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राजस्थानी कहानी की जीवंत परंपरा और उसका नया स्वर, क्षेत्रीयता से सार्वदेशिकता तक राजस्थानी कहानी की यात्रा

 

RNE Bikaner.

डॉ. नीरज दइया
 

'सृजन कुंज' का यह अंक 47-48 (अगस्त से नवंबर 2025) राजस्थानी कहानी की समकालीन धारा को केंद्र में रखता है और इस बात को प्रमाणित करता है कि राजस्थानी साहित्य अब केवल क्षेत्रीय पाठक वर्ग तक सीमित नहीं है। हिंदी और राजस्थानी के साझा साहित्यिक परिदृश्य में यह अंक एक महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप की तरह सामने आता है। इसे पढ़ते हुए महसूस होता है कि इसके पीछे गहरी संपादकीय समझ, साहित्यिक निष्ठा और रचनात्मक परिश्रम मौजूद है।

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इस अंक की सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि मुख्य संपादक कृष्ण कुमार आशु जो स्वयं राजस्थनी कहानीकार हैं, यह फैसला लेते हैं कि वे अपनी कहानी शामिल नहीं करेंगे जब कि अतिथि संपादक का यह आग्रह रहा है। साथ ही अतिथि संपादक डॉ. लढ़ा ने भी अपनी कहानी अथवा आलेख को शामिल करने का मोह त्यागा है। जाहिर है कि उन्हें अतिथि संपादन का दायित्व दिया गया है और वे राजस्थानी कहानी में समकालीन प्रमुख हस्ताक्षर है।

दोनों का यह निर्णय केवल विनम्रता नहीं, बल्कि संपादकीय ईमानदारी का संकेत है। यह भी रेखांकित किया जाना चाहिए की डॉ. आशु स्वयं हिंदी और राजस्थानी दोनों भाषाओं में सक्रिय रचनाकार के रूप में पहचाने जाते हैं। कहानी, अनुवाद, व्यंग्य और पत्रकारिता इन सभी विधाओं में उन्होंने लगातार अपनी पहचान बनाई है। गंगानगर में साहित्य और समाज को जोड़ने वाले अनेक कार्यक्रमों का आयोजन कर वे एक जीवंत साहित्यिक वातावरण भी रचते रहे हैं। यह अंक उनके अनुभव और संवेदनशीलता का स्वाभाविक परिणाम लगता है। 

सम्मान के साथ उल्लेखनीय है कि सीमित संसाधनों के बावजूद सृजन कुंज त्रैमासिक पत्रिका वर्ष 2014 से नियमित प्रकाशित हो रही है। इसे दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी का सांत्वना पुरस्कार और प्रकाश जैन लहर साहित्यिक पत्रकारिता पुरस्कार जैसी प्रमुख उपलब्धियाँ भी हासिल हुई हैं जो इसकी साहित्यिक गंभीरता को प्रमाणित करती हैं। इस पत्रिका ने अपने पाठकों को अनेक विशेषण दिए हैं जैसे- बाल साहित्य अंक, महिला लेखन अंक, व्यंग्य-अंक आदि। साथ ही कुछ वरिष्ठ रचनाकारों पर केंद्रित अंक भी गरिमामय रहे हैं, जैसे- कमर मेवाड़ी, प्रेम जनमेजय और गीताश्री के लेखन पर केंद्रित अंक। इस में संपादकीय दृष्टि की विशिष्टता प्रत्येक अंक में देखी जा सकती है- हरेक अंक तीन उपशीर्षकों से सज्जजित मिलेगा- शोध, संस्कृति और साहित्य। राजस्थानी कविता पर केंद्रित अंक की व्यापक प्रशंसा के बाद यह राजस्थानी कहानी विशेषांक उसी यात्रा को आगे बढ़ाता है।
 

इस अंक का अतिथि संपादन डॉ. मदन गोपाल लढ़ा ने किया है। कहानियों के चयन में उनका परिश्रम साफ झलकता है। वरिष्ठ, मध्य और युवा पीढ़ी के रचनाकारों की विस्तृत शृंखला इस विशेषांक को विविधता और गहराई दोनों प्रदान करती है। इसमें डॉ. नीरज दइया के समकालीन राजस्थानी कहानी पर केंद्रित आलेख को शोध खंड में शामिल किया गया है वहीं डॉ. गौरीशंकर प्रजापत के आलेख को संस्कृति खंड में। दोनों आलेख राजस्थानी कहानी के परिदृश्य को व्यापकता के साथ प्रस्तुत करता हैं। शामिल आलेख आधुनिक और परंपरागत राजस्थानी कहानी के विकास, प्रवृत्तियों और चुनौतियों को विवेचनात्मक रूप में प्रस्तुत करने वाले हैं। ये आलेख राजस्थानी कहानी के भविष्य, नए प्रयोगों और कहानीकारों के योगदान की चर्चा करते हैं। इन आलेखों में अनुवाद की गुणवत्ता, विविध रचनाकारों की उपस्थिति और राजस्थानी कहानी की समकालीन पहचान भी स्पष्ट रूप से उभरती है।
 

शामिल कहानीकार हैं- मंगत बादल, ओमप्रकाश भाटिया, माधव नागदा, मधु आचार्य 'आशावादी', भरत ओला, पूरण शर्मा 'पूरण', कमल रंगा, निशांत, दिनेश पंचाल, डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंख', डॉ. कीर्ति शर्मा, संतोष चौधरी, हरीश बी. शर्मा, शकुन्तला पालीवाल, रोचिका अरुण शर्मा। अंक के अंत में राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर' और किरण बादल द्वारा अलग अलग राजस्थानी कहानी संग्रहों की समीक्षा शामिल है।
 

शामिल कहानियों का संसार बहुआयामी है। लोक जीवन से लेकर शहरी संवेदनाओं तक, स्त्री अनुभवों से लेकर सामाजिक बदलावों तक, पीढ़ियों के बीच के संवाद से लेकर मनोवैज्ञानिक गहराइयों तक, हर कहानी अपना अलग जीवन-परिदृश्य लेकर एक वितान रचती है। यह अंक स्पष्ट करता है कि राजस्थानी कहानी अब केवल लोक-गाथा या ग्रामीण जीवन तक सीमित नहीं है। समकालीन अनुभवों, संघर्षों और द्वंद्वों को नई पीढ़ी अपने लेखन में जिस संवेदनशीलता से रख रही है, वह इन कहानियों को आधुनिक भारतीय कहानी के मानक के पास ले जाता है।
 

अनुवाद इस विशेषांक की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। अधिकांश कहानियों का अनुवाद स्वयं कहानीकारों ने किया है, जिससे भाषा और भाव की विश्वसनीयता बनी रहती है। जहां अनुवादक अलग हैं, वहां भी भाषा सहज, स्वाभाविक और कहानी के अनुकूल है। हिंदी पाठक इन अनुवादों के माध्यम से राजस्थानी कहानी की ताकत को निकटता से समझ सकते हैं।
 

चित्रांकन और आवरण को सेजल कथीरिया ने संवेदनशीलता के साथ रचा है। आवरण कहानी संसार की आंतरिक लय को दृश्य रूप में प्रस्तुत करता है। साहित्यिक पत्रिकाओं में कला पक्ष को अक्सर कम महत्त्व मिलता है, लेकिन सृजन कुंज की यह परंपरा इस अंक में भी बनी हुई देखी जा सकती है।
 

संपादकीय भूमिका पूरे अंक में एक आधार की तरह उपस्थित है। कृष्ण कुमार आशु और डॉ. मदन गोपाल लढ़ा ने कहानी चयन, भाषा, संरचना और प्रस्तुति इन सबमें संतुलन बनाए रखा है। यह अंक बताता है कि एक अच्छा संपादन केवल रचनाओं को जोड़ने का काम ही नहीं करता वरन वह एक साहित्यिक दृष्टिकोण भी निर्मित करता है।
 

यह अंक 'सृजन कुंज' की बारह वर्ष की यात्रा में एक विशेष पड़ाव है। यह केवल कहानी संकलन नहीं, बल्कि राजस्थानी कहानी के साहित्यिक विकास का एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है। स्थानीयता के भीतर से उठकर ये कहानियां सामाजिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर बहुत व्यापक संकेत देती हैं। हिंदी पाठक के लिए यह अंक एक नया अनुभव और नई समझ लेकर आता है।
 

संकलित कहानियों की विशेषताओं पर नजर डालें तो ओमप्रकाश भाटिया की कहानी कला और संगीत के प्रति समाज में बदलते दृष्टिकोण को सामने लाती है। जैसलमेर का परिवेश और लोक कलाकारों का संघर्ष कहानी में सजीव रूप से उभरता है। पूरण शर्मा पूरण की कहानी पण्डुकी के बच्चे बालमन की कोमल संवेदनाओं और जीव-दया को मार्मिक तरीके से प्रकट करती है।
 

मंगत बादल की कहानी वृद्ध विमर्श पर केंद्रित है और सेवानिवृत्ति के बाद जीवन की खालीपन भरी चुनौती को वास्तविकता के साथ रखती है। हरीश बी. शर्मा की बाजोट कहानी नए समय में स्त्रियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को समझने का एक नया दृष्टिकोण देती है। कमल रंगा की डिलीट कहानी बदलते समय में स्त्री मन, देह और संस्कारों के द्वंद्व को सामने लाती है। हरिमोहन सारस्वत की कहानी नया दौर औरत के मन में अपने अधिकारों को पहचानने वाले साहस को मूली देवी के माध्यम से रेखांकित करती है।
 

मधु आचार्य 'आशावादी' की कहानी सामाजिक संबंधों में आ रहे बदलाव और नई पीढ़ी के साहस को दर्ज करती है। दिनेश पंचाल और शकुन्तला पालीवाल की कहानियां आदिवासी समाज की परंपराओं, संवेदनाओं और उनकी आंतरिक दुनिया को सामने लाती हैं।
 

कुल मिलाकर यह अंक राजस्थानी कहानी को भारतीय कहानी के समानांतर खड़े होने की क्षमता प्रदान करता है। संपादकों और सभी रचनाकारों ने बड़ी मेहनत और संवेदनशीलता के साथ यह विशेषांक तैयार किया है। यह अंक पाठकों के लिए एक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक अनुभव सिद्ध होगा।

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