों मंत्रियों का पैतृक जिला है बारां, फिर भी उपेक्षा

वसुंधरा के हाथ में कमान होने का असर
बड़ा सवाल, क्या भाजपा पर इस उपेक्षा का असर पड़ेगा
 

मधु आचार्य ' आशावादी '
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RNE Special.
 

11 नवम्बर को बारां जिले की अंता सीट पर हो रहे विधानसभा उप चुनाव के लिए भाजपा व कांग्रेस के साथ निर्दलीय नरेश मीणा ने अब अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इस चुनाव को राज्य की भाजपा सरकार ने अपना प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया हुआ है, वहीं कांग्रेस की तरफ से पूर्व सीएम अशोक गहलोत की प्रतिष्ठा इस सीट से जुड़ी हुई है। गहलोत ने अपने गुट के नेता व पूर्व मंत्री प्रमोद जैन भाया को चुनावी समर में उतारा हुआ है।
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भाजपा व कांग्रेस के लिए यहां निर्दलीय मैदान में उतरे नरेश मीणा बड़ी चुनोती खड़ी किये हुए है। कांग्रेस से बगावत करके नरेश चुनाव लड़ रहे है। भाजपा ने अपने बागी रूपाराम मेघवाल को मनाकर उनसे नामांकन उठवा लिया, यह उनके लिए बड़ी राहत है। 
 

दो मंत्रियों की गैमोजूदगी:
 

भाजपा व कांग्रेस ने अंता उप चुनाव के लिए चुनाव प्रचार व अन्य सभी समितियों का गठन कर लिया है। जिन्होंने काम भी शुरू कर दिया। पार्टी ने वसुंधरा के पुत्र व सांसद दुष्यंत सिंह को चुनाव अभियान की जिम्मेदारी दी है।
भाजपा के चुनाव अभियान समिति सहित अन्य किसी भी समिति में कोटा संभाग के दो मंत्रियों, शिक्षा मंत्री मदन दिलावर व ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर को स्थान नहीं मिला है। जबकि इनका गृह जिला बारां है। मदन दिलावर तो इस जिले की अटरू सीट से 3 बार विधायक भी रहे है।

 

इन दोनों मंत्रियों को अंता चुनाव में किसी भी तरह की जिम्मेवारी न मिलना भी चकित करने वाली बात है। इस बात के कई राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे है। सियासी गलियारों में इसकी खासी चर्चा भी हो रही है।
 

वसुंधरा के हाथ में कमान का असर:
 

अंता चुनाव में प्रचार की पूरी कमान वसुंधरा राजे के पास ही है, शायद ये उसी का असर है। चुनाव प्रचार व अन्य कार्यों के लिए बनी समितियों में उन्हीं नेताओं को रखा गया है, जो राजे की पसंद है। यही एक वजह समझी जा रही है जिसके कारण दिलावर और नागर चुनाव प्रचार से दूर है। जबकि निर्दलीय विधायक आक्या को चुनाव में बड़ी जिम्मेदारी मिली हुई है।
 

परिसीमन के बाद बनी इस सीट पर दो बार भाजपा जीती है और दो बार ही कांग्रेस। भाजपा के तरफ से यहां प्रभुलाल सैनी व कंवरलाल मीणा चुनाव जीते है, जो दोनों वसुंधरा राजे के खेमे से माने जाते है।
इस सीट पर राजे का ही वर्चस्व है, इस कारण पार्टी ने उम्मीदवार चयन से लेकर चुनाव अभियान तक मे राजे की ईच्छा को ही स्वीकारा है।

 

भाजपा पर क्या असर पड़ेगा ?
 

दो मंत्रियों मदन दिलावर व हीरालाल नागर की गैरमौजूदगी का भाजपा पर असर पड़ेगा, इस बात का आंकलन राजनीतिक गलियारे में अधिक हो रहा है। जाहिर है, दोनों नेताओं की अपनी पकड़ है तो उनकी गैरमौजूदगी असर तो डालेगी। उसे भाजपा या राजे कैसे मैनेज करते है, यह देखने की बात है।

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