विकास में समरूपता के भाव से यह निधि शुरू हुई, लोकतंत्र में पक्ष - विपक्ष की बराबरी का ध्येय छूमंतर हुआ
राजनीतिक दलों व विधानसभा अध्यक्ष को कड़ा रुख दिखाना जरूरी
मधु आचार्य ' आशावादी '

RNE Special.
विधायक निधि के उपयोग को लेकर राजनीति होने के आरोप तो लगातार लगते ही रहे है। इस निधि में भ्रस्टाचार की बातें भी गाहे - बगाहे होती ही रहती थी। मगर इस बार एक पत्रकारिता के स्टिंग में जो सामने आया, वो सच में बहुत परेशान, हैरान व चिंतित करने वाला है। लोकतंत्र का एक नया ही विकृत रूप है।

जब विधायक निधि आरम्भ की गई तब ध्येय बड़ा स्वस्थ था। सत्ता पक्ष के पास सरकार होती थी मगर विपक्ष के पास कुछ नहीं। कई बार विकास में असंतुलन भी देखने को मिलता था। ठीक इसी तरह सरकार के स्तर पर विकास की योजना को स्वीकृत कराने में विधायक को लंबा समय लग जाता था।
इन दोनों कमियों को दूर करने के लिए सांसद व विधायक निधि की शुरुआत हुई ताकि स्वस्थ लोकतंत्र में पक्ष व विपक्ष को समान महत्त्व मिल सके। विपक्ष के विधायक की जनता को यह भान न हो कि उसके विधायक के दल की सरकार नहीं है तो उसके क्षेत्र में विकास नहीं हो सकता। विधायक निधि को एक पवित्र सोच के साथ आरम्भ किया गया था। किसी ने उस समय नहीं सोचा था कि उसका इस तरह दुरुपयोग भी हो सकता है।
ये तो जनता से धोखा:
स्टिंग में जिन 3 विधायकों के तथ्य सामने आए है, वे चिंताजनक है। ये जनता का धन है। यदि इसका इस तरह दुरुपयोग होता है तो चिंतनीय है। जनता के साथ धोखा है। जिसमें माननीय व जुड़ी हुई ब्यूरोक्रेशी भी बराबर की जिम्मेवार है। जनता का नेताओं व राजनीति से जो भरोसा उठ रहा है, उसकी एक वजह यह भी बनेगा।
समाज के लोग अपने विधायक के पास सामाजिक विकास के काम पर विधायक निधि खर्च करने का आग्रह करने के लिए जाते है। जो उनका लोकतंत्रीय हक़ है। उस निधि का यदि कोई दुरुपयोग होता है तो यह व्यक्ति, समाज, मतदाता, जनता के साथ ही धोखा माना जायेगा।
कठोर निर्णय की जरूरत:
इस मामले में सत्य को पूरी तरह पहले निष्पक्ष रहकर परखा जाना चाहिए। यदि तथ्य बात को पुष्ट करते है तो पहले तो राजनीतिक दलों को ही कठोर निर्णय लेकर सख्ती दिखानी चाहिए। जैसे ताजा मामले में कांग्रेस ने पहले और फिर भाजपा ने अपने अपने विधायकों को नोटिस देकर जवाब मांगा है। तथ्यों के आधार पर निर्णय भी बिना लाग लपेट करना चाहिए।

विधानसभा अध्यक्ष मूलतः किसी दल का नहीं होता। उसे भी अपने स्तर पर कठोर निर्णय लेना चाहिए। उसके पास अपनी शक्तियां है। क्योंकि एक निर्दलीय विधायक भी है। दूसरे, राजनीतिक दल अपने विधायक के प्रति सॉफ्ट हो सकते है, मगर विधानसभा अध्यक्ष की ऐसी बाध्यता नहीं। उसे लोकतंत्र व सदन की गरिमा की रक्षा के लिए कठोर निर्णय लेना ही चाहिए। जनता उसकी तरफ ही आशा भरी नजरों से देख रही है।

