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अदब की बातें : यादों में रह गई सरोज दीदी, नागरी भंडार के दरवाजे वसंत का नगर प्रवेश
RNE Special.
ऊर्जा थियेटर सोसायटी के नवाचार ‘ सुनो कहानी ‘ कार्यक्रम में इस बार कवि, कथाकार, आलोचक, अनुवादक, एंकर संजय पुरोहित का कहानी पाठ हुआ। ये बीकानेर साहित्य जगत का एक और यादगार आयोजन बना। क्योंकि बीकानेर में कहानी पाठ का इस तरह का पहले नवाचार नहीं हुआ था।
इस कहानी पाठ में संजय पुरोहित ने कुल चार कहानियां सुनाई। दो हिंदी कहानियों के अलावा एक व्यंग्यकथा और एक लघुकथा का पठन संजय ने किया। खास बात ये थी कि हर कहानी का कैनवास अलग था, कथ्य अलग था, रूप अलग था, रंग अलग था। कोई एक चीज कॉमन थी तो वो थी संवेदना, इन कहानियों में संजय की संवेदना साफ दिख रही थी। एक साहित्यिक रचना तब तक लिखी ही नहीं जा सकती जब तक कि रचनाकार संवेदनशील न हो। इस बात को संजय ने अपनी कहानियों में पुख्तगी से प्रमाणित भी किया।
पहली कहानी कश्मीर के आतंकवाद की पृष्ठभूमि पर लिखी ‘ फियादीन ‘ थी। ये कहानी उस पत्रकार की कहानी थी जो काम के प्रति निष्ठावान था और आतंक के बीच भी रिपोर्टिंग के लिए पहुंच गया। आतंकी गतिविधि के मध्य लाइव करते हुए उसे भी गोली लगती है, जान से हाथ धो बैठता है। ये उसके समर्पण का चरम भाव कहानीकार ने बताया। वहीं उसी क्षण चेनल लाइव करते रहने का कैमरामैन को आदेश देता है, ये व्यावसायिक मानसिकता की पराकाष्ठा है। इस द्वंद को संजय ने गहरी संवेदना से उभारा। श्रोता भावुक हो गये।
संजय की दूसरी कहानी लॉस एंजिल्स की कथा थी। दिखने में तो वो नशे की लत से त्रस्त युवाओं की स्थिति का चित्रण लगती थी, मगर मूलतः वो एक प्रेम कहानी थी। निश्छल प्रेम में केवल त्याग, समर्पण व प्रतिबद्धता का भाव होता है, इस गहरी बात को कहानीकार ने शिद्दत से उभारा। इस कहानी का अंत हर श्रोता को निःशब्द कर गया। वो द्रवित हो गये। ये कहानी की सफलता मानी जानी चाहिए।
तीसरी कहानी व्यंग्यकथा थी। पुलिस तंत्र पर ये इतना सहजता से किया गया व्यंग्य था कि श्रोताओं के चेहरे पर हर समय मुस्कान बनी रही। पुलिस थानों के भीतर की कार्यप्रणाली का भी कहानीकार ने बारीकी से चित्रण किया था। कमाल की जीवंत व्यंग्यकथा थी। संजय ने अंत मे एक लघुकथा ‘ अंतर्दृष्टि ‘ सुनाई। शायद कईयों को पहली बार अहसास हुआ कि सही लघुकथा ये है, गागर में सागर भरना। इसकी तो हर श्रोता ने दिल खोलकर तारीफ की। संजय की कहानियां सजीव थी, अनावश्यक विस्तार नहीं था, खास बात ये थी कि शिल्प व कथ्य का सही गठजोड़ था। एक और खास बात, जो कहानीकार संजय पुरोहित की है। उनका पठन, प्रभावी, स्पष्ट व भावों के साथ था। अच्छी कहानियों को जब अच्छे तरीके से पढ़ा भी जाये तो उनका प्रभाव व अभिव्यक्ति बढ़ जाते हैं। कहानियों पर हुआ विचार मंथन भी सार्थक व उपयोगी था।
ऊर्जा थियेटर सोसायटी के अशोक जोशी व उनकी टीम को साधुवाद। इस महत्ती आयोजन की गूंज अब देश के साहित्य जगत में है, कई लोग इस नवाचार की जानकारी लेते हैं और इसे रंगकर्म व साहित्य का पवित्र संगम भी कह रहे हैं। बस, एक स्तर तक पहुंच चुके इस आयोजन की गरिमा भूल से भी नीचे न आये। ये दायित्त्व पवित्र भाव रखने वाले आयोजकों का है।
सालता रहेगा सरोज दीदी का जाना:
बीकानेर आकाशवाणी के माध्यम से साहित्य, कला को बड़ा योगदान देने वाली शख्सियत सरोज भटनागर का जाना अरसे तक सालता रहेगा। उनकी सदासयता, सहजता व सरलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बीकानेर में सभी उन्हें सरोज दीदी कहते थे।
युवा व प्रतिभावान कलाकारों, साहित्यकारों को उन्होंने पल्लवित होने के बहुत अवसर दिए। कई नए उद्घोषक तैयार किये। शालीनता की प्रतिमूर्ति थे सरोज दीदी। उनके भाई व बीकानेर के वरिष्ठ पत्रकार अभय प्रकाश जी भटनागर के निधन के बाद उन्होंने बीकानेर के प्रतिभावान साहित्यकारों, पत्रकारों, कलाकारों के सम्मान की परंपरा भी उन्होंने शुरू की। जो उनके समर्पण का परिचायक थी। भाई साहब नन्दकिशोर सोलंकी उनके भी भाई थे, अक्सर उनसे उनकी सदाशयता की बात होती थी। सबसे ज्यादा दुख उन्हें हुआ। क्योंकि वे उनकी हर गतिविधि के हिस्सेदार रहते थे। बीमारी से लेकर अंतिम समय तक भी इस भाई ने सरोज दीदी का साथ नहीं छोड़ा। बहुत याद आओगी सरोज दीदी।
नागरी भंडार हर शहर में हो
बीकानेर की साहित्यिक, सांस्कृतिक गतिविधियों का एक बड़ा केंद्र है स्टेशन रोड़ पर स्थित श्री जुबिली नागरी भंडार। इस संस्था को बने 117 साल हो गए और इस बसंत पंचमी को वो संस्था अपना 118 वां स्थापना दिवस मना रही है।
इस संस्था की पहचान बीकानेर में ही नहीं है वरन पूरा देश इसे जानता है। राष्ट्रीय स्तर के अनेक साहित्यकार इस संस्था में आये हैं तो यहां के जिन साहित्यकारों ने राष्ट्रीय ख्याति पाई है, उनका भी डेरा यही है। यहां की साहित्यिक गतिविधियों में एक गरिमा होती है और स्वस्थ चर्चा होती है। यहां पूर्वाग्रह को कोई स्थान नहीं। साफगोई की वजह से यह संस्था वो सेतु है जो भिन्न भिन्न विचारधारा वाले साहित्यकारों को एक माला में पिरोये रखने का मादा रखती है।
इस संस्था का वाचनालय है और समृद्ध लाइब्रेरी भी। संस्था परिसर में आर्ट गैलरी है तो एक छोटा ओडिटोरियम भी। जहां साहित्य व संस्कृतियों की गतिविधियां अनवरत चलती रहती है। मां सरस्वती का भव्य मंदिर है, जहां रोज सैकड़ों भक्त आते हैं।
इस परिसर में आने वाले साहित्यकार, कलाकार, पेंटर, गायक, संगीतकार आदि का संस्था के व्यवस्थापक नंदकिशोर सोलंकी गर्मजोशी से स्वागत करते हैं। उसे जो सहयोग चाहिए, उपलब्ध कराने की पूरी कोशिश करते हैं। यह अकेली देश की ऐसी संस्था होगी जहां भाषाओं में भेद जरा भी देखने को नहीं मिलेगा। हिंदी, राजस्थानी और उर्दू के रचनाकार समान रूप से यहां डेरा डाले रहते हैं। एक सजीव संस्था है जो अपने दम पर चलती है, किसी के सहयोग के लिए थमती नहीं है। इस संस्था ने खुद को खुद के बूते ईमानदारी के साथ खड़ा किया है। वर्तमान में इसके अध्यक्ष विद्यासागर आचार्य हैं और गिरिजा शंकर शर्मा महामंत्री है। पूरी व्यवस्था को संभालने का काम नंदकिशोर सोलंकी करते हैं।
इस बार भी नागरी भंडार अपने स्थापना दिवस पर 3 दिन का वसंतोत्सव आयोजित कर रही है। 31 जनवरी से इसकी शुरुआत चित्र प्रदर्शनी से होगी। 1 फरवरी को कवि सम्मेलन – मुशायरा होगा और 2 फरवरी को संगीत संध्या व सांस्कृतिक कार्यक्रम होगा। काश, नागरी भंडार जैसी संस्था हर शहर में हो तो पूरे देश की फिजा ही बदल जाये।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।