हर बार खास समय आने पर ही क्यों अकादमी को विवाद में डाला जाता है, अवार्ड वापसी के लिए भी ऐसा ही समय चुना गया था
न्यायालय पर भरोसा करना ही उचित सोच
विवाद से साहित्य व साहित्य अकादेमी की साख न जाये, ये चिंता
RNE Special.
देश की साहित्य की सबसे बड़ी पंचायत साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली को एक बार फिर विवाद के घेरे में लाया गया है। इस अकादमी को साहित्य की संसद कहा और माना जाता है। इसकी स्वायत्तता एक बड़ा उदाहरण है, देश के सामने। जिस अकादमी को देश की 24 भाषाओं के साहित्य को एक मंच देने का गौरव हासिल है, उसे ही विवाद के घेरे में लाया जाये तो कुछ वाजिब सवाल भी खड़े होने स्वाभाविक है।
ये वाजिब सवाल इस बार भी विवाद को जन्म देने पर खड़े हुए है। इन सवालों से वे सभी लेखक रु ब रु हो रहे है जिन्होंने अपनी मातृभाषा को गौरव इस देश की अकादमी के जरिये दिलवाया है। जो प्रतिबद्ध होकर अपनी भाषा व संस्कृति के लिए पीढ़ियों से काम कर रहे है।
खास समय ही विवाद क्यों:
इस बार साहित्य अकादमी को लेकर जब विवाद खड़ा हुआ तो एक सवाल हर लेखक व पाठक के मन में स्वाभाविक रूप से उठा है। इससे पहले अवार्ड वापसी का बड़ा विवाद खड़ा हुआ था। उस समय बिहार विधानसभा के चुनाव होने वाले थे।
इस बार भी वही स्थिति है। कुछ समय बाद ही बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले है और एक बार फिर साहित्य अकादमी को विवाद के घेरे में लाने की कोशिश शुरू हुई है। ये संयोग तो नहीं माना जा सकता।
एक और बड़ा कारण भी ' उन्मेष ':
भारत सरकार का कला एवं संस्कृति मंत्रालय, बिहार का संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादमी, नई दिल्ली मिलकर बिहार की राजधानी पटना में देश का तीसरा इंटरनेशनल लिटरेचर फेस्टिवल ' उन्मेष ' आयोजित कर रहे है। पिछले दो फेस्टिवल से कला एवं संस्कृति मंत्रालय व साहित्य अकादमी ने दुनिया भर के बुद्धिजीवियों में एक साख बनाई। केंद्र सरकार की यह बड़ी उपलब्धि थी।
इस बार उन्मेष से पहले विवाद खड़ा हुआ है, इसे भी संयोग नहीं माना जा सकता। इस इंटरनेशनल लिटरेचर फेस्टिवल ने एक खास पहचान केंद्र सरकार व अकादमी को दी है, उसे विवाद से झटका देने का प्रयास कुछ रचनाकार मान रहे है।
मामला न्यायालय में विचाराधीन:
इस बार जिस प्रकरण से साहित्य अकादमी को विवाद में लाने की कोशिश हुई है, वह मामला माननीय न्यायालय में विचाराधीन है। उस पर कोई निर्णय नहीं हुआ है। फिर भी विवाद खड़ा किया जा रहा है। सबको माननीय न्यायालय पर पूरा भरोसा करना चाहिए।
सचिव पर फोकस के सवाल:
साहित्य अकादमी के सचिव ने अपने जीवन का पूरा समय अकादमी को दिया और देश के 24 भाषाओं के लेखकों से जीवंत जुड़ाव रखा। 6 साल से चल रहे इस प्रकरण में अचानक से विवाद खड़ा किया गया है। इस विवाद के चलते सचिव के अधिकार को न रहने देने की बातें कितनी सही है, ये बड़ा सवाल है। जबकि शिकायतकर्ता को लगातार अकादमी से वेतन दिया जा रहा है, न्यायिक आदेश की पालना की जा रही है। फिर अकादमी को गलत तो कहा नहीं जा सकता।
साहित्य, अकादमी की साख बचे:
देश की 24 भाषाओं के अधिकतर साहित्यकार यही चाहते है कि विवाद से साहित्य व अकादमी को नुकसान न हो। उसकी साख सुरक्षित रहे। माननीय न्यायालय पर भरोसा करें और अपनी तरफ से निर्णायक बनकर साहित्य अकादमी की साख को प्रभावित न किया जाये।