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विश्व के लिए आवश्यक है शंकर का अद्वैत दर्शन : श्री शंकराचार्य

RNE, BIKANER .

भारतीय भाषा समिति ( शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार ) एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद तथा हिंदी विभाग राजकीय डूंगर महाविद्यालय बीकानेर के संयुक्त तत्वाधान में जगद्गुरु श्री शंकराचार्य व्याख्यान माला का आयोजन महाविद्यालय परिसर के प्रताप सभागार में किया गया। व्याख्यान माला के समन्वयक डॉ. निर्मल कुमार रांकावत ने बताया कि इस कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. दिग्विजय सिंह ने की। इस अवसर पर बौद्धिक संवाद हेतु शिक्षाविद, साहित्यकार व प्रखर चिंतक हनुमान सिंह राठौड़ एवं डॉ.कामिनी ओझा विशेष वक्ता के रूप में सम्मिलित हुए। इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि के रूप में राम झरोखा पीठाधीश महंत सरजूदास जी का सानिध्य प्राप्त हुआ।

इस व्याख्यानमाला का विषय “भारत की एकता और एकात्मता में जगद्गुरु श्री शंकराचार्य का योगदान” रहा। कार्यक्रम के प्रारम्भ में डॉ.अन्नाराम शर्मा ने अतिथियों का परिचय देते हुए व्याख्यानमाला के महत्व को इंगित किया। इस अवसर पर संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता हनुमान सिंह राठौड़ ने कहा की वर्तमान काल में अद्वैत के अभाव में समाज अर्थ पिशाच बनने की ओर है तथा संयुक्त परिवार प्रणाली, संस्कृति व धर्म का ह्रास हो रहा है। वर्तमान समय में पूरे विश्व को अद्वैत की महत्ती आवश्यकता है। उन्होंने अपने उद्बोधन में प्राचीन काल से वर्तमान काल तक शंकर दर्शन की प्रासंगिकता का उल्लेख किया तथा देश की एकता, अखंडता एवं एकात्मता में शंकर दर्शन के अवदान को प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त किया।

जयनारायण व्यास विश्ववविद्यालय जोधपुर की डॉ. कामिनी ओझा ने अपने वक्तव्य में शंकर के जीवन- वृत एवं दर्शन पर प्रकाश डालते हुए सनातन व हिंदू संस्कृति को जानने की आवश्यकता पर बल देने की बात कही। उन्होंने बताया की शंकर के दर्शन से ही हिंदू धर्म के मूल की रक्षा की जा सकती है। भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में एकात्मता का भाव स्थापित किया जा सकता है। महंत सरजूदास जी ने भी विद्यार्थियों को शंकर के जीवनदर्शन को अपनाने व सनातन के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।


अध्यक्षीय उद्बोधन में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.दिग्विजय सिंह ने कहा की शंकर का दर्शन ही सनातन का सार तत्व है । अद्वैत इस संसार का मूल है और इस मूल से उत्पन्न संसार रूपी वृक्ष के तने को मजबूत बनाने के लिए हमें शंकर को जानने की अत्यंत आवश्यकता है । डॉ. सिंह ने बताया कि विश्व का अद्वैत से पलायन ही समस्त विषमताओं की जड़ है। इस अवसर पर प्राचार्य ने समस्त वक्ताओं को साधुवाद प्रेषित कर उनका शब्द-सुमन-अभिनंदन किया। इस अवसर पर महाविद्यालय के समस्त विद्वान संकाय सदस्य एवं अनेक विद्यार्थी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. रमेश पुरी व डॉ. निर्मल कुमार रांकावत ने किया।