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रूद्रा न्यूज एक्सप्रेस की विवाह पुस्तिका ‘रीत रा गीत’ को मिला पाठकों का प्यार

घर-घर गूंजे ‘रीत रा गीत’

  • चौक-मोहल्लों, घर-गलियों में गाये जा रहे ‘रीत रा गीत’

आरएनई, बीकानेर।

पुष्करणा सावा की रौनक परवान पर है। दूल्हे खिड़कियां पाग पहनकर निकलने ही वाले हैं इन सबके बीच पूरे शहर में सुनाई दे रहे हैं शगुन के गीत। ऐसे पांरपरिक गीत जिन्हें अगली पीढ़ी को हस्तांतरित करने के लिए ’रूद्रा न्यूज एक्सप्रेस’ ने खास सावे के मौके पर निकाली है पुस्तिका ‘रीत रा गीत’

इस पुस्तिका को पाठकों का इस कदर प्यार मिल रहा है कि लगातार डिमांड आती जा रही है। ऐसे में सावे के मौके पर कई स्थानों से पुस्तिका वितरित की गई। बीसियों घरों में ‘गीतारियों’ के हाथों में ये पुस्तक दिख रही है और गूंज रहे हैं ‘रीत रा गीत।’

इन सबके बीच शनिवार सुबह से जहां मायरों के क्रम शुरू हुआ वहीं दोपहर बाद दूल्हे के घर खीरोड़े पहुंचने लगे। खीरोड़ों में गोत्राचार होते ही अन्न-जळ पूजापे के साथ ही तैयारी बारात निकासी की।

चौक-चौक में स्वागत की तैयारी:

बारातों का स्वागत करने के लिए शहर के हर चौक में पाटों पर अगवानी की तैयारी है। मोहता चौक में जहां दूल्हों को प्रसस्ति चिह्नों के साथ चैक दिये जाएंगे वहीं बारहगुवाड़ चौक में भी सम्मान होगा। ‘रमकझमक’ जहां सावे की रंगत का बड़ा मंच बन गया है वहीं सदाफते के पास भी स्वागत सत्कार होगा।

‘रीत रा गीत’ :  मंत्री गोदारा, चूरा, पुरोहित, आचार्य ने किया था लोकार्पण

पुष्करणा सावा 2024 के मौके पर रूद्रा न्यूज एक्सप्रेस ‘आरएनई’ की ओर से प्रकाशित विवाह के परंपरागत गीतों और रीति-रिवाजों पर केन्द्रित पुस्तिका ‘रीत रा गीत’ का लोकार्पण राजस्थान के कैबिनेट मंत्री सुमित गोदारा, समाजसेवी राजेश चूरा, विप्र फाउंडेशन के अध्यक्ष भंवर पुरोहित एवं आचार्य रघुनाथ ट्रस्ट के अध्यक्ष ब्रह्मदत्त आचार्य ने किया था।

पुष्करणा सावे में आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है: गोदारा

‘रीत रा गीत’ के लोकार्पण समारोह में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री सुमित गोदारा अनौपचारिक हो गए। सावे की शादी में अपने अनुभवों का जिक्र करते हुए कहा, यह आत्मिक आनंद की अनुभूति वाला क्षण होता है। उन्होंने कहा, जहां तक मैं महसूस कर रहा हूं पुष्करणा एक जीवनशैली बन चुकी है। यह बीकानेर की पहचान है। इस लिविंग स्टाइल को अपनाने वाले डिप्रेशन जैसी बीमारियों के शिकार नहीं होते। इसकी वजह मजबूत सामाजिक ढांचा और जुड़ाव है। इस पर शोध होना चाहिए। इस शैली को अपनाना चाहिए।


‘रीत रा गीत’ पर बात करते हुए गोदारा ने कहा, इस पुस्तिका में ‘सगा-सगी के हंसी-मजाक’ जैसे परंपरागत गीतों को शामिल किया गया है जो बदलते दौर में खत्म होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा, ग्रामीण परिवेश में आखातीज के सावे पर हजारों शादियां होती थी। अब इनकी संख्या धीरे-धीरे कम हो रही है। यह चिंता का विषय है। फिर से हमें इस ओर लौटना चाहिए।

शुरूआत खुद से करता हूं: राजेश चूरा

समाजसेवी राजेश चूरा बोले, जब मैं पुष्करणा सावे में ही शादी करने की बात करता हूं तो पहले शुरूआत खुद से करता हूं। अपनी चादर उजळी रहे इसका ध्यान रखता हूं। यही वजह है कि अपने पुत्र और भतीजे दोनों की शादियां पुष्करणा सावे के दिन ही की। ऐसा नहीं कि इत्तेफाक से उस दिन सावा था वरन तय कार्यक्रम के मुताबिक सगाई के वक्त ही तय कर लिया था कि शादी पुष्करणा सावे के दिन होती है। चूरा ने पुष्करणा सावे में शादियों की सफलता का प्रतिशत सर्वाधिक होने की बात कही। कहा, इस सावे में जिन लोगों की शादी हुई उनमें से कइयों की 50वीं मैरिज एनीवर्सरी में भी जाने का मौका मिला। वजह, विद्वान पंडित एक साथ, एक जाजम पर बैठकर तर्क, प्रमाण देते है। इसके बाद एक विशेष दिन तय होता है जिस दिन शादियां की जाती हैं। ‘रीत रा गीत’ प्रयास को सामाजिक भागीदारी का हिस्सा बताते हए सराहा। कहा, लुप्त होती परंपरा या संस्कृति को बचाने के लिए ऐसे आयोजन जरूरी।

परंपराएं विकसित करने, रूढ़ियां तोड़ने की जरूरत: मधु आचार्य

पुष्करणा समाज रूढ़ियों को तोड़ता है परंपराओं को विकसित करता है। रूद्रा न्यूज एक्सप्रेस का ‘रीत रा गीत’ प्रयास भी परंपराओं को विकसित करने वाला है। इसमें मंच से लेकर मौजूद लोगों तक सब की भागीदारी है। सुमित गोदारा को राजस्थान सरकार में कैबिनेट मंत्री के तौर पर चुनना उनकी कार्यशैली का ही परिणाम है। पूरा विश्वास है बीकानेर में सावे में अनुदान को लेकर उठी मांग पर भी वे सकारात्मक निर्णय करवाएंगे।

परंपराओं के हस्तांतरण का काम: भंवर पुरोहित

विप्र फाउंडेशन के प्रदेश अध्यक्ष भंवर पुरोहित ने कहा, नवदंपति जीवन की नई पारी शुरू कैसे करें। बदलते दौर में यह बताने की सख्त जरूरत है। इसी कड़ी में ‘रीत रा गीत’ अच्छा प्रयास है। यह परंपराओं के हस्तांतरण का काम है। सरकार भी सामूहिक शादियों को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है। इसी कड़ी में परकोटे को छत को मान लिया गया है। ऐसे में अब यह पुष्करणा नहीं अब यह सर्व समाज का सावा है।

सामाजिक सरोकार, सबकी जिम्मेदारी: हरीश बी.शर्मा

लेखक-पत्रकार एवं लॉयन एक्सप्रेस के संपादक हरीश बी.शर्मा ने कहा, सामाजिक सरोकार निभाना सबकी जिम्मेदारी। पत्रकार भी इसका हिस्सा है। रूद्रा न्यूज एक्सप्रेस ने उसी जिम्मेदारी का निर्वहन इस पुस्तक के जरिये किया है। उन्होंने मंच को ‘संघर्ष और जीत’ का पर्याय बताया जिसमें जमीन से जुड़ी शख्सियतों ने अपने सामाजिक सरोकार निभाते हुए खुद के बूते एक मुकाम हासिल किया।

हर समाज के लिए उपयोगी ‘रीत रा गीत’ : किराड़ू

कवि-कथाकार, चित्रकार नगेन्द्र नारायण किराड़ू ने ‘रीत रा गीत‘ पुस्तिका की बारीकियां बताई। कहा, ‘रीत रा गीत’ में जहां भूले-बिसरे गीत शामिल किए गए हैं वहीं रस्मों से जुड़ी ऐसी बारीकियां हैं जिनके बारे में आमतौर पर जानकारी नहीं होती। ऐसे रीति-रिवाज बताये गए हैं जिन्हें निभाने का मकसद है नवदंपति की झिझक तोड़ना, एक-दूसरे को समझने का मौका देना है। यह संग्रहणीय है लेकिन और समृद्ध हो सकती है इसके लिए अगले सावे पर और समृद्ध पुस्तिका लाने का प्रयास करेंगे।

रंगा-जोशी ने सावे की बारीकियां बताई:

लेखक-कवि राजेन्द्र जोशी ने पुष्करणा सावे की शुरूआत से अब तक की यात्रा का संक्षित जिक्र किया। इसके साथ ही कहा इस सावे में ब्याह करना गर्व का विषय है। वरिष्ठ कवि-कथाकार कमल रंगा ने कहा, शताब्दियों से समाज के जो आगीवाण रहे हैं उन्होंने वैवाहिक संस्कारों के एक रूप को सामूहिक सावे के रूप में प्रतिस्थापित किया। पुष्करणा प्रगतिशील समाज है। अपनी परंपराओं को लगातार पोषित-विकसित करता है। यही वजह है कि पहले सात साल, फिर चार साल और अब दो साल में पुष्करणा सावा हो रहा है।


आचार्य रघुनाथ समाज ट्रस्ट के अध्यक्ष ब्रह्मदत्त आचार्य ने सामाजिक परंपराओं को आगे बढ़ाने, रूढ़ियों को तोड़ने और सामाजिक मसलों के लिए एक जाजम पर बैठकर बात करने की जरूरत जताई। पार्षद अरविंद किशोर आचार्य ने सावे के मौके पर बीकानेर नगर निगम की ओर से किये जा रहे प्रयास गिनाये।

इन्होंने सराहा प्रयास : 

जनसंपर्क विभाग के सहायक निदेशक हरिशंकर आचार्य, वास्तुशास्त्री आर.के.सुतार, सोलर एनर्जी प्रमोटर कुणाल रतन, प्रियंका बिस्सा, सीमा पारीक, सीमा व्यास, शारदा आचार्य, श्रुति पारीक, दुर्गा-रिंकू, व्यंग्य कवि बाबूलाल छंगाणी, संजय आचार्य, मनोज व्यास, गणेश आचार्य, सिद्धिका, महेन्द्र आचार्य, कौशल पणिया, ऐश्वर्य आचार्य, जुगलकिशोर पुरोहित, दिनेश आचार्य-कवि, उमेश बोहरा, पंडित पुरूषोत्तम आचार्य, महेन्द्र व्यास, कमल आचार्य, शारदा देवी, सिद्धिका आदि ने पुस्तिका की जरूरत बताई।