
बीकानेर की पत्रकारिता के पवित्र स्तंभ, लूणकरण छाजेड़ ‘भाई साहब’ को जन्मदिन पर नमन
- दबंगता से चलाई ने एल के छाजेड़ ने पत्रकार के रूप में कलम
- सदा पत्रकार रहे, कभी थानेदार नहीं बने
- अत्याचार, विसंगति पर बोला है जमकर हमला छाजेड़ जी ने
- युवाओं को सदा आगे बढ़ाया है भाई साहब ने, साथ चले है
अभिषेक पुरोहित
RNE Special.
( रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस RNE ने हाल ही में तय किया था कि बीकानेर के साहित्यिक, सांस्कृतिक कर्म को अमूल्य योगदान देने वाले व्यक्तियों के जीवन की बातें हम अपने पाठकों तक पहुंचाएंगे। जो हमारे साथ है, उनके जन्मदिन पर हम विशेष सामग्री देंगे। जो चले गए उनके याद दिवस पर हम अपने कर्त्तव्य का निर्वाह करेंगे। उन व्यक्तियों का जिनका सच में बीकानेर को बड़ा योगदान है। अब तक हम साहित्यकार बुलाकी शर्मा के बारे में उनके जन्मदिन पर और स्व महेश चंद्र जोशी के याद दिवस पर पाठकों तक सामग्री पहुंचा चुके है। इस कड़ी में आज वरिष्ठ पत्रकार लूणकरण छाजेड़ पर विशेष, आज उनका जन्मदिन है। RNE की तरफ से बधाई। — संपादक )
बीकानेर में पत्रकारिता के एक आयोजन में डॉ नंदकिशोर आचार्य ने कहा था कि पत्रकारिता भी मूल रूप से सांस्कृतिक कर्म है। ये समाज को जागृत करने, गतिशील करने व समझने का जरिया है। इस कारण पत्रकारिता बड़ा सांस्कृतिक कर्म है। बशर्ते पत्रकार अपने कर्म को गम्भीरता से करे और बदलते समय में भी अपने को सार्थक बनाये रखे। आज पत्रकारिता व्यवसाय है, उसके इथिक की पालना कोई करे, तभी वह पत्रकार है।
साहित्यकार, चिंतक डॉ आचार्य की बात का स्मरण करके हम पत्रकारों की तरफ नजर डालें तो जो पत्रकार इस बात पर खरा उतरते साबित होते है, उनमें से एक है लूणकरण छाजेड़ उर्फ एल के छाजेड़ उर्फ सभी युवा पत्रकारों के भाई साहब। बीकानेर में आदर्श व पवित्र भाव से जिन पत्रकारों को याद किया जाता है, उनमें छाजेड़ साब शामिल है।
नवज्योति दैनिक में एक संवाददाता के रूप में पत्रकारिता आरम्भ करने वाले छाजेड़ जी ने बीकानेर में जमकर पत्रकारिता की। बिंदास होकर उन्होंने बिना डरे अपनी कमल चलाई। कोटगेट थाने में हिरासत में हुई एक मौत का मामला उन्होंने उठाया, बड़े बड़े अखबार उसे उठा नहीं पाए। उस मामले ने तहलका मचा दिया।
उस समय छाजेड़ जी को कई धमकियां मिली। डराया गया, मगर उन पर कोई असर नहीं हुआ। गंगाशहर से वे अकेले आते और जाते थे। लोगों ने समझाने की कोशिश की तो उन्होंने जवाब दिया कि मैं जेनी हूं। मृत्यु के अर्थ को समझता हूं। मुझे डर नहीं। डर अगर हो फिर जीना ही बेकार है।
उस मामले में पूरे थाने पर कार्यवाई हुई। दोषियों को सजा हुई। तब जाकर छाजेड़ जी को चेन आया। ठीक इसी तरह कई विभागों के भ्रस्टाचार पर भी उनकी कलम बेबाक चली। धर्म, समाज, संस्कृति, साहित्य की खबरों को वे प्रोत्साहित करते थे।
उस समय के अधिकतर युवा पत्रकार उनके पास जाते तो वे उनको प्रोत्साहित करते। आगे बढ़ाते। इस वजह से ही उनको आज के बड़े पत्रकार आज भी भाई साहब कहते है।
उनका अपने समाज को एक और बड़ा योगदान है, वो है तेरापंथ का बीकानेर में बड़ा आयोजन करना। आचार्य तुलसी के उस आयोजन में बड़ी भूमिका उन्ही की थी। आज भी वे तेरापंथ की गतिविधियों से जुड़े है और थार एक्सप्रेस अखबार व इसी नाम का न्यूज पोर्टल चला। उच्च पत्रकारिता का उदाहरण पेश कर रहे है। साहित्यकार – पत्रकार मधु आचार्य से जब बात की तो उन्होंने कहा कि भाई साहब बीकानेर की साझा संस्कृति के प्रतीक है। अनेक युवाओं को उन्होंने प्रोत्साहित किया, मैं भी उन में से एक हूं। साहित्यकार नगेन्द्र नारायण किराड़ू कहते है कि वे साहित्य, संस्कृति को एक पत्रकार के रूप में सर्वाधिक प्रोत्साहित करते है। शिक्षक नेता महेंद्र पांडे कहते है कि वो अकेले ऐसे पत्रकार है जो कर्मचारी व शिक्षक के संघर्ष को प्राथमिकता देते थे। जन्मदिन पर भाई साहब को बधाई।