जिलों व ओपीएस पर निर्णय टालना बड़ी जोखिम, भीतर पनप रहा आक्रोश
राज्य सरकार अपना एक साल पूरा कर रही है और इस अवसर पर बड़े जश्न की तैयारी भी जोर शोर से हो रही है। हर जिले में 4 दिन की प्रदर्शनी लग रही है और ये बताने की कोशिश हो रही है कि सरकार बनने से पहले पार्टी ने चुनाव में जितने वादे किए थे, उसमें से 50 फीसदी तो पूरे कर दिए और बाकी के लिए रोड मैप तैयार है। सीएम भजनलाल 7 में से उप चुनाव में 5 सीट जीतने के बाद जोश में है। राजनीति में सफलता या असफलता का पैमाना चुनाव ही तो होता है। इस जीत के बाद वे ताबड़तोड़ निर्णय ले रहे हैं।
हट रहा है ‘ पर्ची ‘ का टेग
सीएम भजनलाल के नेता चुने जाने की प्रक्रिया सभी ने टीवी पर लाइव भी देखी थी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पर्ची पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को थमाई और उन्होंने खोलकर नाम पढ़ा तो वो भजनलाल शर्मा का था।
तब से विपक्षी नेता गोविंद डोटासरा, टीकाराम जुली, हनुमान बेनीवाल व कांग्रेस के नेता पर्ची सरकार व पर्ची सीएम का टेग हर जगह लगा रहे थे। मगर लगातार चुप रहकर कठोर निर्णय भी सहजता से लेते रहने और अब 5 सीटों पर उप चुनाव जीतने के बाद पर्ची का टेग तो धीरे धीरे सरकार व सीएम पर से हटने लगा है। उप चुनाव परिणामों के बाद तो विपक्षी नेताओं ने पर्ची को बोलना कम भी कर दिया है।
अब भी अनुत्तरित है कई सवाल
एक साल की अवधि में कई काम हुए मगर अब भी कई सवाल ऐसे हैं जिनका जवाब राज्य की जनता को नहीं मिल पाया है। जिस उम्मीद में सरकार का साथ दिया उसके जवाब जल्दी मिलने की उम्मीद थी मगर वो नहीं मिलने से जनता में थोड़ा आक्रोश भी है। उसे उम्मीद थी कि ये जरूरी मसले शीघ्र निदान तक पहुंचेंगे।
ओपीएस पर कुछ नहीं हुआ
पिछली गहलोत सरकार ने ओपीएस देने का निर्णय किया। उस पर भजनलाल सरकार को निर्णय करना था, मगर एक साल में भी निर्णय नहीं हुआ। इस पर केंद्र से निर्देश मांगा, केंद्र ने अपने स्तर पर यूपीएस का फार्मूला तय कर दिया।
केंद्र के निर्णय के खिलाफ राज्य के कर्मचारी संगठनों ने आवाज बुलंद कर दी। उन्होंने साफ कह दिया कि ओपीएस से कम मंजूर ही नहीं। सभी संगठन लामबंद भी हो गये। राज्य सरकार ने हाथ खींच लिए, यूपीएस लागू नहीं की और न ओपीएस को स्वीकारने की बात कही। टाल रही है इस मुद्दे को। पहले उप चुनाव का डर था, उसके बाद भी कैबिनेट की बैठक हो गई। इस मसले पर कुछ हो ही नहीं रहा। कर्मचारियों के भीतर असंतोष गहराता जा रहा है, जो अब साफ साफ नजर भी आने लगा है।
जिलों के गठन पर फैसला
गहलोत सरकार ने ताबड़तोड़ जिले व संभागों का गठन किया। भजनलाल सरकार ने आते ही इनकी समीक्षा करने की घोषणा की। रिटायर्ड आईएएस ललित के पंवार की अध्यक्षता में तथ्यात्मक रिपोर्ट बनाने के लिए कमेटी बनाई। कमेटी ने रिपोर्ट भी महीनों पहले सौंप दी। उस रिपोर्ट पर सुझाव देने के लिए मंत्रियों की सब कमेटी बनाई। एक बार उसका अध्यक्ष बदला। अब मंत्रियों की इस कमेटी ने भी रिपोर्ट दे दी मगर निर्णय कुछ भी नहीं हुआ।
बताते हैं 5 जिले खत्म किये जायें, ये रिपोर्ट में है। वहां जनता अभी से आंदोलन के लिए सड़क पर आ गई है। सरकार कोई निर्णय नहीं कर रही। संभावित विरोध का खतरा है। अब जब तक अंतिम निर्णय न हो तब तक 17 जिलों के लोग असमंजस में है। कुछ आंदोलन कर चुके और कुछ उसकी तैयारी किये हुए हैं। सरकार लगातार निर्णय टाल रही है, लंबित किये हुए है मामले को। जिसका उन जिलों की जनता पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
जो भी हो, निर्णय तो हो
सरकार इन दोनों मुद्धों पर टालमटोल कर रही है, जिसके सकारात्मक परिणाम तो मिलने से रहे। एक साल पूरा होने पर ये निर्णय भी होते तो शायद अच्छा रहता। जो निर्णय हो, पर हो तो सही। इन दोनों मुद्धों पर भीतर पनप रहे आक्रोश को सरकार पहचान नहीं रही शायद।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।