प्रियंका अपने पहले राजनीतिक टेस्ट में कामयाब हुई, नीलांबुर जीतकर साबित किया कि वायनाड गांधी परिवार का मजबूत किला
रितेश जोशी
RNE Network.
केरल में अगले साल विधानसभा चुनाव है और वहां कांग्रेस नेतृत्त्व वाले व माकपा नेतृत्त्व वाले गठबन्धन में सीधा मुकाबला होता है। हर पांच साल बाद यहां सरकार बदलती है मगर पिछले चुनाव में ऐसा नहीं हुआ। माकपा नेतृत्त्व वाला गठबन्धन फिर से सत्ता में आ गया।
इस बार कांग्रेस अभी से विधानसभा चुनाव की तैयारी में लगी हुई है। इस कारण नीलांबुर विधानसभा उप चुनाव को भी उसने बहुत गंभीरता से लिया था।
नीलांबुर उप चुनाव क्यों??
केरल की नीलांबुर विधानसभा सीट पर उप चुनाव यहां के निर्दलीय विधायक के इस्तीफे के कारण हुआ। इस विधायक ने सत्तारूढ़ वाम गठबंधन को समर्थन दे रखा था। सरकार से नाराजगी हुई तो समर्थन हटाया और विधायकी भी छोड़ दी। तब यहां उप चुनाव कराना पड़ा।
नीलांबुर - वायनाड का कनेक्शन:
वायनाड लोकसभा सीट के तहत ही नीलबुर विधानसभा सीट आती है। इस कारण यह उप चुनाव खास था। इस सीट पर वर्षों तक माकपा व भाकपा का ही वर्चस्व रहा है। इस कारण कांग्रेस ने इस सीट को इस बार हॉट सीट बना पूरी शक्ति लगा दी थी।
वायनाड अब गांधी परिवार का:
उत्तर भारत में जिस तरह से रायबरेली व अमेठी को गांधी परिवार की परंपरागत सीट माना जाता रहा है, उसी श्रेणी में अब केरल की वायनाड सीट आ गई है। राहुल गांधी अमेठी में चुनाव हार गए मगर वायनाड ने जिताकर उनकी साख बचाई।
इस बार भी राहुल वायनाड के साथ रायबरेली से भी चुनाव लड़े। इस बार वे दोनों सीटों से चुनाव जीत गए। फिर उन्होंने रायबरेली सीट रखी और वायनाड छोड़ दी। वायनाड के लोगों की नाराजगी न बढ़े इस कारण कांग्रेस ने उप चुनाव में यहां से प्रियंका गांधी को मैदान में उतारा।
प्रियंका को वायनाड ने राहुल से भी ज्यादा वोटों से जिताया और यह साबित किया कि वायनाड दक्षिण में गांधी परिवार की परंपरागत सीट है।
प्रियंका उतरी थी उप चुनाव में:
नीलांबुर उप चुनाव में सांसद प्रियंका गांधी ने प्रचार किया। नुक्कड़ सभाएं की और रैली भी की। आखिरकार कांग्रेस ने ये सीट वाम गठबन्धन से छीन ली। प्रियंका गांधी अपने पहले राजनीतिक टेस्ट में कामयाब हुई।
विजयी उम्मीदवार आर्यदान शौकत ने भी कहा कि ये जीत प्रियंका के जन जुड़ाव व वायनाड के लोगों की है। शौकत ने यह भी कहा कि इस चुनाव परिणाम ने संकेत दे दिया है कि अगला विधानसभा चुनाव भी कांग्रेस नेतृत्त्व वाला गठबन्धन ही जीतेगा।
भाजपा की कोशिशें बेकार रही:
भाजपा भी केरल में अपने पांव जमाने के लिए ताकत लगा रही है। मगर नीलांबुर ने भाजपा को निराश किया। यहां भाजपा न केवल कांग्रेस और माकपा से अपितु निर्दलीय से भी पीछे रही। नीलांबुर उप चुनाव परिणाम केरल विधानसभा के अगले चुनाव का संकेत देने में सफल रहा है।