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सम्मान : हरिशंकर और रेणुका के लेखन को सम्मान से बीकानेर में खुशी

RNE Special.

भारतीय समाज में कहानी की बहुत पुरानी परंपरा है। खासकर राजस्थान में तो इसका इतिहास बहुत पुराना है। लोक में बिखरी कथाएं एक कंठ से दूसरे कंठ तक ही पहुचती रही है। कहीं भी ये कहानियां छपी नहीं है, बस पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित हुई है। इन कथाओं को संकलित करने का भागीरथी प्रयास पदमश्री विजयदान दैथा ने किया था। उन्होंने आधुनिक संदर्भ का हल्का सा ट्विस्ट करते हुए इन लोक कथाओं के संकलन ‘ बातां री फुलवारी ‘ नाम से निकाले।

उन्होंने गांवों में जाकर बुजुर्गों के पास बैठकर इन लोक कथाओं को संकलित किया और उनको दुबारा लिखा। लोक की ये शाश्वत कथाएं आज भी प्रासंगिक है, इस बात को उन्होंने प्रमाणित किया। मगर ये भी सच है कि लोक की सभी कथाओं को अब भी संकलित नहीं किया जा सका है। वे अब भी लोगों के कंठों में ही निवास कर रही है। हम अपने बचपन को याद करें तो हमें भी अपनी दादी, नानी याद आती है। जो रात को सोने से पहले हमें कहानी सुनाती थी। जिसे सुनते सुनते हम सो जाया करते थे और दूसरे दिन भर उत्सुकता बनी रहती थी। रात आयेगी और दादी उस कहानी को पूरा सुनायेगी। ये कमोबेश हरेक बच्चे के साथ हुआ होगा। पहले आज की तरह टीवी, मोबाइल तो थे नहीं, दादी – नानी की कहानियां ही थी। जिनको सुनना सुखद अनुभूति होती थी।

उस प्रक्रिया को हम समझें तो एक बात तो स्पष्ट है कि कहानी है ही सुनने की चीज। पढ़कर उसका आनन्द नहीं लिया जा सकता, सुनकर चौगुना आनंद उठाया जा सकता है। आज भी कहानी सुनना रुचिकर है, यह बात इस समय बीकानेर में प्रमाणित करने का काम कर रहे हैं ऊर्जा थियेटर सोसायटी के रंगकर्मी। महीनें में दो बार वे ‘ सुनो कहानी ‘ कार्यक्रम का आयोजन करते हैं और कहानी सुनते हैं। कहानीकार कहानी सुनाता है। अब तक तीन कहानीकार कहानियां सुना चुके हैं, जबरदस्त सफल है ये प्रयास। लोगों को रुचिकर भी लग रहा है। रंगकर्मी साहित्य के प्रति ये कोमल भाव रख रहे हैं, ये बीकानेर जैसे शहर में ही सम्भव है। यहां अदब की एक परंपरा है, जो सदा नवाचार भी करती रहती है।

अनिरुद्ध उमट की कहानियों ने जहां उत्तर आधुनिकता की आज की कहानी से श्रोताओं को रु ब रु कराया तो मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ ने यथार्थ व प्रयोग के धरातल की कहानियों से परिचित कराया। दोनों को सुनकर श्रोता प्रफ्फुलित थे। ये भी साबित हुआ कि कहानी सुनने की चीज है। रंगकर्मी अशोक जोशी और उनकी टीम को इस उल्लेखनीय नवाचार के लिए बधाई दी जानी चाहिए। साथ ही एक सलाह भी, श्रोताओ को कम से कम वे कहानियां न सुनायें जिनमें कहानी तत्त्व ही न हो, कथ्य न हो, शिल्प न हो और केवल आडंबर हो। कहानीकार का चयन सावधानी से करना होगा, तभी इस अनूठे आयोजन की धमक भारतीय साहित्य जगत का ध्यान खिंचेगी। इससे प्रेरणा लेकर अन्यत्र भी इस तरह के नवाचार शुरू होंगे। बीकानेर में कहानी सुनने के लिए आने वाले श्रोताओं की भी रुचि बनी रहेगी। वे टूटेंगे नहीं। ये ध्यान तो ऊर्जा थियेटर सोसायटी को रखना ही होगा।

‘ साक्षात्कार ‘ जिंदा करने का प्रयास

साहित्य या यूं कहें कि अदब की दुनिया में राजस्थान का सबसे गतिशील शहर बीकानेर है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यहां विपुल साहित्य कर्म होता है। अच्छी फसल के साथ खरपतवार होना लाजमी है, वो भी है। मगर अदब की अच्छी फसल भी यहां उगती है। अदब के लिए बीकानेर उपजाऊ भूमि है। सुनो कहानी का जिक्र मैंने किया ही है, अनूठा नवाचार और समय की जरूरत का आयोजन है।


ये शहर हरीश भादानी, डॉ नंदकिशोर आचार्य, यादवेंद्र शर्मा ‘ चन्द्र ‘, बुलाकी दास बावरा, योगेंद्र किसलय, रामदेव आचार्य, मोहम्मद सदीक, मस्तान, भवानी शंकर व्यास ‘ विनोद ‘, अजीज आज़ाद, शमीम बीकानेरी, धनंजय वर्मा, देवीप्रसाद गुप्त सहित अनेक विद्वानों के कारण पहचान रखता है। वहीं इनके बाद की पीढ़ी ने भी इस परंपरा को आगे बढ़ाया। खरपतवार की बात नहीं कर रहा, वो भी हर काल, हर दौर में हर शहर में उगती ही है। वे रचनाकार बनना नहीं चाहते, केवल दिखना चाहते हैं। इसलिए उनकी हद केवल अखबार की खबरों तक है, इससे आगे उनका कोई साहित्यिक वजूद बीकानेर की कांकड़ से बाहर भी नहीं।

संतोष इस बात का है कि यहां का युवा भी नया सोचता है। युवाओं में भी दो धाराएं है, एक वो जो कविता लिख अखबार में छपवाने को ही साहित्य कर्म समझती है। अखबारी खबरों में ही अधिक दीखने की चाह रखती है। मगर कुछ ऐसे भी हैं जिनका सोच पूरी तरह से अदबी है। उनके साथ प्लस पॉइंट ये है कि उनको सही मार्गदर्शन लगातार मिलता है, इस कारण वे भटकते नहीं है। कुछ विरासत की भी देन है। इन युवाओं में अरमान नदीम ने बरबस ही ध्यान खींचा है।

साहित्यकार नदीम अहमद नदीम के पुत्र होने से अदबी सलीका तो है ही, मगर साथ ही सीखने से जरा भी परहेज नहीं। जिससे भी मौका मिलता है, सीखने को उत्सुक रहते हैं।

साहित्य में साक्षात्कार की विधा बड़ी सफल व प्रभावी थी। नेमिचन्द्र जैन, उदयन वाजपेयी, जयदेव तनेजा आदि ने इसको समृद्ध किया। मगर पिछले कुछ समय से इस विधा पर काम होना ही बंद हो गया। इस विधा को अब अरमान ने पकड़ा है, इस कारण इस युवा का विशेष जिक्र है। साक्षात्कार की विधा पर जिस शिद्दत से इस युवा ने काम शुरू किया है, वो कई उम्मीदें जगाता है।

आचार्य व व्यास ने बढ़ाया मान:

बीकानेर के दो लाडलों हरिशंकर आचार्य व रेणुका व्यास ‘ नीलम ‘ ने बीकानेर का मान बढ़ाया। हरिशंकर आचार्य को विशिष्ट माणक अलंकरण जनसम्पर्ककर्मी के रूप में घोषित हुआ। ये अपने आप मे समूचे बीकानेर के लिए गर्व करने की बात है। कर्म के प्रति निष्ठा की सीख इस युवा से सबको मिलती है। आचार्य न केवल अच्छे जनसम्पर्ककर्मी है अपितु वे बेहतर लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता भी है। समाज में इस युवा को उसकी निष्ठा के कारण सम्मान मिलता है। हरिशंकर आचार्य को बधाई कि उन्होंने बीकानेर व समाज को गौरवान्वित होने का अवसर दिया।

राजस्थानी लेखन महिला का विशिष्ट माणक अलंकरण बीकानेर की लाडली विदुषी रेणुका व्यास ‘ नीलम ‘ को घोषित हुआ है। अपने प्रतिबद्ध लेखन से रेणुका जी ने राजस्थानी भाषा की अनमोल सेवा की है। उनकी पुस्तकें चर्चित रही है। वे हिंदी व राजस्थानी में समान रूप से लेखन किया है। वे अनवरत सृजनरत है। उनको भी बीकानेर की तरफ से हार्दिक बधाई।



मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में 

मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को  अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।