सचिन फ्रंट फुट पर, गहलोत की चुप्पी, डोटासरा की सतर्कता, कांग्रेस में कुछ तो चल रहा है
RNE, SPECIAL DESK
विधानसभा चुनाव में हार हुई मगर उसकी भरपाई कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में की। दो लोकसभा चुनाव में 25 में से एक भी सीट नहीं जीत सकने वाली कांग्रेस ने इस बार 25 में से 11 सीटें गठबंधन के साथ जीती। रालोपा व आदिवासी पार्टी ने एक एक सीट जीती, जिनसे कांग्रेस का गठबंधन था। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने वाले महेन्द्रजीत सिंह मालवीय बांसवाड़ा सीट पर बुरी तरह हारे। उनकी विधायकी भी गई। इस तरह लोकसभा चुनाव राज्य में कांग्रेस के लिए सुखद रहे।
सचिन पायलट उस समय से ही फ्रंट फुट पर पार्टी में बैटिंग कर रहे हैं, लोकसभा चुनाव परिणाम से उनका कद बढ़ा ही। उन्होंने जिन उम्मीदवारों पर दाव लगाया, वे सफल रहे। भरतपुर, दौसा, टोंक, बाड़मेर, श्रीगंगानगर में उनकी पसंद के उम्मीदवार जीत गये। जीत के बाद तो बाकी सांसद भी उनके साथ आ खड़े हुए। पूर्व सीएम अशोक गहलोत लोकसभा चुनाव में थोड़े कमजोर रहे। उनके पुत्र वैभव गहलोत इस बार जालौर से लड़े, हार गये, पिछले चुनाव में जोधपुर से हारे थे। गहलोत के गृह जिले जोधपुर व समीप के पाली में भी कांग्रेस हार गई। गोविंद डोटासरा ने समझौते में सीकर सीट माकपा के अमराराम को दी थी, वे जीत गये। चूरू सीट पर भाजपा से आकर लड़ने वाले राहुल कस्वां की जीत भी उनके लिए सुखद रही।
लोकसभा चुनाव के बाद राज्य कांग्रेस में एक अजीब सी चुप्पी है। सचिन उत्साहित है और फ्रंट फुट पर खेल रहे हैं। 6 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होंगे, अब वहां के भी दावेदार उनके इर्द गिर्द ही ज्यादा चक्कर निकाल रहे हैं। दौसा, देवली उणियारा व काफी हद तक झुंझनु सीटों पर उम्मीदवार तय करने में उनका दखल रहेगा। इसके अलावा अब संगठन में भी ब्लॉक से लेकर प्रदेश तक नियुक्तियां होनी है। उसमें भी पायलट सक्रिय ज्यादा है और लोग भी उनके पास ज्यादा पहुंच रहे हैं। वे भी जिलों के दौरे कर रहे हैं। पूरे राज्य में अपनी टीम खड़ी करने की उनकी रणनीति साफ नजर आ रही है।
इनके बीच पूर्व सीएम अशोक गहलोत की चुप्पी भी कई कयासों को जन्म दे रही है। गहलोत के बारे में कहा जाता है कि वे पूरे समय राजनीति करते हैं, मगर अभी चुप हैं तो कोई न कोई रणनीति है। उनका भी पूरे राज्य में नेटवर्क है। अस्वस्थता के कारण वे चुप्पी साधे हुए हैं। आलाकमान भी उनकी वेल्यू जानता है, ये गहलोत को भी पता है। राजनीतिक क्षेत्र में माना जा रहा है कि गहलोत की चुप्पी के बड़े राजनीतिक मायने हैं।
पीसीसी चीफ गोविंद डोटासरा लोकसभा चुनाव के नतीजों से खासे उत्साहित है। उनका अध्यक्ष का कार्यकाल पूरा हो गया मगर उम्मीद है कि लोकसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन के कारण वे बरकरार ही रहेंगे। विधानसभा में भी वे मुखर हैं और भाजपा सरकार को घेरने में सफल है। मगर पिछले कुछ दिनों से असमंजस उनमें भी दिख रहा है।
क्योंकि कांग्रेस अनेक राज्यों में अध्यक्ष बदल चुकी है और बाकी बदलने की तैयारी में है। सचिन को बड़ी जिम्मेदारी के संकेत भी आलाकमान ने दिए हैं। इस सूरत में राज्य कांग्रेस अध्यक्ष पर क्या निर्णय होता है आलाकमान का, उसकी प्रतीक्षा है। उसी के कारण डोटासरा में असमंजस है।कुल मिलाकर राज्य कांग्रेस के बड़े नेताओं की स्थिति बताती है कि शीघ्र ही यहां के लिए भी आलाकमान कोई बड़ा निर्णय करेगा।
— मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।