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महिला लेखन की बड़ी उम्मीद रेणुका व्यास ‘ नीलम ‘, साहित्य जिनके लिए कोई ग्लैमर नहीं, एक साधना है

  • हिंदी के साथ अपनी मायड़ भाषा राजस्थानी में भी रचनाकर्म
  • एक प्रतिबद्ध रचनाकार के रूप में बड़ी पहचान

अभिषेक पुरोहित

RNE Special.

( रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस RNE ने अपने पाठकों से वादा किया था कि वो बीकानेर में साहित्य, संस्कृति व पत्रकारिता के क्षेत्र में गम्भीरता से काम करने वाले रचनाधर्मियों के कर्म से उनका परिचय करायेगी। इन रचनाकारों में वही लोग शामिल होंगे जिन्होंने गम्भीर काम से समाज, शहर को बहुत कुछ दिया हो। उसी कड़ी में आज महिला रचनाकार डॉ रेणुका व्यास ‘ नीलम ‘ के बारे में आलेख। आज उनका जन्मदिन है। RNE परिवार की तरफ से उनको हार्दिक बधाई। — संपादक रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस )

ये दौर दिखावे या प्रदर्शन का है। थोड़ा करो और ज्यादा दिखाओ। करो कम और उसका प्रचार अधिक करो। ग्लैमर की तरह छाओ और प्रसिद्धि पाकर इतराओ। ये जीवन के हर क्षेत्र में चल रहा है। अब साहित्य भी इन दुर्गुणों से अछूता नहीं रहा है। इसी कारण अब पाठक या समाज का साहित्य पर भी भरोसा काफी कम हो गया है। मगर इस आपाधापी और स्वंयम्भू बनने के समय में भी अनेक रचनाकार ऐसे है जो मौन रहकर अपनी साहित्य साधना कर रहे है। उनको न तो ग्लैमर से मतलब है और न दिखावे से। वे तो अपना कर्त्तव्य समझ शब्द की साधना में लीन है, प्रतिबद्ध है। इसी श्रेणी में आती है समर्थ रचनाकार रेणुका व्यास ‘ नीलम ‘।

साहित्य की जागरूक पाठक:

रेणुका जी हिंदी व राजस्थानी में समान रूप से लेखन का कार्य करती है। साहित्य में कविता, कहानी, उपन्यास उन्होंने लिखे है। जो इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने लिखने से पहले पढ़ा भी बहुत है। डॉ नन्दकिशोर आचार्य कहते है, एक हजार शब्द हम पढ़ते है तब जाकर कहीं हममें एक शब्द लिखने की क्षमता आती है। इसलिए यह कहना कि रेणुका जी ने खूब पढ़ा है, कोई अतिशयोक्ति नहीं है।

निबंध विधा को समृद्ध किया:

हिंदी हो या राजस्थानी, कविता, कहानी, उपन्यास तो सभी लिखते है। इनका अपना वैशिष्ट्य रचनाकार को अलग पहचान देता ही है। मगर जो निबंध लिखने का काम करता है, वो न केवल साहित्य रचता है अपितु भाषा व साहित्य को समृद्ध भी करता है।

उस नजरिये से देखे तो रेणुका जी ने भाषा को समृद्ध करने का भी काम पूरी शिद्धत व गम्भीरता से किया है। जहां तक मेरी जानकारी है, वर्तमान में राजस्थान में बहुत कम महिला लेखिकाएं है जिन्होंने निबंध लेखन का महत्ती कार्य किया है, ये काम करने वाली रेणुका जी अकेली रचनाकार है। बीकानेर में तो कम से कम इतनी गम्भीरता का साहित्यिक कर्म किसी अन्य रचनाकार ने नहीं किया। ये बात इस कारण कि अन्य विधाओं में समान रूप से लिखते हुए निबंध लिखना, कठिन काम है। मगर रेणुका जी ने सरलता से ये काम किया है।

उनकी पुस्तक ‘ स्त्री देह का सच ‘ पर टिप्पणी करते हुए रचनाकार मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ कहते है कि स्त्री विमर्श के ये निबंध अलहदा है, क्योंकि इतने गहरे दर्शन के साथ स्त्री विमर्श कम ही लेखिकाओं ने किया है। रेणुका जी ने सहज, सरल भाषा मे स्त्री देह पर गंभीर दर्शन की बातें लिखी है।

मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ उनकी पुस्तक ‘ अगर मैं सच बोल दूं… ‘ पर टिप्पणी करते हुए कहते है कि जो रचना सवाल खड़े करे तो वो श्रेष्ठ रचना होती है, क्योंकि सवाल ही वजूद की रक्षा करते है। रेणुका जी की ये पुस्तक पूरे समाज के सामने आज के ज्वलंत सवाल खड़े करती है। जिसे पढ़कर समाज सोचने को विवश हो जाता है। इस दृष्टि से रेणुका जी की इस पुस्तक को उन्होंने उत्तम कृति भी बताया।

एक प्रयोगशील उपन्यासकार:

राजस्थानी भाषा मे बहुत कम उपन्यास लिखे गए है। 100 साल का जब इतिहास हुआ तब तक 125 उपन्यास भी नहीं लिखे गए थे। बाद में कुछ गति से उपन्यास राजस्थानी में आये। उसमें भी महिला उपन्यासकार तो गिने चुने है। इस सूची में भी रेणुका जी की मजबूत उपस्थिति है। ‘ धिंगाणे धणीयाप ‘ उनका उपन्यास उल्लेखनीय है। ये उपन्यास समाज की जड़ताओं पर प्रहार करने वाला है। समाज, रिश्तों का रेणुका जी ने बेबाकी से विश्लेषण किया है।

एक निर्मल मन की कवयित्री:

रेणुका जी मन मूल रूप से एक कवि का है। क्योंकि कविता लिखने की पहली शर्त है लिखने वाले में संवेदनशीलता का होना। उसका बाहुल्य रेणुका जी मे है यह उनके काव्य संग्रह ‘ सुनो तथागत ‘ में साफ झलकता है। उनकी अन्य विधाओं की पुस्तकों में भी भाषा की एक लय है जो उनके संवेदनशील होने की परिचायक है।

शोध व आलोचना को भी अंगेजा:

रेणुका जी ने इसके अलावा शोध व आलोचना का भी काम शिद्दत के साथ किया है। ‘ हिंदी साहित्य का इतिहास और राजस्थान के लेखक ‘ शोध में सहभागी रहकर उन्होंने प्रदेश के साहित्य के लिए एक बड़ा काम किया है। रचनाकार नगेन्द्र नारायण किराड़ू कहते है कि इस तरह का काम पहली बार हुआ है। क्योंकि ये साहित्य का बड़ा दस्तावेज है, जो आने वाली पीढ़ियों के काम आयेगा। डॉ उमाशंकर व्यास के साथ रेणुका जी ने ये बड़ा काम किया है। किराड़ू इसे भागीरथी काम की संज्ञा देते है।

रेणुका जी इसके अलावा प्रखर आलोचक भी है। जब भी किसी गम्भीर पुस्तक का लोकार्पण होता है तो उस पर पहली टिप्पणी का दुष्कर कार्य बेबाकी से रेणुका जी ही करती दिखती है। ये उनकी आलोचकीय दृष्टि का प्रमाण है।

ये साथ अनमोल है:

रेणुका जी एक सफल शिक्षिका है, बच्चों की प्रिय शिक्षक। एक गृहणी है, पति व बच्चों सहित पूरे परिवार की केयर। एक सफल लेखिका भी। वे कई बार बताती है और अधिकतर साहित्यिक परिवार भी जानता है कि ये सब से तभी कर पाती है जब हर कदम पर उनके साथ उनके पति शिवशंकर व्यास खड़े रहते है। उनका भी योगदान कम नहीं आंका जा सकता। दोनों बच्चों का भी पूरा पूरा सहयोग अपनी मां को है।
शिवजी कहते भी है, मुझे साहित्य की एबीसीडी नहीं आती। रेणुका लिखती है तो उसका साथ देना धर्म है, वही निभा रहा हूं। बाकी सब उसका, मुझे श्रेय देना तो उचित ही नहीं।

रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस RNE जन्मदिन पर रेणुका व्यास ‘ नीलम ‘ को हार्दिक बधाई देता है।