- उनकी कलम का ये जादू ही था कि वे बड़ी से बड़ी बात भी सहज होकर कह जाते थे
- उनमें परंपरा व आधुनिकता का अनूठा संगम था
पूनम चौधरी
RNE Special. ( रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस RNE ने अपने पाठकों से वादा किया है कि वो हिंदी, राजस्थानी व उर्दू के उन रचनाकारों, कलाकारों से परिचित कराएगा जिन्होंने गम्भीरता से काम किया। हमारा फोकस हालांकि बीकानेर रहेगा। मगर नामचीन रचनाकारों को भी हम इसमें शामिल करेंगे ताकि आज की पीढ़ी को सीख मिले। उसी कड़ी में आज शायर शहरयार की जयंती पर प्रस्तुत है यह आलेख। इसे बीबीएस स्कूल की शिक्षिका, कवयित्री, कहानीकार पूनम चौधरी ने तैयार किया है। सोर्स रेखता। -- संपादक )
' सीने में जलन, आंखों में तूफान सा क्यों है, इस शहर में, हर शख्स परेशान सा क्यों है '
ये शेर हर कोई गुनगुनाता दिख जायेगा। शेर एक फिल्म के गीत का है मगर ये पूरी गज़ल एक ऐसे शायर की है जिसने अपना कलेजा निकालकर इस ग़ज़ल में रख दिया है। इस एक शेर में गहरी संवेदना छिपी हुई है। आधुनिक जीवन की जटिलताओं को शायर ने उकेर दिया है। ये कला हरेक शायर में नहीं होती। इस शायरी को उकेरा है अखलाक मुहम्मद खान ' शहरयार ' ने। ये ही शायर शहरयार की खास पहचान है।

आधुनिक युग की उर्दू शायरी में शहरयार को एक खास मकाम हासिल है। ये मकाम उन्होंने अपनी सादगी, गहन विचारों और भावनाओं की सहजता से हासिल किया और उर्दू अदब को भी समृद्ध किया। उन्होंने उच्च स्तरीय हिंदी फिल्मों के गीतों के माध्यम से लाखों दिलों पर प्रेम से दस्तक दी।
शहरयार की शायरी: इस मानीखेज शायर की शायरी में जिंदगी के दुख - दर्द , प्रेम और मानवीय संवेदना को इस तरह से पिरोया गया है कि वह हर किसी के दिल में उतर जाती है। उनकी कलम का जादू जटिल भावनाओं को सरल शब्दों में ढाल देता है।
शहरयार में अनूठा संगम था: आधुनिकता और परंपरा का सुंदर संगम अपनी शायरी में कर लेना बहुत कठिन कार्य है मगर शहरयार ने यह काम आसानी से किया। वे उन रचनाकारों में से है जिन्होंने परंपरा को साथ रखते हुए आधुनिकता का अवलंबन किया। ज्ञानपीठ व साहित्य अकादमी के प्रतिष्ठित पुरस्कार उनके खाते में है।
जन्म के बारे में भी जानें: ' शहरयार ' के नाम से पहचान पाने वाले अखलाक मुहम्मद खान का जन्म 16 जून 1936 को उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के आंवला में एक मुस्लिम परिवार में हुआ। उनके पिता अबू मुहम्मद खान एक पुलिस अधिकारी थे और वे चाहते थे कि उनका बेटा भी उनकी तरह ही पुलिस अफसर बने। लेकिन शहरयार का रुझान साहित्य और शायरी की ओर था। शुरुआती शिक्षा हरदोई में पूरी करने के बाद वह 1948 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय चले गए, जहां उन्होंने 1961 में उर्दू में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की।
शहरयार का अर्थ: इस शब्द का अर्थ है ' शहर का राजा ' या ' शहर का शासक '। यह शब्द फारसी भाषा से लिया गया है जिसमे शहर का अर्थ शहर और यार का अर्थ मित्र या शासक होता है। इस प्रकार शहरयार नाम का अर्थ ' शहर का मित्र ' या ' शासक का साथी ' समझा जा सकता है।
एक नया रंग शायरी में: शहरयार ने हालांकि 1960 के दशक में ही शायरी शुरू कर दी थी। वे जल्द ही अपनी अनूठी शैली के कारण पहचाने गये। उनकी शायरी में मौजूद उदासी और विडंबना का मिश्रण उस समय की उर्दू शायरी में एक नया रंग लेकर आया।

मशहूर शायर खलील - उर - रहमान आजमी के सानिध्य में उनकी शायरी निखरी और उन्होंने ' शहरयार ' तखल्लुस अपनाया। इसी दौरान उनकी पहली किताब ' इस्म - ए - आजम ' 1965 में आई, लेकिन ' ख्वाब का दर बंद है ' जो 1987 में आई , जिसके लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला। शहरयार, फिराक गोरखपुरी, कर्रतुलऐन हैदर और अली सरदार जाफरी के बाद चौथे ऐसे उर्दू साहित्यकार है जिन्हें ज्ञानपीठ सम्मान मिला।
घर घर मे पहचान दिलाई: यही नहीं, शहरयार ने हिंदी सिनेमा में भी अपनी छाप छोड़ी। उन्होंने 1981 में आई फिल्म ' उमराव जान ' के गीत ' इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हजारों है ', ' दिल चीज क्या है, आप मेरी जान लीजिए ', ' जुस्तजू जिसकी थी, उसको तो न पाया हमने ' गीतों ने उनको घर घर मे पहचान दिलाई।
शहरयार बकौल गुलज़ार:

बकौल गुलज़ार , शहरयार जैसा पढ़ते है वैसा ही लिखते भी है और उसके उलट भी वैसा ही है। उनका कहा, कँवल के पत्ते पर गिरी बूंद की तरह देर तक थिरकता रहता है। शेर सुनकर देर तक कान में गूंजता रहता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में संवेदनाओं के हिस्सों को इतनी बारीकी से छुआ है कि शहरयार को पढ़ने वाले लोग उनके कलामों में अपनी परछाई को देख सकते है।
आइए रु ब रु होते है शायरी से:
' अब जिधर देखिए लगता है कि इस दुनिया में, कहीं कुछ चीज ज्यादा है कहीं कुछ कम है ' ' अब जी के बदलने की है एक यही सूरत बीती हुई कुछ बातें हम याद करें फिर से '
कुछ उनके प्रसिद्ध शेर खुदा, मोहब्बत, जन्नत, ख्वाब, दीवानगी, इश्क आदि ऐसे मकाम है जिन्हें हर शायर ने अपनी नज्मों में एक दार्शनिक अंदाज दिया है। शहरयार के कुछ प्रसिद्ध शेर :--

' ये हसरत है कि इन आँखों से कुछ होता हुआ देखें अब तो ले दे के यही काम है इन आँखों का जिन को देखा नहीं उन ख्वाबों की ताबीर करें कहाँ तक वक्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें ये हसरत है कि इन आँखों से कुछ होता हुआ देखें जिंदगी देखिए क्या रंग दिखाती है हमें तुझसे बिछुड़े है तो अब किस से मिलाती है यूं कर गए दुनिया को अलविदा 13 फरवरी 2012 वो तारीख थी, जब उर्दू के महानतम शायरों में से एक शहरयार ने अलीगढ़ में कैंसर के कारण दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन उनकी शायरी आज भी जिंदा है और लोगों को आज भी प्रेरित करती है। नये शायर उनसे बहुत कुछ सीख सकते है। शहरयार को उनकी जयंती पर रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस RNE की तरफ से श्रद्धा सुमन।
