BIKANER : पूरे लक्ष्मीनाथ परिसर को कोलकाता के पूजा मंडप जैसा सजाया, मंचन में कोई प्रोफेशनल कलाकार नहीं
RNE, BIKANER.
बीकानेर के नगरसेठ लक्ष्मीनाथ मंदिर का परिसर। भांडाशाह मंदिर के आगे से मुख्य परिसर में प्रवष्टि होने से पहले ही बने शानदार स्वागतद्वार को देख खास अहसास होता है। यहां प्रवष्टि होने के बाद पूरी संतोषी माता मंदिर की तरफ पहुंचने वाली पूरी चढ़ान पर इस कदर लाइटों की बंदनवार लगाई गई कि लगता है चमकदार गुफा में से गुजर रहे हैं। यह गुफा खत्म होते ही सामने संतोषी माता मंदिर तक कुछ ऐसी ही खास सजावट और इससे भी भव्य संतोषी माता मंदिर के पास वाला पार्क जिसका नाम अब पड़ गया है ‘रामलीला पार्क।’
रात के लगभग नौ बज चुके हैं। शानदार मंच के आगे दूर तक बैरीकैड्स लगे हैं। बैरिकैड्स में एक तरफ का मैदान महिलाओं से खचाखच भरा है। दूसरी ओर पुरुषों का जमावड़ा है। हालांकि माइक पर घोषणा हो रही है कि अपनी जगह बैठ जाएं, रामलीला शुरू होने वाली है लेकिन आयोजन से जुड़े एक कार्यकर्ता बताते हैं, शुरू होने में अभी आधा घंटा लगेगा।
मैदान भर गया है, लोग कहां बैठेंगे? सवाल के जवाब में उसने हाथ का इशारे से पेड़ों के पास खाली जगह, प्याऊ की चौकी आदि की ओर इशारा किया जहां लोग अपनी जगह बुक करना शुरू हो चुके थे।
यह देखना काफी रोमांचक है कि जिस दौर में गरबा मैदानों में मस्ती की धूम मची है वहां लोग अब भी रामलीला देखने आ रहे हैं? रामलीला में कलाकार कौन है? कहां से आये हैं? जैसे सवालों पर आयोजन के मुखिया गिरिराज जोशी मुसकुरा देते हैं। कहते हैं, परिवार के सदस्यों, मित्रों के साथ मिलकर शुरू की। सभी आपस के लोग ही कलाकार बने हैं। कोई प्रोफेंशनल नहीं है। कुछ संगीतकारों-संगतकारों का साथ मिल गया तो प्रभाव बढ़ गया।
एक ही टीम सब कुछ कैसे कर लेती है? इसका जवाब तलाशने मंच के पीछे गये तो हैरानी कई गुना बढ़ गई? जो लोग अभिनय करते हैं वे ही कॉस्ट्यूम से लेकर मंच-सज्जा की प्रोपर्टी भी तैयार करते हैं। कोई केवट की नाव को फाइनल टच करते नजर आ रहे तो कोई राम के धनुष की उतर चुकी डोरी को ठीक कर रहा है। माथै पर रखे लंबे बाल एक-दूसरे के संवार रहे हैं।
मंच के पीछे जहां सबकुछ समय पर कल लेने की हड़बड़ाहट चल रही है वहीं मंच के सामने बैठे सैकड़ों लोगों की उत्सुकता बढ़ रही है। बताया जाता है कि आज रामजी को वनवास होने जा रहा है। सब जानते हैं वनवास होगा। सीताजी कैसी दिखेगी, कैकेई का क्या होगा? सब जानते हैं उसके बावजूद देखने की उत्सुकता है।
आखिरकार मंचन शुरू होता है। राम वनवास जाने को तैयार होते हैं। साथ लक्ष्मण जाने को तैयार है। लोग बेहाल है और तब तो कइयों के आंसू बहने लगते हैं जब सारे गहने-श्रृंगार उतार सीता मैया वन में साथ जाने को तैयार हेाती है।
रात गहराती जाती है। रामकथा मंच पर आगे बढ़ती जाती है। भीड़ कम होने की बजाय बढ़ती जाती है और लगभग 12ः30 बजे जब आज की लीला के समापन की घोषणा होती है तो एक कशिश रह जाती है ‘काश थोड़ा आगे की घटना और दिखा देते।’ भीड़ निकलती है सबकी जुबान पर रामलीला की घटनाएं होती हैं।
इन सबके बीच गिरिराज जोशी, प्रभु छंगाणी, कैलाश, अभिरामदत्त गौड़, नवीन बोड़ा, मक्खन जोशी, प्रशांत आचार्य, शंकर तंवर, शंकरलाल भादाणी, मदन गोपाल आचार्य आदि की टीम साजो-सामान को समेटने में जुट जाती है ताकि अगले दिन की तैयारी कर सकें। आयोजन से जुड़े पत्रकार राजेश छंगाणी कहते हैं, ये महज कुछ नाम ही है बाकी टीम बहुत बड़ी है।
हर आदमी अपनी पहल से राम का काम मानते हुए दिन-रात जुटा है। दिनभर तैयारी चलती है तब रात को मंचन हो पाता है। इन सबके बीच एक बात और..यहां हर दिन समाज के किसी न किसी वर्ग से कोई मुख्य अतिथि होता है। उनका बाकायदा स्वागत-सत्कार होता है। यहां पहुंचने वाले अतिथि भी यह जानकार हैरान हो जाते हैं जब स्वागत करने वाली टीम में उनकी मुलाकात तानसेन छींपा से होती है। टीम के सदस्य बताते हैं, यह मुस्लिम युवा पिछले 10 दिनों से लीला के दौरान मंच पार्श्व से लेकर आयोजन स्थल से जुड़ी हर व्यवस्था में पूरी मेहनत से लगा है।