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नीतीश सरकार: भाजपा विधायक दल को मैनेज करने में जुटे अर्जुनराम, कई अंदरूनी चुनौतियां रही मौजूद

 
मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या, पोर्टफोलियो के साथ ही स्पीकर पद को लेकर भाजपा-जदयू के बीच संतुलन बिठाना रहा अर्जुनराम का महत्वपूर्ण काम

RNE PATNA - DELHI 

बिहार में एक बार बार फिर नीतीश सरकार बन गई। शपथग्रहण के साथ ही नीतीश ने 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का रिकॉर्ड बना दिया। हालांकि चुनाव में जबरदस्त बहुमत के बाद यह सरकार बनना तय था लेकिन गठबंधन की सरकार में सबसे बड़ा दल भाजपा होने के बावजूद नीतीश को सीएम बनाने के लिए भाजपा विधायकों-नेताओं को राजी करना और इसके साथ ही सरकार में भाजपा की भागीदारी तय करना आसान काम नहीं था।

इसी को देखते हुए भाजपा संगठन ने उत्तरप्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को विधायक दल का नेता चुनने सहित विधायकों की राय जानने पटना भेजा। इसमें पर्यवेक्षक के साथ जिन दो नेताओं को सह पर्यवेक्षक की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई उनमें एक है बीकानेर के सांसद और केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल और दूसरी पूर्व  मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति।
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव अरूणसिंह की ओर से 18 नवंबर को जारी इस आदेश के साथ ही मेघवाल ने पर्यवेक्षक और साथी सह पर्यवेक्षक के साथ बिहार कूच कर दिया। जानने वाले जानते हैं कि संसद में संसदीय कार्यमंत्री के तौर सरकार के लिए फ्लोर मैनेजमेंट करने के साथ महत्वपूर्ण विदेशी मुद्दों पर कई देशों में जाकर वार्ताओं को अंजाम देने वाले केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को इसमें खास भूमिका दी गई। इसकी महत्वपूर्ण वजह यह है कि भाजपा संगठन, सरकारों में मुख्यमंत्रियों, विधायकों से उनके सहज संबंधों के साथ ही दूसरे दलों के नेताओं से भी अच्छा तालमेल हैं।
ऐसे में पटना में विधायक दल की पहली ही लंबी चली मीटिंग के साथ स्थानीय नेताओं, पदाधिकारियों से मिले इनपुट को इस पर्यवेक्षक मंडल ने आपस में शेयर करने के साथ पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जे.पी.नड्डा सहित वरिष्ठ नेताओं तक पहुंचाया।
दो महत्वपूर्ण निर्णय लेना बड़ी चुनौती थी : 
पहला- जब यह तय हो गया कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनेंगे तब सरकार में भाजपा का प्रतिनिधित्व कितना होगा। कितने कैबिनेट, कितने राज्यमंत्री, क्या पोर्टफोलियो होगा! इसके साथ ही इन पदों के लिए विधायकों में से किसे चुना जाएगा। इसमें जातिगत आधार के साथ अनुभव, वरिष्ठता, योग्यता आदि कई मानदंडों पर कसना जरूरी था।
दूसरी और सबसे बड़ी चुनौती, विधानसभा में स्पीकर यानी अध्यक्ष पद तय करना। गठबंधन में सरकार में यह सबसे महत्वपूर्ण पद इसलिए होता है क्योंकि विधानभा में स्पीकर के पास कई मामलों में असीमित शक्तियां होती हैं। यही वजह है कि बिहार में मुख्यमंत्री के नाम से अधिक चर्चा स्पीकार को लेकर रही।
दोनों फ्रंट पर भाजपा संतुष्ट:
ऐसे में पर्यवेक्षकों के पास इन दोनों फ्रंट पर काम करने के साथ ही पार्टी के विधायकों को संतुष्ट रखना भी बड़ी जिम्मेदारी रही। दो दिन चली कवायद और मशक्कत के बाद आखिरकार भाजपा पर्यवेक्षकों ने हाईकमान को संकेत दे दिया ‘ऑल इज वेल।’ नतीजा गुरुवार को पटना के गांधी मैदान में नीतीश के शपथ ग्रहण समारोह में 26 मंत्रियों ने शपथ ली। इनमें दोनों उपमुख्यमंत्री भाजपा के बने। वजह भी साफ है, भाजपा 89 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है। जदयू 85 सीटों पर है।
भाजपा को बिग ब्रदर की भूमिका मिली: 
मंत्रिमंडल में भाजपा का बिग ब्रदर चेहरा सामने आया। जिन 26 मंत्रियों ने शपथ ली इनमें 14 भाजपा, 08 जदयू, 02 चिराग के दल सहित हम और कुशवाहा की पार्टी से एक-एक मंत्री बने। इनमें भाजपा के सम्राट चौधरी, विजय कुमार सिन्हा दोनों को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है। मतलब यह कि भाजपा में अंतरुनी सियासत को संभालने के लिए सामंजस्य बिठाना पर्यवेक्षको के लिए चुनौती थी।
09 बार के विधायक प्रेम कुमार होंगे स्पीकर!
गठबंधन की सरकार में सबसे बड़ी चुनौती विधानसभा अध्यक्ष या स्पीकर चुनना है। हालांकि पिछली सरकार में यह पद जेडीयू के पास रहा और इस बार भी नीतीश एंड पार्टी की इच्छा स्पीकर पद रखने की रही। इससे इतर भाजपा ने स्पीकर पद पर अपना अधिकार स्पष्ट रूप से रख दिया। ऐसे में यह लगभग तय हो गया है कि भाजपा के वरिष्ठ विधायक प्रेम कुमार बिहार विधानसभा के नए स्पीकर होंगे। प्रेम कुमार वे विधायक हैं जो लगातार 9वीं बार विधानसभा चुनाव जीते हैं। बिहार में गया शहर की सीट से लगातार विजेता बन रहे प्रेम कुमार नीतीश सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं।
इसलिए स्पीकर पद पर फोकस : 
यह सर्वमान्य तथ्य है कि गठबंधन सरकारों में अस्थिरता का खतरा हमेशा बना रहता है। विषेशतौर पर बिहार जैसे राज्य में पाला बदलने की राजनीति नई बात नहीं है। चूंकि दलबदल कानून ने स्पीकर को इतनी शक्तियां दी हैं कि वह किसी भी विधायक को दल-बदल के आरोप में अयोग्य घोषित कर सकता है। इतना ही नहीं स्पीकर के फैसले पर न्यायिक समीक्षा भी काफी सीमित रहती है। खासतौर पर स्पीकर चाहे तो फैसले लंबे समय तक विचाराधीन भी रख सकते हैं। 
टूट-फूट का डर बना रहेगा : 
ऐसे में देश के मौजूदा संसदीय कानूनों के सर्वाधिक जानकारों में से एक केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम की भी बतौर सह पर्यवेक्षक यह पद भाजपा के खाते में लाना बड़ी प्राथमिकता रही। यहाँ एक सियासी पहलू यह भी है कि इस बार नीतीश और भाजपा दोनों दल संख्याबल के लिहाज काफी करीब हैं। ऐसे में दोनों को डर है कि कभी भी परिस्थिति बदलने पर दूसरे दलों के साथ मिलकर सरकार न बना लें। हालांकि भाजपा के लिए यह संख्या ज्यादा मुफीद हैं। वह 89 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है। एनडीए के अन्य सहयोगियों— LJP(R), HAM और RLM के साथ यह संख्या 117 हो जाती है, जो बहुमत से केवल 5 कम है। हालांकि बिहार में अभी से कयास लग रहे हैं कि भाजपा आगे चलकर अपने ही मुख्यमंत्री के नेतृत्व में सरकार बना सकती है। इसमें JDU में टूट-फूट करने के साथ ही कुछ छोटे दलों को मिलाने का प्रयास हो सकता है।

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