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जलियांवाला बाग : वो सवाल आज भी गूंज रहा है “क्या यहां कोई जिंदा है”

 

 

 

 

 

 

 

RNE, BIKANER .

मैदान में घुसते ही लगा अनायास झुकने लगा हूं। हाथ जमीन पर टिके। एक चुटकी में मिट्टी भरी और सर पर लगा ली। कल्पना में सौ साल पुरानी तस्वीरें घूमने लगी। ‘ सैकड़ों लोगों की सभा। सकरे रास्ते से अंग्रेजी जनरल डायर हथियारबंद सैन्य टुकड़ी के साथ पहुंचते है। आने-जाने के सभी रास्ते बंद हो चुके हैं। अचानक डायर की आवाज गूंजती है फायर !

शुरू हो जाती है गोलियों की बौछार। गिरने लगती है लाशें। गूंजती है चीखें। कुछ गोलियां लगने के बाद भागते हैं मैदान में एक तरफ बने कुएं में जा गिरते हैं। एक के बाद एक पूरा कुआं इंसानों से पट जाता हैं और लगभग सभी देखते-देखते लाशों में तब्दील हो जाते हैं।’

हिन्दी के ख्यातनाम साहित्यकार-आलोचक चितरंजन मिश्रा के साथ जलियांवाला बाग में पहलीबार कदम रखा तो जानें क्यों अचानक यह मनोदशा हो गई। मैदान में घूमती नजरें जानें क्या-क्या देखने लगी। नरसंहार में जान गंवाने वाले सबसे छोटे छह सप्ताह के बच्चे को पहले मौत ने आगोश में लिया होगा या उसे छाती से चिपकाएं हुए बेटे को बचाये रखने के लिए जिंदगी से जूझती मां ने पहले दम तोड़ा होगा।

कैसी मनोदशा रही होगी शवों के बीच अपनों को ढूंढ़ते हुए लोगों की। उन लोगों के कलेजे में इतनी हिम्मत कहां से आई होगी जिन्होंने पानी की जगह लाशों से भरे हुए कुएं में से शव निकाले होंगे। ‘कुएं में शव’ ये शब्द जैसे भीतर से ही कानों में गूंजे और कदम उस कुएं की तरफ बढ़ गए जो 13 अप्रैल 1919 की रात तक शवों से भर चुका था। उन्हें निकालने में दो दिन लग गए थे।

कुएं का सवाल : जिसका अब भी जवाब नहीं…

कुएं के अंदर झांका तो लगा वहां से आवाजें आ रही हैं। आवाजों का शोर इतना कि इनमें कुछ भी समझ पाना मुश्किल। धीरे-धीरे लगा ये शोर नहीं सवाल हैं जो सामूहिक पुकार बनकर मेरे सामने खड़े हैं। ये सवाल मुझे अपनी पीढ़ी का प्रतिनिधि मानकर मुझसे हो रहे थे। पूछा जा रहा था मुझसे ‘तुम इस मिट्टी से तिलक करते हो  दीवारों पर लगे गोलियों के निशानों को देखकर दुखी-आक्रोशित होते हो। हमारी शहादत को नमन करते हो। हमने जिस उद्देश्य से जिंदगी निछावर की उसके बारे में कुछ जानते हो?  लगा, मन ही मन बुदबुदाते हुए मैंने खुद को जवाब दिया-‘आजादी और लोकतंत्र के लिए प्राण निछावर कर दिये आपने। आपकी शहादतों की बदौलत देश आजाद हुआ। हम लोकतंत्र की खुली हवा में सांस ले रहे हैं। ये आपके बलिदानों से मिली आजादी है।’

अबकी बार कुएं में हवा का झोंका कुछ इस तरह आया मानों सभी सवालों को समाहित कर एक सवाल का ‘भतूळिया’ बन गया। सीधे कान में घुसा और जोर से गूंजा ‘क्या यही वो लोकतंत्र और आजादी है, जिसका चित्र जान देते हुए भी हमारी आंखों में था।’सच कहूं दिल तक उतर गया वो सवाल। जवाब,  उस दिन भी मेरे पास नहीं था, आज भी नहीं है। लोकतंत्र का महापर्व चल रहा है। एक तरफ ‘संविधान-लोकतंत्र खतरे में हैं’ कहकर वोट मांगे जा रहे हैं।  दूसरी ओर मछली-मटन जैसे चुनावी मुद्दे हैं। पूरी सरकारें जेल जा रही है।

सवाल अब तक जेहन में गूंज रहा है। देश आज जलियांवाला बाग कांड की बरसी पर शहीदों को नमन कर रहा है। इसके साथ ही मना रहा है, लोकतंत्र का महापर्व “लोकसभा चुनाव”। दिल ने कहा, इस मौके पर उस कुएं से आए सवाल को अपने पेट के कुएं से निकाल आप से साझा कर लूँ। सच कहूं तो सवाल एक और भी है जो उस दिन जलियाँवाला बाग में लाशों के बीच घूमते हुए स्वयं सेवक ज़िंदों को तलाशने के लिए लोग जोर-जोर से चिल्लाकर पूछ रहे थे, “क्या यहां कोई जिंदा है।”

10 मिनट, 1650 राउंड गोलियां, सैकड़ों शहीद : 

बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सभा रखी गई। शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी सैंकड़ों लोग सभा की खबर सुन कर पहुंच गए। नेता भाषण दे रहे थे, तभी जनरल डायर 90 ब्रिटिश सैनिकों को लेकर वहां पहुँच गया। बाग को घेर कर बिना कोई चेतावनी दिए निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलानी शुरू कर दीं। 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं।

लाशों से भर गया कुआं :

जलियांवाला बाग तक जाने या बाहर निकलने के लिए एक सकरा रास्ता था। भागने का कोई रास्ता नहीं था। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए, पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया। बाग में लगी पट्टिका पर लिखा है कि 120 शव तो सिर्फ कुए से ही मिले।

मौतों के अलग-अलग आंकड़े :

शहर में क‌र्फ्यू था, घायलों को इलाज के लिए भी कहीं ले जाया नहीं जा सका। लोगों ने तड़प-तड़प कर वहीं दम तोड़ दिया। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक छह सप्ताह का बच्चा था। अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए। आधिकारिक रूप से मरने वालों की संख्या 379 बताई गई जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोग मारे गए। स्वामी श्रद्धानंद के अनुसार मरने वालों की संख्या 1500 से अधिक थी जबकि अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन डॉक्टर स्मिथ के अनुसार मरने वालों की संख्या 1800 से अधिक थी।

हंटर कमीशन : डायर ने माना, मारने के इरादे से ही गया :

इस नरसंहार की विश्वव्यापी निंदा हुई जिसके दबाव में सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट एडविन मॉण्टेगू ने 1919 के अंत में इसकी जाँच के लिए हंटर कमीशन नियुक्त किया। कमीशन के सामने ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने स्वीकार किया कि वह गोली चला कर लोगों को मार देने का निर्णय पहले से ही ले कर वहाँ गया था और वह उन लोगों पर चलाने के लिए दो तोपें भी ले गया था जो कि उस सकरे रास्ते से नहीं जा पाई थीं। हंटर कमीशन की रिपोर्ट पर हाउस ऑफ़ कॉमन्स ने डायर के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया परंतु हाउस ऑफ़ लॉर्ड ने इस हत्याकाण्ड की प्रशंसा करते हुये उसका प्रशस्ति प्रस्ताव पारित किया। विश्वव्यापी निंदा के दबाव में बाद को ब्रिटिश सरकार ने उसका निंदा प्रस्ताव पारित किया और 1920 में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर को इस्तीफ़ा देना पड़ा।

उधम सिंह ने डायर को मारकर बदला लिया, 12 साल के भगतसिंह पैदल पहुंचे :

जब जलियांवाला बाग में यह हत्याकांड हो रहा था, उस समय उधमसिंह वहीं मौजूद थे और उन्हें भी गोली लगी थी। उन्होंने तय किया कि वह इसका बदला लेंगे। 13 मार्च 1940 को उन्होंने लंदन के कैक्सटन हॉल में डायर को गोली से उड़ा दिया।

भगतसिंह का बचपन का फोटो

ऊधमसिंह को 31 जुलाई 1940 को फाँसी पर चढ़ा दिया गया। इस हत्याकांड के वक्त भगतसिंह की उम्र 12 वर्ष थी। भगत सिंह अपने स्कूल से १२ मील पैदल चलकर जालियावाला बाग पहुंच गए थे।

टैगोर ने उपाधि लौटाई, असहयोग आंदोलन शुरू :

गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने इस हत्याकाण्ड के विरोध-स्वरूप अपनी नाइटहुड को वापस कर दिया। हजारों भारतीयों ने जलियांवाला बाग की मिट्टी को माथे से लगाकर देश को आजाद कराने का दृढ़ संकल्प लिया। पंजाब पूरी तरह से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सम्मिलित हो गया। इसके फलस्वरूप महात्मा गांधी ने 1920 में असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया।

  • तथ्य स्रोत : विकिपीडिया एवं अन्य