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सीएम को संबोधित पत्र में सभी अकादमियों को चालू करने का आग्रह

 

दुलाराम सहारण

RNE Network.

रचनाकार व राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के पूर्व अध्यक्ष दुलाराम सहारण ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को एक पत्र लिखकर राज्य की ठप्प पड़ी साहित्य, कला, भाषा अकादमियों में अध्यक्ष मनोनयन का आग्रह किया है ताकि इन अकादमियों का कामकाज शुरू हो सके। 
 

उनके सुझावों में पहले से चल रहे राज्य स्तरीय पुरस्कार व आयोजन भी आरम्भ करने की बात शामिल है। उनका पत्र पाठकों के लिए हु ब हु प्रस्तुत है। कहीं तो कोई हलचल प्रदेश में साहित्य, कला एवं संस्कृति के लिए हो।
 

रचनाकार दुलाराम सहारण का खुला पत्र :
 

राजस्थान सरकार के मुख्य मंत्री Bhajanlal Sharma के नाम एक खुला पत्र- राजस्थान सरकार के अधीन आने वाली अकादमियों के संदर्भ में कुछ सुझाव

-डॉ. दुलाराम सहारण
पूर्व अध्यक्ष, राजस्थान साहित्य अकादमी

माननीय मुख्य मंत्री महोदय,

जैसा कि आपको विदित ही होगा, जानकर प्रसन्नता होगी कि Government of Rajasthan के अधीन दस से अधिक अकादमियां हैं, जो साहित्य, संस्कृति, कला, संगीत आदि के क्षेत्र में काम कर प्रांत के यश में वृद्वि करती रही हैं तथा प्रांत के साहित्यकार, कलाकारों के मान-सम्मान, प्रोत्साहन के लिए एक मंच की भूमिका निभाती रही हैं।

मान्यवर, उक्त अकादमियों की मौजूदा हालत बड़ी खराब है। इस संदर्भ में कुछ सुझाव आपकी सेवा में प्रेषित हैं, उम्मीद है इन पर गौर फरमाएंगे-

1. राजस्थान प्रांत की ठप पड़ी दसाधिक अकादमियों में तुरंत अध्यक्ष नियुक्त कर उन्हें क्रियाशील किया जाए।
 

-उक्त अकादमियां ठप इस कारण से हैं कि आपने पदभार ग्रहण करते ही एक आदेश जारी किया, जिस के द्वारा काम कर रहे अध्यक्ष/सदस्यों को तुरंत प्रभाव से कार्यमुक्त कर दिया गया था। चूंकि बोर्ड के अभाव में उक्त अकादमियां कोई भी नीतिगत निर्णय नहीं ले सकती। फलतः आपके उक्त आदेश के कारण ही समस्त अकादमियां ठप हो गईं हैं। अब उस चूक में तुरंत सुधार किया जाए।

2. राजस्थान प्रांत की अकादमियों में अध्यक्ष/सदस्य की नियुक्ति के आदेश के साथ ही उक्त अकादमियों का बजट कम से कम दस गुना करने का आदेश जारी किया जाए।
 

-उक्त बजट इसलिए आवश्यक है कि इन अकादमियों में पिछले दसाधिक साल से बजट में आंशिक वृद्धि/कटौती होती रही है। एकमुश्त बजट बढ़ाने की समयानुसार मांग की ओर समुचित ध्यान नहीं दिया गया है। जोकि ध्यान देना अब अनिवार्य हो गया है। जैसाकि आप जानते हैं किताब छपवाना, आयोजन करवाना आदि इस दौर में बहुत मंहगा हो गया है। इसी महंगाई वृद्धि दर के अनुपात में कम से कम दस गुना या उससे अधिक बजट वृद्धि अनिवार्य हो चली है। यह वृद्धि तुरंत की जाए। अन्यथा न केवल अकादमियों अपितु आप द्वारा बनाए गए अध्यक्ष भी बजट संकट से जूझते रहेंगे। ऐसा मेरा अनुभव है।

3. वहीं उक्त सभी अकादमियों के पुरस्कारों की राशि भी कम से कम दस गुना की जाए।
 

-उक्त अकादमियों के सर्वोच्च पुरस्कारों एवं अन्य पुरस्कारों की राशि बहुत कम है। यथा राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर के मीरां पुरस्कार की राशि 75 हजार रुपये है। जोकि सर्वोच्च पुरस्कार है। यही लगभग हालत अन्य अकादमियों की है। इस संदर्भ में अन्य प्रांतों की अकादमियों की पुरस्कार राशि देखें तो वह दो, पांच, दस लाख रुपये तक की हैं। अन्य राज्यों की अकादमियों के पुरस्कारों की तुलना करते हुए राज्य सरकार कम से कम दस गुना या फिर उन प्रांतों से अधिक की राशि के पुरस्कार देकर प्रांत सरकार एवं प्रांत के साहित्यकारों की साख सवाई करें।

4. राजस्थान प्रांत की उक्त अकादमियों के अध्यक्ष/सदस्यों की नियुक्ति/मनोनयन राज्य सरकार अपनी इच्छानुसार करती है। परंतु अपनी तमाम अन्य नियुक्तियों की तरह अकादमी अध्यक्ष/सदस्यों के लिए किसी भी तरह के मानदेय, वेतन, भत्ते आदि के प्रावधान स्पष्ट नहीं हैं। ऐसे में तमाम लोग अब तक प्रायः बिना वेतन ही ‘जनसेवा’ करते रहे हैं। ऐसे में जरूरी है कि नियुक्ति आदेश में ही यह स्पष्ट प्रावधान किया जाए कि अमुक के लिए राज्य सरकार यह बजट प्रावधान करती है।
 

-उक्त प्रावधान तय करना एवं वित्तीय स्वीकृति के साथ आदेश जारी करना इसलिए जरूरी है कि जब राज्य सरकार तमाम नियुक्ति मिलने वालों के लिए सम्मान-धन निर्धारित करती है तो फिर इन अकादमियों में नियुक्ति पाने वालों के साथ यह भेदभाव क्यों, यह अपमान क्यों? उन्हें भी उचित सम्मान देते हुए, उनके आर्थिक संकटों एवं काम के बदले वेतन के भाव को समझते हुए उक्त निर्धारण किया जाए। जोकि मानवीय न्याय भी है तथा सरकार की जिम्मेदारी भी।

5. राजस्थान प्रांत के पुरस्कृत साहित्यकारों को राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम तथा अन्य सरकारी सार्वजनिक परिवहन सेवाओं में में निःशुल्क यात्रा सुविधा देने के आदेश जारी किए जाएं।
 

-उक्त आदेश इसलिए जरूरी हैं कि कई राज्यों में यथा अपने नजदीकी हरियाणा में भी सरकार पुरस्कृत साहित्यकारों के सम्मान में रोडवेज आदि में यात्रा निःशुल्क कर रखी है। इससे प्रांतीय सरकार का न केवल साहित्यकारों के प्रति सम्मान झलकता है, अपितु अकादमियों एवं अन्य संस्थाओं द्वारा प्रांत में आयोजन करने में सहयोग भी मिलता है। सहयोग इस संदर्भ में कि आयोजन में आने वाले अधिसंख्यक साहित्यकार इस योजना का लाभ लेंगे तो आयोजकों को यात्राव्यय का अतिरिक्त भार वहन नहीं करना पड़ेगा। इससे प्रांत में साहित्यिक वातावरण निर्माण में सहयोग मिलेगा।

6. राजस्थान प्रांत के पुरस्कृत साहित्यकारों को राजस्थान राज्य के सर्किट हाउस, रेस्ट हाउस एवं अन्य सरकारी विश्राम स्थलों में निःशुल्क विश्राम-सुविधा देने के आदेश जारी किए जाएं।
 

-उक्त आदेश से रोडवेज में यात्रा निःशुल्क करने जैसा ही असर होगा और न केवल प्रांत के साहित्यकारों का सम्मान होगा अपितु उन स्वयं को, अकादमियों के एवं आयोजकों के भी सहूलियत होगी।

7. प्रांत के बुर्जुग/वरिष्ठ साहित्यकारों पर डॉक्यूमेंटरी फिल्मों का निर्माण करवाया जाए।
 

-उक्त निर्णय से उम्र के अंतिम पड़ाव में पहुंच चुके रचनाकारों का जीवन संघर्ष, रचनात्मक संघर्ष और अनुभव दृष्टि का दृश्यांकन हो सकेगा, जोकि आनेवाली पीढ़ियों के लिए लाभकारी होगा।

8. प्रांत में आवास कर रहे बहुसंख्यक वर्ग के पर्याप्त प्रतिनिधित्व की चूक को सुधारते हुए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग से अकादमी अध्यक्ष बनाए जाएं।
 

-जानकर आश्चर्य होगा कि प्रांत की उक्त अकादमियों में आजादी के अस्सी साल बाद भी एससी/एसटी वर्ग का एक भी अध्यक्ष नहीं बना है। यह वर्गीय भेदभाव है। जिसे इस बार कम से कम तीन-चार अकादमियों में नियुक्ति देकर पाटा जा सकता है। सरकार द्वारा समुचित प्रतिनिधित्व के समभाव का आदर किया जाना चाहिए।

9. प्रांत की अकादमियों के बकाया की तुरंत बजट स्वीकृति जारी कर तथा संबंधित तक बजट पहुंचाकर साख को बचाया जाए।
 

-उक्त अकादमियों के भंग होने के कारण तथा अधिकार प्रशासनिक अधिकारियों के पास आने के कारण में से कई अकादमियों के बकाया बजट का निस्तारण नहीं हो पाया है। जिसमें से साहित्यकार, कलाकारों को दिए गए पुरस्कार-सम्मान की राशि भी बकाया होना आश्चर्य पैदा कर रही है। वहीं रचनाकारों के मानदेय, आयोजनों में भागीदारी का यात्रा-व्यय, बैठक भत्ते, आयोजन खर्च आदि भी बकाया बताया जा रहा है। इस संदर्भ में संज्ञान लेते हुए उक्त राशि का त्वरित भुगतान करवाया जाकर अकादमी तथा सरकार की साख को बचाया जाए।

10.  अकादमियों  की पत्रिकाओं को नियमित किया जाए।
 

-उक्त अकादमियों की प्रायः एक पत्रिका निरंतर रही है। भले ही उसकी आवृत्ति मासिक, त्रैमासिक या वार्षिक रही हो। कुछ अकादमियों की पत्रिकाएं बजट अभाव या फिर प्रकाशन स्वीकृति के विलंब या जटिलता के चलते बंद-सी हैं। इस संदर्भ में संज्ञान लिया जाए और संबंधित को पत्रिका नियमित रखने हेतु पाबंद करते हुए जरूरी स्वीकृति तथा बजट तुरंत जारी किया जाए।

11. अकादमी पत्रिकाओं की पहुंच राजस्थान के समस्त सरकारी विद्यालयों एवं महाविद्यालयों तक अनिवार्य की जाए। समस्त सरकारी विभागों में भी पत्रिकाओं की पहुंच हो।
 

-उक्त पत्रिकाओं को राजस्थान सरकार अपने अधीन आने वाले समस्त शैक्षणिक संस्थानों के पुस्तकालयों तक पहुंचाने के अनिवार्य आदेश जारी करे। सरकार इस हेतु जरूरी बजट एकमुश्त अकादमियों को प्रेषण सूची के साथ ही जारी करे। इससे अकादमियों का पत्रिका प्रकाशन ध्येय विस्तारित होगा और अधिकतम तक लाभ पहुंचेगा।

12. इन अकादमी पत्रिकाओं को राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी नियमित विज्ञापन अनिवार्यतः दिए जाएं।
 

-उक्त अकादमियां सरकार के अधीन संचालित हैं। उनकी पत्रिकाओं में सरकार की योजनाओं के प्रचार-प्रसार हेतु जारी विज्ञापन नियमानुसार तय दरों से जा सकते हैं। जोकि राज्य सरकार बड़े स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं को जारी करती रही है, कर रही है। इस स्वीकृति से सरकार की योजनाओं का प्रचार जहां विस्तारित होगा, वहीं अकादमी पत्रिकाओं को विज्ञापन मद में एक निश्चित राशि मिलनी प्रारंभ होगी। जिससे पत्रिकाओं का कलेवर, संख्या और विस्तार सभी पक्ष लाभान्वित होंगे। पत्रिका नियमित भी रहेगी।

13. अकादमियों को प्रकाशन-मद में अतिरिक्त बजट आवंटित किया जाए।
 

-अब तक अकादमियों के कंधे पर प्रमुखतः दो भार रहे हैं, या यूं कहें, वे अघोषित रूप से दो भार ढोती रही हैं- पहला, पुरस्कार-सम्मान देना और दूसरा, आयोजन करना। परंतु अकादमियों का मूल ध्येय प्रांत के साहित्यकारों में रचनात्मकता को विस्तार देना तथा उनकी पुस्तकों के प्रकाशन को बल देना, प्रकाशित करना होना चाहिए। इस दिशा में सरकार द्वारा बजट के साथ आदेश जारी किया जाए कि उक्त समस्त अकादमियां अधिकाधिक किताबें छापे, उन्हें विस्तार सौंपे तथा पुस्तक संस्कृति को समृद्ध करे।

14. राजस्थान सरकार पुस्तकें खरीदती हैं। जानकारों के मुताबिक समग्र शिक्षा अभियान या अन्य कई समतुल्य योजनाओं में प्राप्त बजट तथा सरकार स्वयं द्वारा जारी बजट से पुस्तकें खरीदी जाती रही हैं। इस खरीद में राज्य सरकार के अधीन आने वाली इन अकादमियों की पुस्तकों की कम से कम 25 प्रतिशत खरीद अनिवार्य की शर्त लगाते हुए पुस्तकंे क्रय करने का आदेश जारी किया जाए।
 

-उक्त तरह की खरीद में हालांकि सरकारी प्रकाशनों को प्राथमिकता देने का प्रावधान हैं परंतु स्पष्ट प्रावधान किया जाए कि प्रांत की साहित्य अकादमियों द्वारा प्रकाशित पुस्तकें कम से कम पच्चीस फीसदी अनिवार्य खरीदी जाएं। इससे अकादमियों द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की जहां बिक्री होगी, लाभांश प्राप्त होगा वहीं उल्लेखनीय पुस्तकें भी प्रांत के पुस्तकालयों को मिलेंगी।
हांलाकि इस संदर्भ मेें राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर एवं राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर की अब तक की प्रकाशित पुस्तकंे मैंने व्यक्तिगत रूप से प्रयास कर पुस्तकालयों हेतु क्रय करवाई हैं। जानकार प्रसन्नता होगी कि इन अकादमियों का पुस्तक स्टॉक इस खरीद के बाद शून्य है।
परंतु राजस्थान सरकार के इस क्रयादेश नियम जारी होने से उक्त पुस्तकों के पुनःमुद्रित हो सकेंगीे तथा अन्य खूब सारी नई पुस्तकें भी प्रकाशन में आ सकेंगी।

15. राजस्थान सरकार की उक्त अकादमियों को विश्व पुस्तक मेले, राष्ट्रीय पुस्तक मेले या अन्यान्य पुस्तके मेलों में अपने प्रकाशन लेकर जाने तथा व्यापक प्रचार-प्रसार-प्रयास से पुस्तकों की बिक्री करने की अनिवार्यता सौंपी जाए। इस संबंध में बजट तथा  स्पष्ट आदेश जारी किए जाएं। राजस्थान सरकार स्वयं भी पुस्तक मेलों का आयोजन प्रारंभ करें।
 

-उक्त आदेश से देश के कोने-कोने में प्रांत के साहित्यकारों की अकादमियों द्वारा प्रकाशित पुस्तकें पहुंचेगी तथा पुस्तक विक्रय से अकादमियों को लाभांश प्राप्त होगा, जो आगामी प्रकाशनों में खर्च होकर उसे और अधिक समृद्ध करेगा।

16. उक्त अकादमियों के पास अपने वाहन होने अनिवार्य हैं। जोकि पुस्तक मेलों में या फिर प्रांत में कहीं होने वाले आयोजनों में पुस्तक प्रदर्शनी हेतु पुस्तकें ले जाने के लिए जरूरी हैं।
 

-राज्य सरकार प्रत्येक अकादमी को ऐसा एक-एक वाहन खरीदने की स्वीकृति एवं बजट जारी करे।

17. राजस्थान सरकार इन अकादमियों में खाली पड़े कार्मिकों के पदों को तुरंत भरे, कर्मचारियों के संकट से जूझ रही अकादमियों को स्वावलंबी बनाए।
 

-इस संदर्भ में राजस्थान सरकार के नए नियमों के बाद से उक्त अकादमियां अपने स्तर पर कर्मचारियों की भर्ती नहीं कर सकती तथा न ही रिक्त पदों को भर सकती। सभी भर्तियां राज्य सरकार की भर्ती एजेंसियों के जरिये होनी हैं। अतः सरकार सभी अकादमियों के खाली पड़े पदों की सूची मंगवाकर सभी पदों पर स्थाई भर्ती करवाए। जिससे अकादमियां अपने स्थापना ध्येय तक पहुंच सकें।

18. राजस्थान सरकार राजस्थानी साहित्य उत्सव आदि बड़े आयोजन करती रही है। उन बंद पड़े आयोजनों को फिर से प्रारंभ किया जाए। बंद पुरस्कार भी फिर से प्रारंभ हों। इस हेतु कम से कम दस करोड़ रुपये का एकमुश्त बजट प्रतिवर्ष जारी किया जाए।
 

-गत राजस्थान सरकार ने जोधपुर में दो करोड़ रुपये की बजट स्वीकृति के साथ ही अल्प मद में साहित्य उत्सव आयोजित किया था। उक्त आयोजन गत वर्ष नहीं हो सका। इस वर्ष साहित्य उत्सव किया जाए और प्रतिवर्ष निरंतर हो ऐसा आदेश तथा कम से कम दस करोड़ रुपये का वार्षिक बजट जारी किया जाए, ताकि आयोजन जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल तथा अन्य प्रांतीय सरकारों के साहित्य उत्सवों से भी शानदार हो सके।

19. राजस्थान सरकार की बजट घोषणा में लंबित तथा प्रक्रिया में आए सीताराम लालस, कोमल कोठारी, विजयदान देथा, कन्हैयालाल सेठिया आदि पुरस्कार, जोकि ग्यारह-ग्यारह लाख रुपये के थे, उन्हें निरंतरता सौंपी जाए।
 

-राजस्थान सरकार द्वारा इस तरह के पुरस्कारों की पहल में उक्त पुरस्कार काफी महत्वपूर्ण माने गए थे। अब उन्हें अमलीजामा पहनाकर राज्य सरकार को यश की भागी बनना चाहिए।

20. राजस्थान रत्न अवार्ड भी दिए जाएं।
 

-राजस्थान सरकार विभिन्न क्षेत्रों की उल्लेखनीय हस्तियों को, जिसमें साहित्यकार भी शामिल रहे हैं, राजस्थान रत्न सम्मान देती रही है। उसे निरंतर किया जाए।

महोदय, उक्त सुझावों के अतिरिक्त भी अन्य कई सुझाव हैं, जिन्हें आप तक प्रेषित किया जा सकता है। परंतु ये क्रमशः होंगे तो आपके लिए भी सुविधा जनक होंगे तथा हमें भी पतियारा होगा कि पूर्व में प्रेषित सुझावों पर अमल किया गया है तब ही अगले सुझाव प्रेषित किए जाएं। 

आपका नारा है- "मजबूत सरकार, फैसले असरदार"...
 

उक्त फैसले लेने से ही साहित्यिक वर्ग सरकार को मजबूत मानेंगा, अन्यथा सरकारों का क्या, पांच साल की मियाद होती है। आती हैं, चली जाती हैं। याद रहता है किया काम।

आदर सहित।