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राजस्थान में भाजपा के संस्थापकों में एक रहे ओम आचार्य ने दो बार विधानसभा, एक बार लोकसभा चुनाव लड़ा

  • आरएसएस के प्रचारक रहे, आपातकाल में जेल गए ओम आचार्य ने कई जन आंदोलन खड़े किये
  • बीकानेर में भाजपा से पहला विधानसभा चुनाव लड़ा, लोकसभा क्षेत्र में पार्टी का नाम पहुंचाया

RNE BIKANER .

प्रखर राष्ट्रवादी एवं राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक रहे एडवोकेट ओम आचार्य नहीं रहे। गुरूवार शाम को उन्होंने हल्दीराम हार्ट हॉस्पिटल मंे आखरी सांस ली।

बीजेपी के संस्थापकों में एक :

एडवोकेट ओम आचार्य का नाम राजस्थान के उन नेताओं में लिया जाता है जिन्होंने राजस्थान में भाजपा संगठन को स्थापित किया था। भाजपा की स्थापना के लिए मुंबई में हुए अधिवेशन में भाग लेकर लौटे आचार्य को यहां आते ही पहले विधानसभा चुनाव में मैदान में उतरना पड़ा। वर्ष 1980 का वह चुनाव आज भी बीकानेर में बहुत याद किया जाता है जब बहुत कम वोटों से ओम आचार्य कांग्रेस के बी.डी.कल्ला से हारे थे।

जीत-हार से परे पार्टी के लिए लड़े :

पार्टी ने उन्हें वर्ष 1989 में उस वक्त फिर मैदान में उतार दिया जब जनता दल और भाजपा का सीटों पर समझौता हो गया लेकिन बीकानेर सीट पर बात अटक गई थी। भाजपा यह सीट अपने लिये चाहती थी लेकिन माकपा ने श्योपतसिंह मक्कासर को उतार दिया। ऐसे में पूरे राजस्थान में इस एक सीट पर समझौता टूटा और पार्टी की बात रखने के लिए ओम आचार्य को लोकसभा चुनाव मैदान में उतारा।

गाँव-गाँव पहुंचाया भाजपा का झण्डा :

यह वो वक्त था गांवों में यह पता ही नहीं था कि भाजपा नाम से कोई पार्टी भी है क्या। उस वक्त ओम आचार्य ने अपनी समर्पित टीम के साथ ही दिनरात एक कर गांव-गांव में भाजपा नाम पहुंचाया। हर गांव में पार्टी का झंडा पकड़ने वाला कार्यकर्ता तैयार हो गया। भाजपा को हालांकि जीत तो न मिलनी थी न मिली लेकिन इस पहले ही चुनाव में पार्टी के खाते में एक लाख से अधिक वोट आये।

आरएसएस के प्रचारक रहे, आपातकाल में जेल गए :

राजस्थान भाजपा के प्रखर वक्ताओं में से एक ओम आचार्य संघ कीे पृष्ठभूमि से आने वाले वो नेता है जिन्होंने संघकार्य के लिए अपना घर-बार छोड़ा था और बतौर प्रचारक पूर्णकालिक कार्यकर्ता के तौर पर एक लंबा समय दिया। आपातकाल के दौरान उन्होंने आंदोलन की अलख जगाई और जेल में रहे।

स्वतंत्रता सेनानी पिता के नक्श-ए-कदम पर :

ओम आचार्य के संस्कारों में प्रखर राष्ट्रवाद का अनुमान इसी से लगा सकते हैं वे उस स्वतंत्रता सेनानी स्व.दाऊदयाल आचार्य के पुत्र थे जिन्होंने यह कहते हुए स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर पेंशन लेना स्वीकार नहीं किया कि “मैंने मातृभूमि के लिए काम किसी पेंशन या तनख्वाह की एवज में थोड़े ही किया है।” ओम आचार्य ने भी अपने जीवनकाल में कभी मीसा बंदियों के लिए मिलने वाली पेंशन को नहीं स्वीकारा।

लेखक-पत्रकार ओम आचार्य :

सामाजिक समरसता के प्रखकर समर्थक आचार्य अच्छे वक्ता के साथ श्रेष्ठ लेखक भी थी। उन्होंने लगभग 35 साल पहले तक डा.आंबेडकर के व्यक्तित्व-कृतित्व पर पुस्तक लिखी जब सामाजिक समरसता की बातें या मंडल कमीशन की रिपोर्ट तक लागू नहीं हुई थी। जाहिर यह यह उनके ह्दय की भावाभिव्यक्ति जो किसी भी राजनीतिक लाभ या श्रेय के लिए नहीं थी। आज भी ‘महामानव डा.भीमराव आंबेडकर’ किताब को संदर्भ ग्रंथों के रूप में उपयोग किया जाता है। आचार्य की रूचि पत्रकारिता में भी रही और उन्होंने अपने पिता स्वतंत्रता सेनानी स्व.दाऊदयाल आचार्य की ओर से प्रकाशित किये जाने वाले अखबार ‘कड़वा सच’ को लंबे समय तक निकाला।

समाज को समर्पित परिवार :

आचार्य अपने पीछे दो पुत्र, चार पुत्रियों सहित भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। उनके बड़े पुत्र जगदीश आचार्य एडवोकेट हैं एवं छोटे पुत्र एकनाथ आचार्य खुद का कारोबार करते हैं ।ओम आचार्य की राजनीतिक से कहीं ज्यादा बौद्धिक और नैतिक मूल्यों की विरासत को उनके भतीजे और वर्तमान शहर भाजपा अध्यक्ष विजय आचार्य संभाले हैं। जुझारू नेता, प्रखर वक्ता और आदर्श राजनीतिक व्यक्तित्वों में से एक ओम आचार्य की पत्नी सरला देवी का कुछ साल पहले निधन हो गया था। उनकी पुत्रियों में तुलसी, ऊमा, अन्नपूर्णा, कृष्णा शामिल हैं।