Skip to main content

शिक्षक तबादलों पर अभी राहत नहीं, सरकार बच रही है तबादला विवाद से

शिक्षकों को अभी तबादले के लिए कुछ महीनें और इंतजार करना पड़ेगा। सरकार अभी इस वर्ग के तबादलों में हाथ डालकर विवाद में पड़ने से बच रही है। शिक्षक तबादलों के लिए विधायकों व मंत्रियों का बड़ा दबाव है, उससे लगता है कि यदि इन तबादलों को शुरू किया गया तो हजारों की संख्या में तबादले होंगे और पूरे राज्य पर उसका असर पड़ेगा। सरकार को थोड़े महीनों बाद ही 6 विधानसभा सीटों के उप चुनाव में जाना है इस कारण वो इसका रिस्क लेने से बच रही है। इसी वजह से मंत्रिमंडल की बुधवार को हुई बैठक में शिक्षक तबादलों को लेकर निर्णय नहीं किया गया।

हर सरकार चुनाव के समय तबादला नीति बना शिक्षक तबादले करने का वादा करती है मगर नीति नहीं बनती। तबादले तो राज्यादेश व विधायकों की डिजायर पर ही होते हैं। फिर बवाल मचता है। कैम्प लगाकर थोक में तबादले होते हैं। सरकार उससे विवाद में घिरती है। इस कारण ही शिक्षक तबादलों से हर सरकार बचना चाहती है मगर विधायक सर्वाधिक तबादले शिक्षकों के ही चाहते हैं। इस बार भी राज बदलते ही इसी वर्ग के तबादलों की अधिक मांग हो रही है।

तृतीय श्रेणी शिक्षक तो तबादलों के लिए तरस गये है। दो सरकारें आयी मगर इनको तबादले की राहत नहीं मिली। इस वर्ग की संख्या सबसे अधिक है और इनको वर्षों से तबादले के जरिये सुविधा नहीं मिली है। हर सरकार नीति बना तबादले करने का आश्वासन तो देती है मगर वो सदा अधूरा रहता है। इस अल्पवेतन भोगी शिक्षक को वर्षों से अपने मूल निवास या उसके पास आने का अवसर नहीं मिल रहा। नई भाजपा सरकार ने इनसे चुनाव के समय वादा किया था कि वो नीति या नियम बनाकर तबादले करेगी, अभी तो ये वादा अमलीजामा नहीं पहन सका है। तृतीय श्रेणी शिक्षक आक्रोशित भी है। उसे भी फिलहाल तो राहत मिलने की उम्मीद दिखती नहीं है।

भजनलाल केबिनेट ने निर्णय किया कि शिक्षा और चिकित्सा में तबादले उस समय ही होंगे जब इन विभागों के लिए नई और पारदर्शी तबादला नीति बन जायेगी। तबादला नीति बनाने के लिए कमेटी भी बनाई हुई है जिसने अनेक राज्यों की शिक्षक तबादला नीति का अध्ययन भी किया है। मगर अभी तक उस समिति ने तबादला नीति बनाकर सरकार को नहीं दी है।

बताया जाता है कि राज्य में उड़ीसा की तर्ज पर शिक्षक तबादला नीति बनाने पर काम हो रहा है। जिसमें ये तय किया जायेगा कि एक स्कूल में न्यूनतम एक शिक्षक को कुछ वर्ष तक तो रहना ही होगा, उसके बाद ही उसका तबादला होगा। ये वर्ष कितने होंगे, ये तय किया जा रहा है। ठीक इसी तरह उतने वर्ष पूरे करने के बाद शिक्षक को वहां से अपना तबादला कराने का अधिकार होगा।

केबिनेट बैठक के बाद मंत्री जोगाराम पटेल ने साफ कहा कि तबादला अधिकार नहीं है। फिर भी पारदर्शिता शिक्षक तबादलों के लिए जरूरी है। वो एक नीति बनने से ही सम्भव है। इस कारण केबिनेट ने निर्णय किया है कि तबादला नीति बनने के बाद ही शिक्षकों के तबादले शुरू किए जायेंगे। कुल मिलाकर शिक्षकों को अभी तबादलों के लिए इंतजार करना पड़ेगा। उप चुनाव से पहले तो तबादले होने के कोई आसार नहीं लगते।



मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में 

मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को  अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।